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पुस्तक समीक्षा: पुराण कथा में वर्तमान

राजनीतिक और दार्शनिक चिंतन जब साहित्यिक अभिव्यक्ति से जुड़ जाते हैं तो जिज्ञासु मन और बुद्धि, जीवन और जगत, सुख और दुख, सत्ता और नैतिकता, प्रेम और सौंदर्य, स्त्री और पुरुष, ज्ञान और ऐशवर्य आदि का चिंतन और मनन करने लगते हैं
माधवी जैसी स्त्रियों की कारुणिक कथा कहता उपन्यास

साहित्यकार अपने समय की सत्ता का प्रतिपक्ष रचता है। वह अतीत से, मिथक से, फैंटेसी से, इतिहास से, पुराण का सामना करते हुए वर्तमान की विडंबनाओं, विद्रूपों की आंखों में आंख डालकर सच को सामने लाता है। अमिता नीरव ताजे उपन्यास ‘माधवी आभूषण से छिटका स्वर्णकण’ में सत्ता का प्रतिपक्ष रचने के साथ-साथ समाधान भी खोजती हैं। माधवी ययाति की पुत्री होकर भी अवैध संबंधों की संतान है, जिसकी मां निम्न कुल की है। इसीलिए माधवी आभूषण से छिटका वह स्वर्णकण है, जिसे स्वर्ण होकर भी स्वर्ण-सा सम्मान नहीं मिलता है। स्‍त्री शोषण और पुरुष सत्ता पर केंद्रित इस उपन्यास में लेखिका निरंतर कुछ शोध कर रही हैं, खोज रही हैं। राजनीतिक और दार्शनिक चिंतन जब साहित्यिक अभिव्यक्ति से जुड़ जाते हैं तो जिज्ञासु मन और बुद्धि, जीवन और जगत, सुख और दुख, सत्ता और नैतिकता, प्रेम और सौंदर्य, स्त्री और पुरुष, ज्ञान और ऐशवर्य आदि का चिंतन और मनन करने लगते हैं। इससे अनेक प्रश्न उठते हैं और उनके उत्तरों की तलाश भी होती है। माधवी, देवयानी, ययाति, शर्मिष्ठा, कच, शुक्राचार्य, गालव आदि की कथा तो वही है। इस परिचित पौराणिक और औपनिषदिक कथा के बीच के प्रश्न लेखिका ने उठाए हैं, वे शाश्वत होकर भी अपने समय के अनुसार नए हो गए हैं, ये प्रश्न ही उपन्यास को पठनीय बनाते हैं।

यह उपन्यास माधवी और माधवी जैसी स्त्रियों की कारुणिक कथा है। माधवी राजा ययाति की शूद्र स्‍त्री से अनैतिक संबंधों का परिणाम है, जिसे वे परिस्थितिवश दत्तक पुत्री के रूप में स्वीकारते हैं। क्या वे सचमुच उसे अपनी पुत्री मानते हैं? यदि मानते तो क्या माधवी के प्रति इतने निष्ठुर हो पाते! वास्तव में ययाति तो निष्ठुर ही हैं, भोगी, स्‍त्रीलोलुप, आत्मकेंद्रित, दायित्वविहीन, किसी के प्रति कहां न्याय साध पाते हैं? देवयानी से विवाह करके भी वे शर्मिष्ठा के प्रति आकर्षित होते हैं और फिर शर्मिष्ठा की सेविका मुकुलिका से भी संबंध रखते हैं। ऐसे पिता की संतान है माधवी।

माधवी अक्षत योनि के वरदान से अभिशप्त है। मूल कथा से भिन्न यहां माधवी का कौमार्य किशोरवय में ज्यादती के कारण भंग हो जाता है, जिसे राजपुरोहित चिकित्सा द्वारा अक्षत योनि के रूप में स्थापित कर देते हैं। अक्षत योनि की तरह ही एक और अभिशाप वरदान के रूप में माधवी को प्राप्त होता है, वह है चक्रवर्ती राजकुमारों की जन्म देकर भी वह कुमारी ही बनी रहेगी।

देह का कौमार्य भंग न हो तब भी मन और आत्मा का कौमार्य भंग हो ही जाता है। एक स्‍त्री एक से अधिक पुरुषों द्वारा बिना किसी सामाजिक स्वीकृति के, बिना किसी रिश्ते के भोगी जाए और अपनी कोख में पले शिशु को नि:संग भाव से छोड़कर चल दे, यह अत्यंत कठिन कार्य है। माधवी के साथ यही सब होता है और वह अपने पिता के इस अन्याय का विरोध नहीं कर पाती है। माधवी के समस्त शोषण के लिए पुरुष सत्ता उत्तरदायी है। सबसे पहले किसी अनजान पुरुष द्वारा उसका कौमार्य भंग करना, फिर ययाति जो जानते हैं कि माधवी उनके ही वीर्य से जन्मी है उसे दत्तक पुत्री के रूप में राजमहल में लाना। अपना सम्मान बचाने के लिए फिर उसे गालव को गुरुदक्षिणा देने के लिए आठ सौ श्वेतवर्णी-श्यामकर्णी अश्वों को ऐसे दे देते हैं, जैसे कोई निरर्थक वस्तु उठाकर दे देता है।

राजा ही नहीं, ऋषि और गुरु भी अपनी पुरुष सत्ता में अंधे होकर माधवी को कठपुतली की तरह नचाते रहते हैं। राजा हर्यश्च, दिवोदास, उशीनर उससे पुत्र प्राप्त करते हैं। ये तो राजा हैं, उन्हें तो सत्ता के साथ-साथ उत्तराधिकारी भी चाहिए और यदि उत्तराधिकारी चक्रवर्ती राजा हो तो उनका स्वार्थी हो जाना क्षम्य भी हो सकता है, लेकिन ऋषि गालव का गुरुदक्षिणा के रूप में आठ सौ अश्व मांगना और फिर माधवी से चक्रवर्ती पुत्र की कामना ऋषियों की चारित्रिक दुर्बलताओं को दर्शाता है। गालव ब्राह्मण वर्ण का होकर ऋषि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर यदि विवेकी और त्यागी नहीं हो सका, स्‍त्री अनुराग से स्वयं को नहीं बचा सका, कोई आदर्श स्थापित नहीं कर सकता तो फिर समाज में मूल्यों की स्थापना की उम्मीद किससे की जा सकती है?

यह उपन्यास पौराणिक कथानक के माध्यम से जीवन के बहुत सारे सवालों से रूबरू होता है।

 

माधवी

आभूषण से छिटका स्वर्णकण

अमिता नीरव

प्रकाशक | सेतु प्रकाशन

पृष्ठः 631 पेज | कीमतः 599 रुपये

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