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31 मार्च 2025 · MAR 31 , 2025

पुस्तक समीक्षा: जज्बाती गीतकार

यह पुस्तक उन सब लोगों के लिए है, जो फिल्मी गीत तो सुनते हैं लेकिन अक्सर उनकी गहराइयों से परिचित नहीं हो पाते
गीतकार शैलेन्द्र पर एक उम्दा किताब

पुस्तक के लेखक फिल्म-संगीत की दुनिया का जाना-पहचाना नाम हैं। विविध भारती, मुंबई में उद्घोषक युनूस को उनके श्रोता सिनेमा जगत की नामी हस्तियों के इंटरव्यू के लिए जानते हैं। इस बार वे कालजयी और हर दिल अजीज गीतकार शैलेन्द्र पर ऐसी किताब लेकर आए हैं, जिसका इंतजार न जाने कितने साल से उनके मुरीदों का था। पिछला साल गीतकार शैलेन्द्र का जन्मशती वर्ष भी था। जाहिर है उन पर जितने कार्यक्रम होने चाहिए थे उतने हुए नहीं। यह किताब उनके रचनात्मक और जीवन के दोनों पहलुओं पर नजर डालती है। यूनुस मानते हैं कि शैलेन्द्र के गीतों पर अभी विश्लेषण बाकी है। उन्हें जिस मुकाम पर रखना चाहिए था, जिसके वे सही मायने में हकदार थे, वह उन्हें अभी मिलता बाकी है। यूनुस कहते हैं, ‘‘मैंने अपनी किताब में उनके गानों और फिल्मों में उनकी जगह का विश्लेषण करने की कोशिश की है।’’

यह पुस्तक उन सब लोगों के लिए है, जो फिल्मी गीत तो सुनते हैं लेकिन अक्सर उनकी गहराइयों से परिचित नहीं हो पाते। हर गाने के बनने के पीछे बहुत सी कहानियां होती हैं। कुछ तो इतनी दिलचस्प की पढ़ने के बाद उस गाने के प्रति धारणा बदल जाती है, अहसास बदल जाते हैं। उम्मीदों के गीतकार शैलेन्द्र किताब में लेखक ने इस बात पर जोर दिया है कि हर गाने किस तरह स्क्रिप्ट या किरदार के लिए लिखे गए यह कहानी पाठकों को पता चले। यह किताब उन पाठकों के लिए बहुत मूल्यवान है, जो अपने पसंदीदा गीतकार को करीब देखना और समझना चाहते हैं।

किताब शैलेन्द्र की रचनात्मकता पर करीने से प्रकाश डालती है। उनकी रचनात्मकता पर जब बात होती है, तो उनके गीत अलग ढंग से हमारे सामने आते चलते हैं। उनकी कला, संरचना का अलग ही दृश्य हमारे सामने आता है। हर दृष्टिकोण से किसी को देखना तभी संभव है, जब उस व्यक्ति के संघर्ष को भी साथ में देखा जाए। यह पुस्तक हर पहलू को देखती भी है और दिखाती भी है।

गीतकार-कवि शैलेन्द्र का फिल्मी जीवन बहुत संक्षिप्त रहा। आम दर्शक उन्हें तीसरी कसम फिल्म से आगे शायद ही जानती हो। इस छोटे-से फिल्मी जीवन में उन्होंने ऐसे-ऐसे गीत दिए, जो कहीं न कहीं हर भारतीय के जीवन से जुड़ गए। उनके गीतों ने भारतीय समाज पर गहरा असर डाला। उनके गीतों में समाज का संघर्ष था, तो गहरे प्यार की भावनाएं भी थीं।

याद कीजिए प्रेम-त्रिकोण पर बनी किशोर साहू की फिल्म दिल अपना प्रीत पराई (1960) का ‘‘अजीब दास्तां है ये, कहां शुरू कहां खतम’’ गीत। इस गाने में प्यार भी है और दर्शन भी। इस जज्बाती गीत में स्त्री की पीड़ा है लेकिन प्रेमी के लिए शुभकामनाएं ही हैं। शैलेन्द्र को यदि मानवीय संबंधों का कवि कहा जाए, तो भी यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। वे अपनी दुनिया में रहे और बिना शोर शराबे के शब्दों से दुनिया की हर भावना रचते रहे।

उम्मीदों के गीतकार शैलेन्द्र

यूनुस खान

प्रकाशक | राजकमल

कीमतः 350 रुपये | पृष्ठः 270 

 

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