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पुस्तक समीक्षा: मुस्लिम मर्म

प्रसिद्ध विचारक राजमोहन गांधी की किताब अंडरस्टैंडिंग मुस्लिम माइंड बेहद महत्वपूर्ण है
पुस्तक समीक्षा

हालिया आम चुनावों के नतीजों ने देश के जनमानस को जानने-समझने की नई खिड़की खोली है, जो प्रचारित नैरेटिव से काफी अलग है। यह जनादेश हिंदू-मुसलमान रिश्‍तों को लेकर कई फैलाई गई भ्रांतियों और ग्रंथियों को भी तोड़ता है और नए सिरे से विचार के दरवाजे खोलता है। इस संदर्भ में प्रसिद्ध विचारक राजमोहन गांधी की किताब अंडरस्‍टैंडिंग मुस्लिम माइंड बेहद महत्‍वपूर्ण है। 1985 के आसपास प्रकाशित इस किताब का हिंदी अनुवाद इस मौके पर विशेष महत्‍व का हो सकता है। अनुवाद वरिष्‍ठ पत्रकार अरविंद मोहन ने किया है। यह देश के एक खास तबके में बनी तमाम भ्रांत धारणाओं को तोड़ती है, जिन्‍हें तथाकथित ‘इतिहास’ बताकर पेश किया जाता है। इससे यह भी पता चलता है कि हिंदू और मुसलमान समुदायों की मानसिक संरचना में कितनी एकरूपता है, एक तरह से सोचते-समझते हैं और दोनों समुदाय हर पहलू से कितने एक-दूसरे के नजदीक हैं। किताब में बंटवारे को लेकर जन्‍मी खटास को बारीकी से समझने के लिए उस दौर के प्रमुख मुसलमान नेताओं सैयद अहमद खां, मुहम्‍मद इकबाल, मुहम्‍मद अली, मुहम्‍मद अली जिन्‍ना, फजलुल हक, अबुल कलाम आजाद, लियाकत अली खां और जाकिर हुसैन के जीवन, राजनीति और विचारों को गहराई से सामने लाती है। यह ऐतिहासक तथ्य गौरतलब है कि बंटवारे के पक्ष में दस प्रतिशत से भी कम मुसलमानों से राय ली गई थी। आज के संदर्भ में उन्‍हें जानना-समझना हमें नई दिशा में ले जा सकता है।

मुस्लिम मन का आईना

राजमोहन गांधी

अनुवाद: अरविंद मोहन

प्रकाशन | राजकमल

पृष्‍ठ: 400 | मूल्‍य: 499 रुपये

 

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