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पुस्तक समीक्षा: आज के दौर में धूमिल

कविता के एग्री यंगमैन सुदामा पांडे धूमिल का जीवन मात्र 39 वर्ष का रहा।
पुस्तक समीक्षा

कविता के एग्री यंगमैन सुदामा पांडे धूमिल का जीवन मात्र 39 वर्ष का रहा। अपने अल्प जीवन काल में धूमिल का एकमात्र कविता संग्रह सड़क से संसद तक (1972) ही प्रकाशित हुआ। शेष दो कविता संग्रह कल सुनना मुझे और सुदामा पांडे का प्रजातंत्र धूमिल के निधन के बाद प्रकाशित हुए। कल सुनना मुझे को 1979 में साहित्य अकादमी सम्मान भी मिला। कवि-आलोचक प्रियदर्शन धूमिल के बारे में कहते हैं कि मुक्तिबोध और रघुवीर सहाय के बाद धूमिल हमारे जटिल समय के ताले खोलने वाली तीसरी बड़ी आवाज हंै। जो बम मुक्तिबोध के भीतर कहीं दबा पड़ा है और रघुवीर सहाय के यहां टिकटिक करता नजर आता है, धूमिल की कविता तक आते-आते जैसे फट पड़ता है।

ऐसे महत्वपूर्ण कवि के समग्र की लंबे समय से साहित्य की दुनिया में कमी महसूस की जा रही थी। काम आसान नहीं था। धूमिल का जीवन अत्यन्त साधारण और बेतरतीब था। ब्रेन ट्यूमर के शिकार होकर 10 फरवरी, 1975 को वे अचानक मौत से हारे तो उनके परिजनों तक ने रेडियो पर उनके निधन की खबर सुनने के बाद ही जाना कि वे कितने बड़े कवि थे। धूमिल का लिखा अस्त-व्यस्त था। उनके पुत्र डॉ. रत्नशंकर पांडे बताते हैं कि कहीं कोई कागज का टुकड़ा, कहीं कोई नोटबुक, कहीं किसी के द्वारा समर्पित डायरी या अलग-अलग तारीख पड़े डायरी की तरह के पन्ने, कहीं पत्र या पत्रिकाओं के हाशिए पर रचनाएं बिखरी पड़ी थीं। लेकिन उन्होंने 45 वर्षों की अथक मेहनत के बाद इस काम को पूरा कर दिखाया है, जो तीन खंडों में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। प्रथम खंंड में 22 पृष्ठों की रत्नशंकर पांडे की प्रस्तावना के बाद धूमिल के तीनों कविता संग्रह - सड़क से संसद तक, कल सुनना मुझे और सुदामा पांडे का प्रजातंत्र की कविताओं के अतिरिक्त 337 ऐसी कविताएं हैं, जो अभी तक संग्रहीत नहीं हुई थीं।

इन 337 कविताओं को ‘असंगृहीत कविताएं’ परिशिष्ट में अलग रखा गया है। हिंदी कविता के पाठकों के लिए ये 337 कविताएं नायाब तोहफे से कम नहीं हैं। इस खंड में धूमिल की प्रसिद्व कविता प्रौढ़ शिक्षा को धूमिल की हस्तलिपि में छापा गया है। यह खंड कुल 535 पृष्ठ का है।

अधिकांश पाठक सुदामा पांडे धूमिल को कवि के रूप में ही जानते हैं, जबकि कक्षा सात से ही लेखन शुरू करने वाले सुदामा पांडे ने बिरहा (पूर्वी उत्तर प्रदेश का लोकगीत) से लेकर गीत, कहानी, लघुकथा, नाटक, निबंध और समीक्षा तक हर विधा में लिखा है। बांग्ला के क्रांतिकारी कवि सुकान्त भट्टाचार्य के कविता-संकलन छाड़पत्र का हिंदी में पारपत्र के नाम से कंचन कुमार के साथ अनुवाद भी किया। द्वितीय खंड में धूमिल के 65 गीत, सात मुक्तक, पांच बिरहा, पांच कहानी, पांच लघुकथा, दो नाटक और तेरह निबंध तथा समीक्षा संकलित हैं। इसमें सुकान्त भट्टाचार्य की 35 कविताओं का हिंदी में अनुवाद भी है। यह खंड 341 पृष्ठ का है।

तृतीय खंड में कवि की डायरी और उनके पत्रों को स्थान दिया गया है। 212 पृष्ठों में डायरी बताती है कि यह सिर्फ एक कवि या साहित्यिक की डायरी मात्र नहीं है, बल्कि खेत-खलिहान, ऊसर-बंजर, पालो-गोंइड, परती-पलिहर, मजदूर-बनिहार, बुआई-जुताई, पंपिंगसेट-ट्यूबवैल, बैल-बछड़ा, गाय-भैंस, हल-हरवाह, नार-मोट, पैना-पगहा, कुआं-तालाब, लोहसॉय, कोर्ट-कचहरी, थाना-चौकी, न्याय-अन्याय, वकील की फीस, सलाह-मशविरा, गांव का झगड़ा-झंझट की कथा है। इसके अलावा कार्यालय की दिनचर्या और संगी-साथियों के साथ बेबाक टिप्पणी भी है। धूमिल की डायरी छठे और सातवें दशक में आम आदमी की पीड़ा का दस्तावेज है। इस खंड में धूमिल के नामवर सिंह, काशीनाथ सिंह, विनोद भारद्वाज, धर्मवीर भारती, बिजेन्द्र, लीलाधर जगूड़ी, वेणुगोपाल, अक्षय उपाध्याय और अपने छोटे भाई कन्हैया को लिखे 61 पत्र हैं।

धूमिल के एंग्रीयंग मैन वाले व्यक्तित्व को जानने-समझने के लिए उनकी डायरी और पत्रों से संकलित खंड पठनीय है। धूमिल के दो-तीन फोटो ही अभी तक उपलब्ध थे। धूमिल समग्र में उनके कुल सत्रह फोटो भी हैं। इस तरह यह संकलन संग्रहणीय है।

धूमिल समग्र: तीन खंड

संकलन-संपादन: रत्नशंकर पांडे

प्रकाशक | राजकमल

मूल्यः प्रत्येक खंड 999 रु.

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