नए आंचलिक गद्य की लिखावट में प्रस्तुत पुस्तक ‘किस किस को रोइए’ जीवन के विविध पक्षों का आईना है। लेखक हरिकृष्ण यादव ने गांव और महानगर दिल्ली के शब्द-चित्र यहां समकाल की दृष्टि से अंकित किए हैं। तीन खंडों में आत्मकथा की शैली का सुंदर निरूपण है तो कहीं-कहीं रेखाचित्रों और रिपोर्ताज का सौंदर्य भी दिख पड़ता है।
लेखक ने अपने जिले के प्रख्यात कवि त्रिलोचन की बीमारी की गंभीरता का जिक्र है। फिर भी बतकही में त्रिलोचन जी अपनी अस्वस्थता को भूल जाते थे। संयुक्त परिवारों का बंटवारा बुजुर्गों और बच्चों के लिए चिंताजनक हो गया है। एकल परिवारों के मानसिक तनावों के अलग नुकसान हैं।
अनेक संस्मरण हैं। ‘जल ही जीवन’ अध्याय में यमुना नदी के सिकुड़ते जाने, गोमती नदी और नर्मदा के सौंदर्य का वर्णन करते हुए लेखक ने प्राकृतिक संसाधनों के साथ खिलवाड़ पर लेखक ने चिंता जाहिर की है।
स्मृति शेष अध्याय में ‘जनसत्ता’ के प्रधान संपादक प्रभाष जोशी का उनकी लिखावट में उनका बायोडाटा प्रस्तुत करके एक संपादक की इस यात्रा को भी किंचित रेखांकित किया है। ‘कोरोना के बहाने’ लेख में असंख्य मौतें और अमानवीय यातनाओं का वर्णन इतिहास दर्ज करने जैसा लगता है।
पुस्तक में स्थानीय शब्दों के लालित्य ने लेखों को सजाया-संवारा है। कुल मिलाकर इन संस्मरणों में पहले जैसे अपनेपन के अभाव का चित्रण है। संवेदनहीनता का वर्चस्व बढ़ रहा है। घर में और बाहर भी। आखिर किस-किस को रोइए?
किसकिसकोरोइए
हरिकृष्णयादव
प्रकाशकःसंधीस
पृष्ठ: 132
मूल्य: 500 रुपये