नई पीढ़ी यह जानकर अवाक रह जा सकती है कि अपने दूसरे आम चुनाव में राजीव गांधी भरी गर्मी में पैसेंजर ट्रेन के साधारण दूसरे दर्जे में सवार होकर उत्तर प्रदेश की चुनावी खाक छानने निकल पड़े थे। या अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को ‘‘पत्रकारों को ऐसे निशाना बनाया गया मानो वे कारसेवकों के कट्टर दुश्मन हों।’’ या ऐसे ही अनगिनत किस्से कोई करीब से खींची गई खास तस्वीरों और किस्सागोई की शैली में उस दौर के सुनाए, जब देश की राजनीति, समाज, अर्थनीति सब करवट बदल रही थी तो यकीनन दिलचस्प ही नहीं, नए उद्घाटन की तरह होगा। वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट जगदीश यादव ऐसी ही अनेक कहानियां और छवियां अपनी किताब व्यूफाइंडर: तमाशा मेरे आगे में लेकर आए हैं। वे उन सियासी घटनाओं के बेहद करीबी गवाह रहे हैं, जो उनकी न्यूज फोटोग्राफी के करीब आधी सदी का एक सफरनामा भी है।
ये सिर्फ सियासी घटनाओं की छवियां नहीं हैं, बल्कि इन किस्सों में नेताओं के व्यक्तिगत जीवन, आचार-व्यवहार, उनकी राजनैतिक प्रतिबद्धताओं और महत्वाकांक्षाओं के भी अक्स हैं। कुछ छोटी-छोटी वक्र टिप्पणियां, ब्यौरे और बोलती तस्वीरें भी बेहद सहजता से जैसे सच को उद्घाटित करती चलती हैं। कुछ बेहद मार्मिक और मानवीय पल भी कैद हैं, जो आज विरले ही देखने को मिलते हैं। खासकर नई और करिअर पसंद पीढ़ी के लिए यह अजूबा और चकित करने वाला हो सकता है।
इस व्यूफाइंडर में सिर्फ नेता नहीं, पत्रकारों-संपादकों की दृढ़ता के भी ऐसे हवाले हैं, जो आज की पत्रकारिता में बमुश्किल ही देखने को मिलती है। पर ठहरिए, इसमें ऐसे भी किस्से हैं जो कुछ के दिखावे और असलियत की पोल खोल देते हैं, उनके सत्ता वालों से संबंधों और अनुग्रह प्राप्त करने की फितरत में समझौते करने के तरीकों को भी जाहिर कर देते हैं।
फिर, वे ऐतिहासिक पल भी कैद हैं, जो मील के पत्थर की तरह दर्ज हैं। मसलन, फूलन देवी की पहली तस्वीर जगदीश यादव ने खींची, जो आनंद बाजार पत्रिका और टेलिग्राफ में छपी। लेकिन फूलन कैसी थी: ‘‘मुड़कर देखा तो...एक ऐसी लड़की खड़ी थी जैसी ग्रामीण इलाकों में बहुत गरीब परिवारों की लड़कियां मेहनत-मजदूरी करती दिखती हैं। पहनावा लड़कों की तरह था। बाल खुले थे। मुझे हैरानी हो रही थी कि कद-काठी में भी कमजोर खूंखार कैसे हो सकती है। मैंने सोचा था कि वह लंबी, खतरनाक और डरावनी दिखने वाली डाकू होगी। सच कहूं तो फूलन को देखने के बाद उसकी तस्वीरें खींचने के प्रति आकर्षण भी कम हो चुका था।’’ इसके साथ बाबा घनश्याम के भी अजब किस्से हैं। इससे वाकई कई छवियां टूटती और बनती हैं।
ऐसे ही 1987 का मेरठ नरसंहार, सूरत का प्लेग, उत्तरकाशी भूकंप, 1992 का बाबरी विध्वंस, करगिल युद्ध वगैरह, आप शायद जितनी अहम घटनाओं, आपदाओं का नाम लें, जगदीश यादव को हर जगह मौजूद पाते हैं या उससे जुड़े दिलचस्प और मर्म छूने वाले किस्से आपको नई जानकारी से लैस करते हैं। जनता दल का गठन भी कैद है। अहम नेता तो उस दौर का शायद ही कोई होगा, जो उनके कैमरे के लेंस और कुछ अलग अंदाज के किस्से से अछूता होगा। मसलन, इंदिरा गांधी, राजीव, सोनिया, प्रियंका की शादी, मनमोहन सिंह के खास अंदाज हैं, तो लालू प्रसाद, मुलायम सिंह यादव के गजब के अनकहे किस्से और व्यक्तिगत व्यवहार की परछाईं भी है। चरण सिंह, राज नारायण, ज्ञानी जैल सिंह और किसान नेता टिकैत के अक्स हैं, तो चंद्रशेखर, वीपी सिंह, देवीलाल, जॉर्ज फर्नांडिस, अर्जुन सिंह, मुरली मनोहर जोशी लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, सब उनके लेंस के दायरे में हैं। 1988 में बोट क्लब पर किसान नेता टिकैत के प्रसिद्ध धरने के पहले मेरठ धरने का एक दृश्य देखें: ‘‘धरने में मेरी मुलाकात चौधरी टिकैत की पत्नी से हो गई। मैंने उनसे पूछ लिया कि विरोध प्रदर्शन के क्या कारण हैं। उन्हें ज्यादा लेना-देना नहीं था। उन्होंने कुछ अलग कारण बताया कि ‘‘मुख्यमंत्री बीर बहादुर ‘छोरन ने नौकरी ना दे रहा।’’’
यूं तो छोटे-छोटे किस्सों की भरमार है लेकिन 1992 में गणतंत्र दिवस पर तब के भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की श्रीनगर में तिरंगा फहराने की यात्रा की कुछ छवियां दिलचस्प हैं। ‘‘जोशी जी 24 जनवरी को जम्मू में डेरा डाले थे। पहले सड़क मार्ग से श्रीनगर जाना था, लेकिन सुरक्षा कारणों से नेताओं का हवाई जहाज से जाना तय हुआ। मुझे भनक लग गई। मैं भी साथ था जहाज में। मैं इकलौता न्यूज फोटोग्राफर था। नेताओं के चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं। एक सेना के अधिकारी बता रहे थे कि उतरने पर अगर गोलीबारी हो जाए, तो घबराना नहीं है, वहीं लेट जाना है। उसके फौरन बाद संन्यासिनी उमा भारती सीट के नीचे छुपने का अभ्यास करने लगीं। जल्द ही उनके सहयोगी कलराज मिश्र और अन्य लोग भी ऐसा करने लगे।’’
किताब में इसके अलावा नए दौर में न्यूज फोटोग्राफरों और बेशक पत्रकारों के लिए भी अहम सीख है, हालांकि एक बात खलती है कि तस्वीरों को ज्यादा अहमियत नहीं दी गई है। अगर अलग से फ्रेम में बेहतर छपाई के साथ तस्वीरें भी होतीं, तो शायद न्यूज फोटोग्राफी के अक्स भी देखने को मिलते। फिर, अनेक जानकारियों के लिए यह किताब पठनीय है।
व्यूफाइंडर- तमाशा मेरे आगे
जगदीश यादव
प्रकाशन | मानक पब्लिकेशन
पृष्ठ: 145
मूल्य: 1,000 रुपये