पटना का गांधी मैदान सियासी ताकत का पैमाना माना जाता रहा है। जिसने जितनी भीड़ जुटाई, उसकी उतनी ताकत। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसी मैदान पर मार्च के पहले ही दिन अपने जन्मदिन पर जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का कार्यकर्ता सम्मेलन बुलाकर बड़ी सियासी भूल कर दी है। सम्मेलन में जुटने वाली भीड़ के आधार पर उनकी ताकत आंकी जाने लगी है। मैदान के चौथाई से भी कम हिस्से में कार्यकर्ताओं के लिए हरी कालीन बिछाई गई थी। लेकिन इसमें भी आधे से अधिक का खाली रह जाना नीतीश के विरोधियों के लिए उन पर हमले का मजबूत हथियार बन गया है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता तेजस्वी यादव तो पहले ही नीतीश की लानत-मलामत कर रहे थे, सम्मेलन समाप्त होने के अगले दिन रही सही कसर नीतीश के पुराने साथी प्रशांत किशोर ने पूरी कर दी। उन्होंने ट्वीट किया, “पटना में जेडीयू वर्कर्स की भारी भीड़ को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने 200 सीटें जीतने का दावा किया, लेकिन यह नहीं बताया कि 15 साल के उनके सुशासन के बावजूद बिहार आज भी देश का सबसे पिछड़ा और गरीब राज्य क्यों हैं?”
चुनावी अभियान के दौरान प्रशांत किशोर नीतीश की ‘सुशासन बाबू’ वाली छवि को कितनी चोट पहुंचाएंगे, अभी यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता, लेकिन नीतीश के लिए यह सबसे कठिन चुनाव साबित होगा। नीतीश को इसका एहसास भी है। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर तल्खी के बाद नीतीश ने प्रशांत किशोर को तो निकाल दिया, लेकिन अब वे इस मुद्दे पर खुद को करेक्ट करते दिख रहे हैं। उन्होंने प्रदेश में एनआरसी लागू नहीं करने को लेकर विधानसभा में बाकायदा प्रस्ताव पारित कराया। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) पर भी कहा गया कि इसका 2010 का ही प्रारूप होगा। सम्मेलन के मंच से भी नीतीश अल्पसंख्यकों की चिंता को सहलाते दिखे। उन्होंने कहा कि सीएए सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, “गांधी मैदान में जेडीयू के सम्मेलन ने खुलासा कर दिया कि कार्यकर्ताओं में पहले जैसा उत्साह नहीं है। नीतीश का दावा भी फीका है। जो बात वह 15 साल पहले कहते थे, वही आज कह रहे हैं। लड़कियों के लिए पोशाक और साइकिल, महिलाओं के लिए आरक्षण की बातें सुनकर लोगों के कान पक चुके हैं।” मणिकांत कहते हैं कि लड़कियों को साइकिल बांटने की योजना हो या स्कूलों में नामांकन बढ़ाने और शिक्षा की दूसरी योजनाएं, सब भ्रष्टाचार में फंसी हैं।
नीतीश की असली चुनौती है कि सुशासन बाबू की उनकी छवि के विपरीत बिहार में भ्रष्टाचार फिर बढ़ गया है। कानून व्यवस्था के मोर्चे पर भी जनता पिस रही है। हत्या और बलात्कार की घटनाओं में इजाफा हुआ है। विकास के सारे प्रयास और दावे भ्रष्टाचार की वजह से बेमानी से हो गए हैं।
नीतीश ने सम्मेलन में दावा किया कि जब तक वे बिहार में रहेंगे, शराबबंदी जारी रहेगी। वे शराबबंदी को बड़ी कामयाबी बताते हैं। लेकिन आम धारणा है कि शराबबंदी ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। अगर आप मुंहमांगी कीमत दें, तो किसी भी ब्रांड की शराब आपको घर पर मिल सकती है। लेकिन एक बात नीतीश के पक्ष में जाती है, वह है विकल्प की शून्यता। जानकार मानते हैं कि व्यवस्था से निराश लोग नीतीश के विकल्प के लिए नजर दौड़ाते हैं, लेकिन उन्हें कोई नहीं दिखता है। तीन-चार बड़े सियासी चेहरों में नीतीश अब भी ऊपर नजर आते हैं।
तीन नौजवानों की नीतीश को चुनौती
प्रशांत किशोर, कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव- बिहार की सियासत के ये तीन चेहरे 2020 के चुनाव में नीतीश के खिलाफ मोर्चेबंदी में दिखने वाले हैं। कन्हैया ने ‘जन गण मन यात्रा’ के जरिए अपनी सियासी जमीन की परख ली है। जेडीयू के सम्मेलन से दो दिन पहले ही गांधी मैदान में कन्हैया की रैली में अच्छी भीड़ जुटी थी। बिहार की सियासत में नया चेहरा प्रशांत नीतीश की हर चाल को समझते हैं। अपनी जमीन थाहने के लिए उन्होंने ‘बात बिहार की’ नाम से कार्यक्रम का ऐलान किया है। मुमकिन है इसके बाद वह फैसला करें। लालू की विरासत और मुस्लिम-यादव (एमवाय) समीकरण के चलते तेजस्वी मजबूत चुनौती हैं। पत्रकार ठाकुर कहते हैं, “तेजस्वी के साथ यादवों का एकमुश्त वोट बैंक खड़ा दिखता है। भाजपा से नाराज मुसलमानों का वोट उनकी ओर गया, तो वह चुनावी नतीजों को मोड़ देने की ताकत रखते हैं। विपक्ष बंटा रहा तो फायदा नीतीश को मिलेगा।”