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पुस्तक समीक्षा: राज्यवाद के विरुद्ध

राज्य जब हिंसा का वायस बन गया है तो समाज और राज्य पर नए सिरे से विचार लाजिमी हो गया है
यह किताब एक नई वैकल्पिक दृष्टि लेकर आई है

एकदम ताजा मंजर यूक्रेन को धमकाने के लिए रूस का युद्ध है कि राष्ट्र-राज्य की परिकल्पना लगातार युद्ध, हिंसा और दबदबे, आधिपत्य का पर्याय बन गई है। राष्ट्र-राज्य ही नहीं, राज्यवाद को भी अराजक और हिंसक स्थितियों से बचने के लिए लंबे दौर से अनिवार्य बताया जाता रहा है, लेकिन लगभग उतने ही वक्त से कई सिद्धांतकारों और विचारकों ने राज्यवाद की अवधारणा को चुनौती दी है। अब जब राज्य की लोक-कल्याण की अवधारणा पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं तो उन सिद्धांतों पर नए सिरे से गौर करना प्रासंगिक हो उठा है।  

हिंदी के चर्चित कवि, नाटककार और लेखक, गांधीवादी नंदकिशोर आचार्य के संपादन में अह‌िंसा-शांति ग्रंथमाला के तहत आई सत्यम कुमार सिंह की किताब 'अराज्यवाद अह‌िंसक व्यवस्‍था की तलाश' एक नई वैकल्पिक दृष्टि लेकर आती है। इसमें राज्यवाद के विरुद्घ तमाम सिद्धांतकारों की दृष्टि के समन्वय के साथ नए सवालों पर गहन विश्लेषण है।

गौरतलब यह भी है कि 'एनार्किज्म' के लिए अराज्यवाद शब्द का इस्तेमाल किया गया है, क्योंकि, बकौल लेखक, अराजकता की ध्वनि निंदात्मक है। उद्धरण देखिए, 'राज्यवाद में यह धारणा निहित है कि राज्य के नहीं होने से मनुष्य-मनुष्य के खून के प्यासे हो जाएंगे। लेकिन यह अबूझ नहीं है कि यह राज्य के ही लक्षण हैं, चाहे तालिबानी राज्य हो या अमेरिकी।'

बहरहाल, राज्य जब हिंसा का वायस बन गया है तो समाज और राज्य पर नए सिरे से विचार लाजिमी हो गया है। इसी मामले में यह किताब पठनीय है, ताकि मनुष्य के मूल अहिंसक स्वभाव के अनुरूप व्यवस्‍था पर जोर दिया जा सके।

अराज्यवाद अहिंसक व्यवस्‍था की तलाश

सत्यम कुमार सिंह

प्राकृत भारती अकादमी

मूल्यः 260 रु. | पृष्ठः 126

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