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पुस्तक समीक्षाः सम्मान से जिंदा रहने की जिद

शादी में प्रेम और सम्मान की तलाश और फिर बिखराव से खुद को संभालना किस तरह एक औरत को और मजबूत बनाता है इसकी बानगी भी इस किताब में दर्ज है
पितृसत्ता के दबाव को रेखांकित करती पुस्तक

असल में ‘प्यार की बंजारन तलाशः एक साधारण औरत की साधारण आत्मकथा’ एक जुझारू जीवट वाली महिला लालिमा सिंह की असाधारण जीवनगाथा है। आत्मकथा में अपने और अपनों से जुड़े लोगों के बारे में बेबाकी से लिखना बहुत कठिन है। अपने समय, समाज और अपने को बेनकाब करना पेचीदा काम है। जाहिर है, इस जटिल प्रक्रिया से गुजरने का आत्मसंघर्ष भी बड़ा होगा।

लालिमा की किताब पढ़ते हुए अक्सर राह में स्मृतियां घेर लेती हैं। बार-बार अतीत गहराता है और कोहरे में लुप्त हुआ सच सामने आ जाता है। कई बार उलझे वजूद का हिस्सा बन कर उभरे साधारण से दिखने वाले मुद्दे महत्वपूर्ण बन जाते हैं। लेखिका लालिमा को विचारधारा से लैस सचेत राजनैतिक पहलकदमी ही हर स्टेज पर उम्मीद का दामन पकड़ा जाती है। शादी में प्रेम और सम्मान की तलाश और फिर बिखराव से खुद को संभालना किस तरह एक औरत को और मजबूत बनाता है इसकी बानगी भी इस किताब में दर्ज है। प्रेम में यातना से लेकर धोखा खाने को अपनी नियति मानने से इनकार करते हुए लालिमा ने बेबाकी से बताया कि कैसे वह आगे बढ़ी, लेकिन बेटे को देखने, उसके साथ होने की टीस जिंदा रही। फिर घर बसाया और फिर झेला नशे के लत से तबाह होते सपनों का दंश।

आत्मकथा तीन भाग में साल के हिसाब से बंटी है। भाग एक को 1965से 1977 और भाग 2 को 1977 से 1987 तक समेटा है। फिर भाग 3 में 1987 से लेकर अब के सफर को कमलबद्ध किया है। बचपन से लेकर युवा होने तक किस-किस तरह से पितृसत्ता के दबाव को महसूस किया, उसको उन्होंने बेहिचक रखा है। शिक्षा के लिए सोवियत संघ की यात्रा और वहां बिताया समय सुनहरे दौर के रूप में सामने आता है। वाम पृष्ठभूमि के पिता को कितनी मुश्किलों से एक मुसलमान सलमान से शादी के लिए तैयार किया, इसका जिक्र खासे दर्द के साथ किताब में मौजूद है। मनपसंद शादी ही स्त्री के जीवन की हैप्पी एंडिंग नहीं है यह लिखना पूरे विस्तार से, बहुत हिम्मत की बात है। और फिर संबंधों में यातना का अंतहीन दौर। यही है प्यार और सम्मान की बंजारन तलाश।

स्त्री की साफगोई पितृसत्ता की ह्रदयहीनता से टकराती है। औरत का संबंध बनाने से इनकार उसका विद्रोह मान लिया जाता है। फिर तो सांस सुरक्षित लेने के लिए स्त्री को जमीन की खोज होती है। घर चाहे वह दड़बा क्यों न हो, स्त्री के लिए अपना स्पेस होता है। आसपास से उठाए पात्र भी चले आते हैं जीवन में, जिनके जरिए लेखिका वर्ग विशेष समाज की गुलाम मानसिकता बयां करती हैं। जीवन के तमाम रंग कैसे बदरंग हुए इसकी तपिश में अपनी पहुंच से बहुत दूर, इच्छित ख्वाहिशों को लिए अनवरत संघर्ष का दस्तावेज है लालिमा सिंह की यह किताब। जिसमें एक मां की तड़प एक जिंदा दर्द की तरह महसूस होती है। यह पाठक को बांधकर रखती है। आत्मकथा की भाषा सरल है। कहीं-कहीं घटनाओं के तारतम्य में आगे-पीछे जरूर है, लेकिन कुल मिलाकर आत्मकथा पठनीय है।

 

प्यार की बंजारन तलाश

लालिमा सिंह

प्रकाशक | गुलमोहर किताब

कीमतः 295 रुपये | पृष्ठः 234 

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