आजकल बांग्लादेश फिर सुर्खियों में है। मधु कांकरिया की मेरी ढाका डायरी बांग्लादेश की राजधानी ढाका की यात्रा पर आधारित नए बनते देश और उसके समाज की थाह है। लेखिका ने वहां के इतिहास, संस्कृति, धर्म और जन-भावनाओं की भी गहन पड़ताल की है। इस डायरी में 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की स्मृतियां, विभाजन के जख्म और भारत-बांग्लादेश के रिश्तों की परछाइयां गहराई से प्रतिबिंबित होती हैं। वे ढाका की गलियों, विश्वविद्यालय, सड़कों, दुकानों, रास्तों, मदरसों, मोहल्लों, मंदिरों, मस्जिदों और सार्वजनिक दुर्गापूजा पंडालों में भटकते हुए लोगों के अंत:मन, उनके मिजाज, युवा संस्कृति, कॉर्पोरेट कल्चर और समय की नब्ज को पकड़ती हैं।
मेरी ढाका डायरी इतिहास या राजनैतिक विश्लेषण नहीं है। यह एक कथाकार की घुमक्कड़ी के अनुभव और वहां के लोगों और समाज के सरोकार का आईना है। लेखिका लिखती हैं, ‘‘विभाजन केवल जमीन का नहीं होता, वह स्मृतियों, भाषाओं और रिश्तों का भी होता है।’’ इस तरह उनका यह यात्रा वृतांत एक संवाद बन जाता है भारत और बांग्लादेश के बीच, धर्म और संस्कृति के बीच, अतीत और वर्तमान के बीच और सबसे बढ़कर मनुष्य और मनुष्य के बीच। मधु कांकरिया की लेखन शैली संवेदनशील और विमर्शशील है। वे केवल दृश्य वर्णन नहीं करतीं, बल्कि उस दृश्य की आत्मा को पकड़ने की कोशिश करती हैं। पुस्तक में स्त्री जीवन की अंतरंग छवियां प्रभावशाली हैं। ढाका की महिलाओं की स्थिति उनकी आकांक्षा, उनके संघर्ष, कहर ढाता मजहब, फैलते इस्लाम को बारीकी से उभारा गया है। एक जगह वे लिखती हैं ‘‘सारा इस्लाम औरत की देह पर टिका हुआ है। हर औरत अपने औरतपन के बंधन को वजूद की तरह अपने सीने से चिपकाए हुए है।’’ लेखिका का भाषा सौंदर्य, उनकी शैली और जीवन-बोध कदम-कदम पर विमुग्ध करता चलता है। यह एक मायने में आत्मावलोकन की प्रक्रिया भी है।
अंत में लेखिका स्वीकार करती हैं कि ढाका को पूरी तरह पकड़ पाना उनके लिए संभव नहीं है, क्योंकि ढाका आधा अजान में है तो आधा रवीन्द्र संगीत में, आधा इमाम में है तो आधा नजरुल इस्लाम में, आधा बुर्के में है तो आधा लड़कों के साथ सालसा नृत्य करती लड़कियों के पांवों की थिरकन में, आधा रेडीमेड गारमेंट्स की फैक्टरियों में है तो आधा गुलशन क्लब में वाइन के घूंट भरती एलिट जेंट्री में। मानो आदिकाल, मध्य काल, आधुनिक काल और उत्तर आधुनिक काल सब एक साथ कदम बढ़ा रहे हैं।
मेरी ढाका डायरी
मधु कांकरिया
प्रकाशक | राजकमल प्रकाशन
कीमतः 240 रु. (पेपर बैक)
पृष्ठः 240