ऋषि च्यवन और सुकन्या पर केंद्रित उपन्यास वैसे, तो पौराणिक कथा पर आधारित है लेकिन यह वर्तमान स्त्री की स्थिति को भी रेखांकित करता है। दोनों के संबंध, च्यवन का सुकन्या के सौंदर्य से अभिभूत हो, उसे पाने की चाह, सुकन्या की वेदना, ऋषि का दर्प और अपराधबोध यह सब आज की पुरुष मानसिकता को भी दिखाता चलता है। कई तथ्यों को विभिन्न घटनाओं के माध्यम से विवेचनात्मक और संवेदनशीलता से कहानी में समाहित किया गया है। कथा के साथ-साथ, स्त्री सौंदर्य उसकी मनोदशा और इच्छाओं का वर्णन बेहद खूबसूरती से किया गया है। प्रवाहमय भाषा और पात्रों का चित्रण दोनों ही इस पुस्तक के आकर्षण हैं। राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या की कहानी से कौन परिचित नहीं है। अनुपम सौंदर्य और बुद्धि की स्वामिनी सुकन्या से अज्ञानतावश ऋषि की आंख में कुश लग जाता है और उनकी आंखों की ज्योति चली जाती है। परिस्थितिवश सुकन्या को ऋषि से विवाह करना पड़ता है।
यहां से सुकन्या का जैसे जीवन बदलता है, वह एक स्त्री की यात्रा है। इस यात्रा में आज के दौर की स्त्री की स्थितियां भी समाहित हैं। तप करने वाले ऋषि भी अपनी शारीरिक दुर्बलता स्वीकार नहीं कर पाते। इस स्वीकार न करने की स्थिति को ही लेखिका ने पुरुष अहं के रूप में बहुत अच्छे तरीके से रचा है। एक जगह ऋषि च्यवन कहते भी हैं, ‘‘त्रिलोक में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता, तो एक स्त्री, तुच्छ स्त्री से वह पराजय कैसे स्वीकार कर लें। मैं उसके रूप, उसकी काया को मर्दित कर दूंगा। इसे मेरे श्राप का भय नहीं, मेरी मंत्र शक्ति का ज्ञान नहीं?’’
अंत में अश्विनी कुमार च्यवन ऋषि को तरुण रूप देने की बात इस शर्त के साथ करते हैं कि सुकन्या को उन तीनों में से किसी एक का वरण करना होगा। सुकन्या हतप्रभ है पर अडिग है। अश्विनी कुमार जब ऋषि च्यवन को तरुण बना देते हैं, तो सुकन्या कहती भी है, “आपने मेरे रूप से आकर्षित होकर मुझे बंदी बनाया। अब यदि मैं आपके सुंदर तरुण रूप के कारण ही आपका परित्याग कर दूं तो?” यह सवाल एक स्त्री का पुरुष के वर्चस्व से है। यह आत्मविश्वास ही स्त्रियों की पूंजी रहा है, जो सनातन काल से चला आ रहा है।
सवाल ऋषि को निरुत्तर कर देता है। स्त्री का मन, प्रेम पाने की नैसर्गिक इच्छा, देह के सवाल, मानसिक संताप, दुविधा, अकाट्य तर्क और दृढ़ता और अंत में अपने लिए स्वयं निर्णय लेने की सजगता से होता हुआ यह उपन्यास पुरुष मानसिकता के विभिन्न पक्षों और विरोधाभासों के साथ स्त्री के त्याग और संयम को वृहद विमर्श देता है।
हेति सुकन्याः
अकथ कथा
सिनीवाली
प्रकाशन | रुद्रादित्य
पृष्ठ: 191 |मूल्य: 300 रुपये