क्या एक दशक पहले तक किसी ने ऐसा सोचा था कि हमारे देश की धरती पानी के लिए तरस जाएगी? गांवों में फटी हुई जल विहीन जमीन की भयावह दरारें अब दिखने लगी हैं और ये दरारें सिर्फ पिछले साल की गर्मी के कारण नहीं, वरन भूगर्भ में 3 से 8 मीटर तक सूख गए जलस्रोतों के कारण हैं। धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। उसके गर्भ में संरक्षित पानी के स्रोत लगभग समाप्त हो गए हैं। वैज्ञानिकों ने हिमनदियों का अनुसंधान किया तो उन्हें पता चला कि धरती के बढ़ते हुए तापमान के कारण हिमनदियां पिघल रही हैं। इसके परिणाम से हिमालय से उपजी हुई नदियां भी सूख रही हैं। ये हिमनदियां गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र के पानी की स्रोत हैं। भारत के पास गर्व करने लायक दो ही चीजें हैं। एक बुद्ध, दूसरी गंगा। बिना गंगा के भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। यह तय है कि गंगा के साथ यहां का धर्म और संस्कृति भी खत्म हो जाएगी।
तिब्बत की एक प्रसिद्ध नदी है पारछू। तिब्बत से निकलकर यह स्पीति तक आती है। तकरीबन बीस साल पहले पारछू नदी पर बनी झील टूटने की कगार पर थी। उस वक्त के चीनी दूतावास की प्रवक्ता यांग शूइंग ने भारत सरकार को चेताया था कि कृत्रिम झील फट जाने की सूरत में किसी बड़ी आपदा से निपटने के लिए भारत को तैयार रहना चाहिए। तिब्बत के ग्लेशियरों के लगातार पिघलते चले जाने और बहुत तेज बरसात होने के कारण इस झील का पानी बढ़ता चला जा रहा है। अगर वह हिमाचल प्रदेश को इस हद तक डुबा देगा कि पूरे उत्तर भारत को बिजली सप्लाई वाले तीनों पावर प्लांट डूब जाएंगे।
पूरी दुनिया में उष्णकटिबंधीय जंगल दो करोड़ हेक्टेयर प्रतिवर्ष की रफ्तार से नदारद हो रहे हैं। अगले बीस या तीस साल में ये तमाम जंगल खत्म हो जाएंगे। पर्यावरण से जुड़े संकटों को आसान भाषा में समझाने में यह किताब सफल रही है।
धरती का न्याय
कुशाग्र राजेन्द्र और विनीता परमार
प्रकाशक | सेतु प्रकाशन
कीमतः 325 रुपये
पृष्ठः 216