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पुस्तक समीक्षाः संवेदना विस्तार की कथा

एलजीबीटीक्यू समुदाय पर इस दौर में बात करने की झिझक भले ही टूट रही हो, लेकिन अभी भी ऐसे रिश्ते समाज में सहज नहीं है
ये दिल है कि चोर दरवाजा

एक धारणा है, जो इस समुदाय के प्रति होती है, एक आवरण जो इस समुदाय को घेरे रहता है। इस आवरण की वजह से कयास हैं। जहां भी कयास होते हैं, वहां परिणाम गलत होते हैं। 

एलजीबीटीक्यू समुदाय पर इस दौर में बात करने की झिझक भले ही टूट रही हो, लेकिन अभी भी ऐसे रिश्ते समाज में सहज नहीं है। किंशुक इन्हीं अधूरे मन की कहानियों को लिख कर सहजता लाने का प्रयास कर रहे हैं। प्रेम ऐसी भावना है, जो लिंग देखकर तय नहीं की जा सकती। एलजीबीटीक्यू का बढ़ता दायरा बताता है कि अब वे अपनी भावनाओं को लेकर मुखर हैं। इस मुखरता का दस्तावेजीकरण किंशुक कहानियों के रूप में कर रहे हैं। यह संग्रह पूरी तरह से इस समुदाय, उनकी भावाओं, उनकी प्रेम कहानियों को समर्पित है। समलैंगिकों की स्वीकार्यता के लिए अभी बहुत लंबा रास्ता तय होना है। लेकिन जब साहित्य में इस पर खुल कर बात होने लगेगी, तब माहौल निश्चित तौर पर बदलेगा। 

इस समुदाय को लेकर एक पर्दा है, जिसे किंशुक धीरे-धीरे खोल रहे हैं। कुल 8 कहानियों के इस संग्रह में प्रेम का हर रूप है। किंशुक छोटी-छोटी खिड़कियां बना रहे हैं, ताकि स्वीकार्यता का झोंका उस खांचे में जा सके। जब ऐसा होगा, तो इस समुदाय को अलग से पहचान, अलग से प्रेम और इस प्रेम के लिए कानूनी पेचिदगियों ने नहीं गुजरना पड़ेगा।

प्रेम की अनुभूति में लिंग बाधा नहीं होना चाहिए। इन कहानियों में भी वैसी ही संवेदनाएं हैं, जैसे किसी आम इंसान में होती हैं। ये कहानियां संवेदना के उस स्तर को छूती हैं, जहां पाठको को कोई होमोसेक्चुअल, लेस्बियन या गे नहीं बल्कि प्रेम करने वाले इंसानों का समूह दिखाई देता है।

ये दिल है कि चोर दरवाजा

किंशुक गुप्ता

प्रकाशक | वाणी

पृष्ठः 200 | मूल्यः 450

 

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