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पुस्तक समीक्षाः गांधी पंचतंत्र

गांधी पर फूल-माला चढ़ाने के साथ उन पर वार करने का पाखंड जारी है
गांधी की कथाएं पाठक को पंचतंत्र या जातक कथाओं जैसा प्रेरित करती हैं

आज जब सर्वसत्तावादी राजनीति का ऐसा बोलबाला है कि लोकतंत्र, संविधान, संवैधानिक संस्थाएं, नैतिकता, मर्यादाएं सब हांफने लगी हों। उनकी नींव रखने वाले स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों और उनके मूल्यों पर सवालों के घेरे घुमड़ने लगे हों। महानायकों के विभिन्न मतभेदों को उनके बीच दुश्मनी जैसा पेश करके उस दौर में अपनी राजनैतिक गैर-मौजूदगी और अपनी बौनी शख्सियतों का औचित्य ठहराने की मुहिम चलाई जा रही हो ताकि कुछ को धूमिल करके और कुछ को अपने पाले में खींचकर अपनी राजनैतिक और वैचारिक सत्ता के लिए फिजा तैयार की जा सके। जाहिर है, संकीर्ण वैचारिक ताने-बाने को खारिज करके मानवीय गरिमा, मानवीय करुणा, मानव श्रम की महत्ता के आधार पर नए राष्ट्र की नींव रखने वाले सबसे बड़े महानायक महात्मा गांधी के मूर्तिभंजन के बगैर यह संभव नहीं है। लेकिन गांधी ऐसे हैं कि न वे तोड़े से टूटते हैं, न किसी भी संकीर्ण दायरे में समाते हैं। शायद इसीलिए उन्हें फूल-माला चढ़ाने के साथ उन पर वार करने का पाखंड जारी है। ऐसे दौर में सरल भाषा और छोटी-छोटी कथाओं के जरिये गांधी, स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों, महापुरुषों से उनके तथा उनमें आपसी रिश्तों, उनके नैतिक मानदंडों, सेवा भाव, सिद्धांतों को आम आदमी तक पहुंचाकर नए विमर्श में हस्तक्षेप का काम वाकई सराहनीय है। ऐसी ही कोशिश पांच खंडों में गांधी कथा के जरिये वरिष्ठ पत्रकार और गांधी अध्येता अरविन्द मोहन ने की है।

चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष में, चंपारण के ही रहने वाले लेखक ने अपने इलाके और इतिहास तथा राजनीति की जिज्ञासा के चलते चंपारण प्रयोग जैसी किताब मुकम्मल की तो जैसे गांधी ने उन्हें काट खाया। फिर तो गांधी, कस्तूर बा, गांधीवादियों, उस दौर के बाकी महानायकों के प्रति गहरी छानबीन में उनकी दिलचस्पी बढ़ती गई। यह गहरी पड़ताल गांधी की 150वीं जयंती के मौके पर कई किताबों की शक्ल में बाहर आई, लेकिन हाल में आई गांधी कथा छोटी-छोटी कहानियों (कोई भी कथा बमुश्किल चार-पांच पन्ने से अधिक की नहीं होगी) की शक्ल में ज्यादा ग्राह्य है। लेकिन यह किस्सागोई नहीं है, “यह उतना ही प्रामाणिक है जितना किसी इतिहास को होना चाहिए।” यह बताने के लिए हर खंड में संदर्भ ग्रंथों की बाजाप्ता सूची भी पेश की गई है। यह कथा गांधी से अधिक उनके दूसरे नायकों से संबंध तथा मतभेद (जिसे विवादास्पद बताने के लिए आजकल कई तरह के अफसाने हवा में हैं ), गांधीवादियों और गांधीवादी संस्थाओं के आचार-व्यवहार और देशप्रेम, सेवा भाव, सिद्घांतों पर खरा उतरने की दृढ़ता के बारे में है।

इन पांच खंडों का वर्गीकरण भी इसी आधार पर किया गया है और बेहद दिलचस्प नाम दिए गए हैं, जो जिज्ञासा जगाते हैं। मसलन, यूं ही नहीं सरदार, गोरख से हारे मछेन्दर, अंग्रेजों को नमक ने मारा, गांधी ही गांधी, और गांधी का शम्भुमेला। पहला खंड गांधी के सहयोगियों और उन नायकों के बारे में है, “...जिनमें अपने सद्गुणों से देश और समाज की सेवा करने की होड़ थी और अचरज नहीं कि इसमें कई चेले गुरु से उन्नीस नहीं रहे।” इस खंड में बड़े राजनेताओें का जिक्र है, जिनके साथ गांधी के संबंधों को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं और उन्हें गांधी के बरक्स खड़ा करने की कोशिश हो रही है। इसमें बाकी राजनेताओं के अलावा सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू, नेताजी सुभाषचंद्र बोस के आपसी और गांधी से संबंधों और मतभेदों का जिक्र है। नेताजी की कस्तूर बा की मृत्यु पर उन्हें राष्ट्रमाता कहने और पहली बार गांधी को राष्ट्रपिता कहने की बातें ही पर्याप्त हैं कि उनके और गांधी के बीच क्या रिश्ता था, मतभेद तो सर्वथा सैद्घांतिक थे।

नेहरू के बारे में सरदार से जुड़ी एक घटना तथा उनका कहा सुनिए, “एक दिन...कुछ समर्थकों ने उनसे (सरदार से) कह दिया कि अब आपको नेहरू के नीचे काम करने की जरूरत नहीं। अब आपको प्रधानमंत्री बनना चाहिए। सुनते ही सरदार ने ठहाका लगाया और बोले, आप ठीक कहते हो, पार्टी तो मेरे साथ है, लेकिन मुल्क और जनता नेहरू के साथ है।” इस खंड में राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद, जिन्ना, इकबाल, सरहदी गांधी, लोहिया, भगत सिंह, सरोजिनी नायडु जैसे जितने भी खास नाम आप गिन सकें, उन सबसे जुड़ी कथा 170 पृष्ठों में समाहित है।

दूसरे खंड गोरख से हारे मछेन्दर में उन गांधीवादियों का जिक्र है जो सदगुणों के मामले में गांधी से शायद ही उन्नीस ठहरते हों और जिन्होंने देश और गांधी की तरह नैतिक जीवन जीने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। इस खंड का नाम भी गांधी के कहे वाक्य से ही लिया गया है जो उन्होंने विनोबा के बारे में कहा था। इसमें अनेक प्रसिद्घ देशव्रती नायिकाओं की भी कहानी है।

तीसरा खंड अंग्रेजों को नमक ने मारा उनके आंदोलनों और गुरदेव रवींद्रनाथ ठाकुर जैसे मनीषियों से विमर्श है। चौथा खंड उन लोगों पर है जिन्होंने अपने इस नायक को शायद ही कभी शर्मिंदा होने का मौका दिया और हमेशा पृष्ठभूमि में रह कर नैतिक, सेवा भाव का जीवन जिया। पांचवां खंड गांधी के भीतर आए बदलावों, गांधी आश्रमों के जीवन और अहिंसा, अछूतोद्घार, सत्याग्रह, खादी, सर्वधर्म समभाव से जुड़ी घटनाओं से भरा है।

कुछेक प्रूफ की गलतियों के अलावा ऐसी रोचक कथा पढ़कर यह कहने का लोभ होता है कि यह उसी तरह प्रेरक है जैसे पंचतंत्र या जातक कथाएं।

गांधी कथा

पांच खंड

अरविन्द मोहन

सेतु प्रकाशन

हरेक का मूल्य: 225 रुपये 

हरेक का पृष्ठः 170

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