इस दौर में स्त्री-उत्पीड़न, आजादी, भूख, गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, धार्मिक उन्माद सबके नए-नए आयाम खुल रहे हैं और उसी पैमाने पर उनके विमर्श भी नए आकार ले रहे हैं। इसी विमर्श को पत्रकार, कवि चंदन ने अपने नए संग्रह ‘गोयठा थापती लड़की’ में जिन बिंबों में उकेरा है, उनमें एक ताजगी का एहसास होता है। वे ‘अपनी बात’ में कहते हैं, “जो आमने-सामने कह न सका, वह कविताओं की राह उतरते चली गई।”
स्त्री-विमर्श के इस नए रूपक को देखिए : इंतजार कर रहा हूं/किसी बहार का/जब तुम्हारे कंधे दुपट्टे के मुहताज नहीं होंगे/और तब/दुनिया का कोई भी बजट/या बैंक का कोई भी लॉकर/तुम्हारी अस्मत से ज्यादा भारी नहीं होगा।
चंदन का पत्रकारीय अनुभव इस संग्रह में बहुत सूक्ष्म तरीके से चित्रित है। वे कविताओं के जरिये कभी विस्मित करते हैं, कभी कठघरे में खड़ा करते हैं। कविताओं में सरल बिंब के जरिये जीवन और समाज की जटिलताओं को उकेरा गया है। अखबारी दुनिया में पांच से भी ज्यादा दशक गुजारने वाले चंदन कविताओं में एक पत्रकार की पीड़ा भी उकेरते हैं। यह संग्रह अपने समय और जीवन की पीड़ाओं को स्वर देता है।
गोयठाथापतीलड़की
चंदन
प्रकाशकःपुष्पांजलि
मूल्य: 250 रुपये
पृष्ठ: 112