झारखंड में इन दिनों एक नया विवाद छिड़ा हुआ है। यह विवाद झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के प्रमुख और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन को ‘राज्य निर्माता’ और ‘दिशोम गुरु’ बताने को लेकर है। दरअसल, स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पहले, 14 अगस्त को झारखंड सरकार ने अपने नए लोगो का अनावरण किया। समारोह में अति विशिष्ट अतिथि के रूप में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो और शिबू सोरेन थे। मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू थीं। शिबू सोरेन के नाम के आगे राज्य निर्माता और दिशोम गुरु अंकित था। बस इसी बात ने तूल पकड़ लिया।
भाजपा विधायक दल के नेता और राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने आउटलुक से कहा कि यह गलत प्रचार है। वृहद झारखंड आंदोलन के प्रणेता, जयपाल सिंह मुंडा थे। इसके बाद एनई होरो, विनोद बिहारी महतो, सूरज मंडल, शैलेंद्र महतो आदि ने भी आंदोलन किया। आंदोलन शिबू सोरेन ने भी किया मगर उन्होंने कीमत वसूल ली। मरांडी के अनुसार, “1991 में पीवी नरसिंह राव की सरकार के समय भी अलग झारखंड बन सकता था, मगर तब जो हुआ वह सबको मालूम है।” भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव एक कदम आगे बढ़कर आरोप लगाते हैं। वह कहते हैं कि नरसिंह राव ने केंद्र में समर्थन के बदले अलग राज्य की पेशकश की थी, मगर झामुमो ने पैसा लेकर अलग राज्य के गठन का मुद्दा छोड़ दिया। अटल बिहारी वाजपेयी ने रांची के मोरहाबादी मैदान में घोषणा की थी कि उनकी सरकार बनेगी तो अलग राज्य का सपना साकार होगा और उन्होंने यह किया भी।
मरांडी के अनुसार जब अलग राज्य बना तब शिबू सोरेन सांसद भी नहीं थे। सपना साकार करने का श्रेय पार्टी के रूप में भाजपा और व्यक्ति के रूप में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को जाता है। वे कहते हैं, “जहां तक दिशोम गुरु की बात है तो शिबू देश के गुरु कैसे हो सकते हैं। आदिवासी उन्हें सिर्फ गुरुजी नाम से बुलाते हैं।” मरांडी कहते हैं, “मेरे समय प्रदेश का लोगो चार ‘जे’ (झारखंड, जल, जंगल और जमीन) से घिरा था। अगर ये इसका मतलब नहीं समझ पाए तो यह इनकी विफलता है। नए लोगो में सफेद हाथी रखा गया है, लेकिन केंद्र में वन एवं पर्यावरण मंत्री रहते मैं दक्षिण अफ्रीका गया, वहां भी सफेद हाथी नहीं दिखा। हां, बीते सात-आठ महीने में हेमंत सरकार जरूर सफेद हाथी साबित हो रही है।”
भाजपा के आरोपों पर पलटवार करते हुए झामुमो के राष्ट्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं, “उन्हें समारोह में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का भाषण सुनना चाहिए था, जिन्होंने शिबू सोरेन को भीष्म पितामह और राज्य निर्माता कह कर संबोधित किया। लोग महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता, पटेल को लौह पुरुष, रवींद्र नाथ टैगोर को गुरुदेव कहते हैं। उसी तरह शिबू सोरेन को दिशोम गुरु कहने पर क्या आपत्ति है। कॉरपोरेट जगत में जीने वाले भाजपाई भारतीय संस्कृति भूल चुके हैं।” झामुमो की सहयोगी पार्टी कांग्रेस सरकार के फैसले के साथ है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज्य के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने कहा, “दिशोम गुरु यानी देश के नेता। शिबू सोरेन दिशोम गुरु के नाम से ही चर्चित हैं। भाजपा वाले नरेंद्र मोदी को देश का गुरु मानते हैं। उनकी चली तो वे गोडसे को भी भारत रत्न दे देंगे।” राज्य निर्माता के मसले पर उरांव कहते हैं कि संविधान निर्माता समिति में सात सदस्य थे, मगर लोग आंबेडकर को ही संविधान निर्माता कहते हैं। यह ठीक है कि जब यह बिल पारित हुआ तब भाजपा की सरकार थी, मगर क्या भाजपा वालों ने कभी अलग झारखंड की लड़ाई लड़ी, कभी जुलूस लेकर निकले?
प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर कहते हैं कि अलग प्रदेश चाहे जिसके शासनकाल में बना, वजह तो शिबू सोरेन का आंदोलन ही था। उन्हें राज्य निर्माता कहने पर आपत्ति करने का किसी को अधिकार नहीं है। भाजपा को इतनी ही दिक्कत है तो अपने शासन के दौरान अटलजी को क्यों नहीं झारखंड का निर्माता घोषित किया।