शशिधर खान जाने-माने पत्रकार और लेखक हैं। देश-विदेश की राजनीतिक घटनाओं और सामाजिक विषयों पर उनके बेबाक विश्लेषण से हिंदी अखबार कई वर्षों से भली-भांति परिचित हैं।
शशिधर खान की ताजा किताब नोबेल पुरस्कार प्राप्त जर्मन लेखक गुंटर ग्रास के भारत के अनुभवों और भारत प्रवास के दौरान उनकी एकत्रित सामग्रियों पर केंद्रित है।
गुंटर ग्रास का लेखन में उतरने से पहले और उसके बाद का सफर विवादास्पद होने के कारण चर्चा में रहा। नाजी जर्मनी के शासक हिटलर के खुफिया एजेंट रह चुके गुंटर ग्रास का नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का फैन होना और उन्हीं के बारे में सूचनाएं बटोरने कोलकाता आकर महीनों रहना अपने-आप में पाठकों की जिज्ञासा बढ़ाता है। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का दूसरे विश्वयुद्ध के समय भारत को ब्रिटेन के कब्जे से मुक्त कराने के लिए हिटलर से सैनिक सहायता मांगने जर्मनी जाना और फिर युद्ध समाप्त होने के बाद उनकी कथित विमान हादसे में रहस्यमय मृत्यु दोनों ही विवादित है।
शशिधर खान ने गुंटर ग्रास की डायरी से जर्मन अखबार के जरिये जो विवरण प्रस्तुत किया है, उससे दो बातें एक नजर में सामने आती हैं। गुंटर ग्रास भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर भले ही बार-बार भारत आकर यायावरी करते रहे हों, मगर उनका नजरिया वही था जो पश्चिम के लेखक भारत के बारे में प्राय: रखते आए हैं। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को अगर नोबेल साहित्य पुरस्कार नहीं मिला होता तो शायद गुंटर ग्रास उनके फैन नहीं होते।
गुंटर ग्रास की यह मानसिकता राजनीतिक के साथ-साथ साहित्यिक टिप्पणियों से भी झलकती है। गुंटर ग्रास ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि नेताजी हिटलर का ‘खिलौना’ बने हुए थे, उन्हें हिटलर से मदद नहीं मांगनी चाहिए थी। लेकिन आज ज्यादातर बुद्धिजीवी मानते हैं कि कौटिल्य नीति के अनुसार ‘शत्रु का शत्रु स्वाभाविक मित्र होगा’ इसी का अनुसरण करते हुए नेताजी का ब्रिटेन के खिलाफ जर्मनी से सहायता मांगना उचित था।
यह पुस्तक सबके लिए पठनीय और संग्रहणीय है।
कुछअनसुलझेराज
नेताजीसुभाषचन्द्रबोसपरगुंटरग्रास
शशिधरखान
प्रकाशकःशुभदाबुक्स
मूल्य: 350 रुपये | पृष्ठ: 266