भारतीय जनता पार्टी के नए अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन पुराने दिनों को याद किया, जब नड्डा हिमाचल प्रदेश में मोदी को अपने स्कूटर पर पीछे बिठाकर घुमाते थे। तब मोदी भाजपा में हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के प्रभारी होते थे। यानी मोदी से उनका नजदीकी रिश्ता काफी पुराना है। रिश्ता तो अब भी हो सकता है दोनों के बीच वही हो, लेकिन भूमिका बदल गई है। अब ड्राइविंग सीट पर नरेंद्र मोदी हैं। तो, क्या यह नड्डा साहब के लिए परेशानी का सबब हो सकता है कि स्कूटर यानी भाजपा तो उनकी हो गई, लेकिन ड्राइविंग सीट उनके पास नहीं होगी। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने मुझसे कहा, “साहब इस स्कूटर पर तीन सवारियां बैठी हैं। मोदी के बाद अमित शाह हैं और सबसे पीछे नड्डा। हो सकता है कुछ दूर जाने पर बीच की सवारी उतर जाए।” एक ‘एग्रेसिव’ और 20 घंटे पूरी ताकत के साथ काम करने वाले अमित शाह ने भाजपा को दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी तो बनाई ही, नरेंद्र मोदी के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के सपने को साकार करने में भी सक्रिय भूमिका निभा कर ऐसी रेखा खींच दी है, जिसे पार कर पाना आसान नहीं होगा।
नड्डा का मृदुभाषी होना बेहतर मानवीय गुण हो सकता है, लेकिन निशाने के वक्त मछली की आंख पर फोकस रखने की ताकत ने अमित शाह को सबसे ताकतवर अध्यक्ष बनाया। साल 2014 के चुनाव के वक्त तो अमित शाह अध्यक्ष भी नहीं बने थे और डॉ. मुरली मनोहर जोशी पार्टी के दिग्गज नेता माने जाते थे, लेकिन चुनाव समिति की बैठक में शाह ने वाराणसी से जोशी का टिकट काट दिया और ऐलान किया कि नरेंद्र मोदी वहां से चुनाव लड़ेंगे। लोकप्रियता ही नेतृत्व का पैमाना नहीं होता। हो सकता है नड्डा, अमित शाह से ज्यादा लोकप्रिय साबित हों, क्योंकि शाह से मिलने की हिम्मत तो पार्टी के सांसद और बड़े पदाधिकारी भी नहीं कर पाते थे और नड्डा के चेहरे की मुस्कुराहट कार्यकर्ताओं को उनके करीब खींचती है।
1980 में बनी भाजपा के 40 साल के सफर में अब तक 11 अध्यक्ष रहे हैं। लालकृष्ण आडवाणी सबसे ज्यादा तीन बार और दस साल से अधिक समय तक अध्यक्ष रहे। सबसे ताकतवर और सबसे सम्माननीय भी। आडवाणी ही थे जिन्होंने 1984 में दो सांसदों पर पहुंची पार्टी को 85 तक पहुंचाया और 1996 में केंद्र में पहली बार भाजपा की सरकार बनवाई। संघ में उनके रिश्ते बराबरी के थे। भाजपा की दूसरी पीढ़ी के ज्यादातर नेता आडवाणी की देन माने जाते हैं।
भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी जैसी हिम्मत शायद ही कोई दिखा सके, जिन्होंने 1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय किया, फिर 1980 में जनता पार्टी से अलग होकर नया दल भाजपा बना दिया। 1984 में जब पार्टी बुरी तरह हारी, तब मुंबई में भाजपा की विशाल जनसभा में पहुंच कर वाजपेयी जैसा नेता ही कह सकता है, “मुझे पता है, आप सब लोग यह देखने आए हैं कि हारा हुआ वाजपेयी कैसा लगता है।” एक जमाने में भाजपा की त्रिमूर्ति कहे जाने वाले वाजपेयी, आडवाणी और जोशी में जब मुरली मनोहर जोशी अध्यक्ष बने तो उनकी आडवाणी से नाराजगी तो जगजाहिर थी, लेकिन इतनी हिम्मत वे ही दिखा सकते थे कि आडवाणी के पसंदीदा और विश्वासपात्र नेताओं को उन्होंने हाशिए पर पहुंचा दिया। जोशी ने पार्टी के सबसे ताकतवर माने जाने वाले गोविंदाचार्य का बोरिया बिस्तर समेट कर चेन्नै पहुंचा दिया और आडवाणी कुछ नहीं कर पाए।
मृदुभाषी और सरल स्वभाव के कुशाभाऊ ठाकरे सबके लिए हमेशा उपलब्ध थे, लेकिन पार्टी की कार्यकारिणी बनाने के लिए वे प्रधानमंत्री निवास पर वाजपेयी के पीछे घूम रहे थे। ठाकरे ने कहा कि एक बार लिस्ट देख तो लीजिए, लेकिन वाजपेयी ने नहीं देखा। वाजपेयी ने सरकार में पार्टी की दखलंदाजी को भी बर्दाश्त नहीं किया। भाजपा के एक और अध्यक्ष रहे जिन्हें प्रधानमंत्री के बारे में टिप्पणी करने पर उन्हें मनाने के लिए प्रधानमंत्री निवास भागना पड़ा था। जना कृष्णमूर्ति को सबसे कमजोर अध्यक्ष माना जाता रहा तो बंगारू लक्ष्मण को जबरन पद छोड़ना पड़ा। संघ के विश्वासपात्र राजनाथ सिंह सबसे लोकप्रिय अध्यक्षों में एक रहे हैं। नड्डा को हिमाचल प्रदेश से केंद्र की राजनीति में लाने वाले नितिन गडकरी दूसरी बार अध्यक्ष बन सकते थे, लेकिन पार्टी के नेताओं ने ही उनके खिलाफ साजिश रच दी। गडकरी वक्त रहते नहीं समझ पाए थे कि मोदी संघ की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार तय हो गए हैं।
अभी नरेंद्र मोदी को वाजपेयी से ज्यादा ताकतवर प्रधानमंत्री माना जाता है, जिन्हें आमतौर पर संघ भी सलाह नहीं देता। 2014 में संघ के न चाहते हुए भी अमित शाह अध्यक्ष बन गए। उनके अध्यक्ष रहते नड्डा की सात महीने की इंटर्नशिप कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर हो गई है, जो उनके लिए सरकार और पार्टी के बीच के रिश्तों को समझने में कारगर साबित होगी। अभी दिल्ली और अगले साल पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनाव उनके लिए चुनौती होंगे। अगर वहां भाजपा की सरकार बनी, तो वह शाह से बड़ी लाइन खींचने वाला होगा। मोदी को पार्टी अध्यक्ष ऐसा चाहिए, जो पार्टी को आगे बढ़ाए और सरकार को ताकत दे, पर दखल न दे। उम्मीद है, आरएसएस, विद्यार्थी परिषद, भारतीय जनता युवा मोर्चा और भाजपा अनुभव नड्डा के काम आएगा। नड्डा के लिए वाजपेयी बड़ी प्रेरणा हो सकते हैं जो मुस्कुराहट और विनम्रता से देश के सबसे लोकप्रिय नेता बन गए, नड्डा में ये दोनों गुण जन्मजात हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, वाजपेयी की बॉयोग्राफी हार नहीं मानूंगा लिखी है)