वंशी माहेश्वरी का नाम आते ही सामने विश्व कविताओं के हिंदी अनुवाद की पत्रिका ‘तनाव’ तन कर खड़ी हो जाती है। कोरोना काल की विश्वव्यापी असहनीय वेदनापूर्ण आपदा समूचे विश्वव्यापी समाज पर टूट पड़ी थी। संवेदना के इस मूक-काल में विदीर्ण हृदय से कुछ शब्द धरती पर ढुलक पड़े थे। वंशी माहेश्वरी की कविताओं के ‘समालोचन’ में प्रकाशित होते ही प्रतिक्रियाओं के आंसू गिरने लगे थे। लग रहा था मानो उनकी अपनी कविता सामने आकर खड़ी हो गई है। एक भाषातीत हूक उठी और सभी भाषाओं को अपने में लपेटती गई।
वंशी माहेश्वरी की इन कविताओं के अनुवाद के दो संग्रह संभावना प्रकाशन से आकर अभी तक का कविता जगत का असंभव-सा कर्तव्य निभा रहे हैं। भारतीय चौदह भाषाओं का संग्रह ‘उजड़ी उम्मीद की प्रार्थना’ बीस छोटी और छह एक पृष्ठीय कविताओं की एक अनूठी दुनिया है। यह हिंदी कविताओं की एक अनूठी दुनिया है। ये हिंदी कविताएं संग्रह के सोलह पृष्ठों में समाहित होकर ग्यारह भारतीय भाषाओं में दो सौ इक्कीस पृष्ठों में अपना रचना संसार रचती हैं।
वंशी माहेश्वरी की ये हिंदी कविताएं संस्कृत, गुजराती, मराठी, उर्दू, राजस्थानी, पंजाबी, डोगरी, असमिया, ओडिया, बांग्ला कन्नड़, तेलूगू, मलयालम और तमिल भाषाओं में हैं। अनुवादकों में राधावल्लभ त्रिपाठी, उदयन ठक्कर, राजा होलकुंदे, नोमान शौक (सैयद मोहम्मद नोमान), कृष्ण बृहस्पति, हरजोत सिंह, डॉ. आदर्श प्रकाश, किशोर कुमार जैन, स्वर्ण ज्योति, डॉ.सुब्रमण्यम शर्मा, कृष्ण नारायण स्वामी, इरफेन जोसफ, पूर्णचुद्र रथ, डॉ. रामशंकर द्विवेदी हैं।
इस संग्रह की पहली कविता हजारों सूर्य/निस्तेज हैं/ जलती चिताओं में/ चिता की आग में/ आग का आर्तनाद। कोरोना की भयावहता को वंशी माहेश्वरी की बारहवीं कविता इस तरह दर्ज करती है - दूर-दूर तक/ गिरिस्तियों के खंडहर/ छितराए हैं/ ये मोहनजोदड़ों - हड़प्पा नहीं है। जीते-जागते/ मनुष्यों का उत्खनन है। कोरोना काल में गांव-गांव, शहर - शहर अनवरत चिताएं जल रही थीं उसे कवि ने इस पंद्रहवीं कविता में इस तरह देखा- रात इतनी लंबी हो चली/ इन दिनों/ लालिमा तो फूटती है/ सुबह नहीं होती।
इन छोटी कविताओं में अंतिम बीसवीं कविता में कोरोना का व्यापक परिदृश्य ही समा गया है - गिनती ही भूल गई/ गिनती/ शवों को गिनते-गिनते। संवेदना/ शब्दों की तुक-तान/ क्रीड़ा रचती/ हाकिमों के अट्टहास में/ खो गई।
छोटी बीस कविताओं के एक पृष्ठीय छह कविताओं में चौथी कविता -पृथ्वी में/ खौफ समाया है/ मौत की बारिश में नहाता बसंत/ भयभीत है। इन कविताओं को हिंदी-लिपि से मिलती-जुलती भाषाओं में पढ़ना भारतीय भाषा परिवार से परिचय कराता है। ‘ए रिवर लॉस्ट इन द सैंड’ सात विदेशी भाषाओं में अनूदित इन कविताओं का दूसरा संग्रह है। भारतीय वेदना से उपजी कविताओं की अनुगूंज विदेशी भाषाओं की मनोभूमि को अपने में आत्मसात करती है। मनुष्य की धरती के किसी भी कोने से उठी चीख उसका अर्थ एक ही होता है।
वंशी माहेश्वरी की इन छब्बीस हिंदी कविताओं का वितान इंग्लिश, रशियन, फिनीश, मंदारिन (चीन) कोरियन, फारसी (परशियन) और फ्रेंच भाषा में एक सौ पचासी पृष्ठों में फैला हुआ है। इन कविताओं का अनुवाद इंग्लिश में मधु बी. जोशी, रूसी में सोनू सैनी, फिनिश में सईद शेख, चीनी में संदीप बिस्वास, कोरिया में मुकेश कुमार जायसवाल, फारसी में अखलाक अहमद खान और फ्रांसीसी में हेमंत जोशी ने किया है। इस संग्रह में भी अनुवादकों का परिचय चित्र सहित है।
इन दोनो संग्रहों ने यह इशारा भी दिया है कि हिंदी की महत्वपूर्ण कविताओं के इस प्रकार के संग्रह भाषाओं की जमीन तोड़ सकते हैं।