भारतीय भाषाओं, हिंदी सहित, के काव्य में मां की उपस्थिति तो मिल जाती है मगर पिता कम दिखाई देते हैं। पिता से प्रेम के साथ द्वंद्वात्मक रिश्ता रहता आया है। युवा कवि सतीश नूतन ने हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं से अनूदित पिता केंद्रित कविताओं का चयन कर संकलन संपादित किया है। इसमें कई क्षेत्रीय भाषाओं में अनूदित कविताएं संकलित हैं।
असमिया कवि मणिकुन्तला भट्टाचार्य की कविता “जवाहर लाल नहीं था उनका नाम/और रखा नहीं था मेरा नाम इंदिरा/कभी भी उन्होंने मुझे लिखी नहीं थी लंबी चिट्ठी/अथवा बताया नहीं था विश्व कविता का इतिहास/स्वदेश की गरिमा/मगर उन्होंने इशारे से दिखाया था मुझे तारों भरा आकाश।”
गुजराती कवि राजेन्द्र पटेल पिता के छाते को याद करते हैं, “जब-जब घने बादल उमड़ते/भयानक बिजली गिरती/जोरदार आंधी चलती/ तब रखता अपने साथ/बाबूजी का यह जीर्ण छाता।”
हिंदी एवं सिंधी भाषा के कवि हरीश करमचन्दाणी की कविता, “पद में सपना भी उनका पूरा न हुआ/ और सपनों की तरह बेशक/अगर वह नामपट्ट मैंने संभाल रखा है/इस उम्मीद के साथ कि उनके हर सपने को/मैं पूरा करूंगा/ उनके उस बड़ी और बेहतर/ दुनिया के सपने के साथ खुद को जोड़कर।”
संकलन में सर्वाधिक कविताएं हिंदी की हैं। अज्ञेय, रघुवीर सहाय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, कुंवर नारायण, चन्द्रकान्त देवताले, विष्णु खरे, लीलाधर जगूड़ी, राजेश जोशी, अरुण कमल, विष्णु नागर, मंगलेश डबराल, विजय कुमार सहित वरिष्ठ एवं युवा सत्तर कवि सम्मिलित हैं जो इस संकलन को महत्ता प्रदान करते हैं।
इससे पहले युवा कवि कुमार अनुपम के संपादन में “प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता” शीर्षक से पिता केंद्रित कविताओं का संकलन प्रकाशित हो चुका है। इस संकलन में केवल हिंदी कविताएं ही संकलित थीं। इसलिए यह संकलन महत्वपूर्ण हो जाता है।
अंधेरे में पिता की आवाज
(काव्य संकलन)
सतीश नूतन
प्रकाशकः संभावना प्रकाशन
मूल्यः 450 रुपये पृष्ठ: 296