फिल्म लगे रहो मुन्ना भाई के दो पात्र मुन्ना और गांधी का प्रेत चित्रपट से कृष्ण कुमार की नई पुस्तक थैंक यू, गांधी से अकादमिक विमर्श में जगह बना रहे हैं। आजाद भारत के शिक्षा विमर्श में शिक्षा शास्त्री कृष्ण कुमार की खास जगह है। यह पुस्तक कृष्ण कुमार के अब तक के रचनाकर्म से बहुत भिन्न है। अब तक उन्होंने शिक्षा विमर्श पर शोधपरक लेखन किया, बाल साहित्य लिखा, अखबारी कॉलम लिखे, लेकिन उपन्यास लिखने का यह उनका पहला प्रयास है ।
यह उपन्यास कृष्ण कुमार (‘क’ इसी नाम से वे खुद इस उपन्यास में प्रवेश लेते हैं) और मुन्ना तथा गांधी के आपसी संवाद में वर्तमान भारतीय राजनैतिक परिदृश्य के विवेचन का प्रयास है। अगर गांधी होते (जैसे सईद आलम का बहुचर्चित नाटक, ग़ालिब इन न्यू दिल्ली) तो क्या कहते, क्या सोचते और क्या उत्तर देते! गांधी होते, तो हिंदू राष्ट्रवादी नेतृत्व से क्या और कितना घृणा करते, गांधी ने तो अंग्रेजों से भी घृणा नहीं की, पाप से घृणा की, पापी से नहीं। इसी पहले काल्पनिक संवाद से गांधी पहली बार पाठकों से रू-ब-रू होते हैं। सत्य क्या है, गांधी के अनुसार सत्य क्या है? चौबीस घंटे न्यूज चैनलों के युग में सत्य क्या है? सूचना के अधिकार के युग में ‘सत्य’ क्या है? धर्म और सत्य का क्या संबंध है? इन सब प्रश्नों के उत्तर में गांधी क्या कहते? टैगोर ने जब कृष्ण के शस्त्रविहीन महाभारत के नेतृत्व का रूपक गांधी के असहयोग आंदोलन नेतृत्व को दिया और पूछा कि ‘जब आप नहीं रहोगे तो लोगों को लौटने को कौन कहेगा?’ इस प्रश्न का उत्तर आज कौन देगा, लोगों को धार्मिक राष्ट्रवाद पर जाने से कौन चेताएगा, कौन लौटने को कहेगा? कौन सारे ‘इलाहाबादों’ के नए नामकरणों से रोकेगा? और जब मुसलमानों ने ‘पाकिस्तान’ ले ही लिया तो ‘भारत’ हिंदुओं का क्यों नहीं हो, ये सारे प्रश्न आपको उत्सुक करते हों और जानने की इच्छा हो कि गांधी होते, तो क्या उत्तर देते तो यह पुस्तक अपरिहार्य रूप से पढ़ें।
कृष्ण कुमार कुछ और रोचक प्रश्न भी उठाते हैं। जैसे, लिंकन, कनेडी और मार्टिन लूथर के हत्यारों को कोई याद नहीं करता, लेकिन गांधी का हत्यारा क्यों महिमामंडित होकर हमारी-आपकी चेतना को अपराध-बोध से ग्रस्त करते हैं? परसाई द्वारा इंगित विद्रूपता जिसमें गांधी- गोडसे से मारे जाने वाले के रूप में जाने जाएंगे, इस युग का सत्य बन पड़ा है। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की यह कविता लिखना कि ‘अच्छा हुआ गांधी तुम नहीं रहे, वरना इस देश के जननायक पता नहीं तुम्हारा क्या करते।’ इस उपन्यास के गद्य का कलेवर है और उद्घोषणा भी कि भारतीय वर्तमान परिदृश्य में गांधी से अधिक प्रासंगिक और वांछनीय कुछ भी नहीं है।
हम और आप गांधी को अनन्य भारतीय संकल्पनाओं, संस्थाओं, संस्कारों, रीतियों और अनुभूतियों के लिए शुक्रिया अदा करने को बाध्य हैं। गांधी के हत्यारे भी गांधी-दर्शन की हत्या नहीं कर पा रहे हैं और अपनी गांधी-विरोध की राजनीति के प्रस्थान बिंदु के लिए वे भी गांधी के शुक्रगुजार होने को मजबूर हैं। गांधी-विमर्श को गांधी-उद्योग न बना दिया जाए, इस क्रम में किताब महत्वपूर्ण हस्तक्षेप करती है। इसे पढ़ना चेतना और आत्मा का पोषण है। गांधी जो भारत बनते हुए देखना चाहते थे, उसकी रूपरेखा की बानगी भी इस किताब का उद्देश्य है। हमारा आपका गांधी के उस ‘भारत-भविष्य’ के सपने में शामिल होना जरूरी है वरना आने वाली पीढ़ी को शायद हम बकौल कृष्ण कुमार यही कहेंगे, “सपना तब टूटा, जब हम सो ही रहे थे, हमें पता ही नहीं चला।” पुस्तक शीघ्र ही अन्य भाषाओं में अनूदित होकर अनेक पाठकों तक पहुंचे, यह गांधी और गांधी का भारत होने के लिए अनिवार्य है।
थैंक यू, गांधी
कृष्ण कुमार
प्रकाशक | पेंगुइन
पृष्ठ: 224 | कीमतः 499 रु.
(लेखक हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में अध्यापक हैं)