मीना झा की यह पुस्तक मात्र यात्रा संस्मरण नहीं, बल्कि गाइड का भी काम करती है। पुस्तक में उन्होंने पल-पल के अनुभव दर्ज किए हैं। किसी भारतीय को इस सुदूर देश की यात्रा के दौरान भाषा, खान-पान के मामले में जो भी सुविधा-असुविधा हो सकती है, सब पुस्तक में दर्ज है। दरअसल, यात्राएं सिर्फ भूगोल नहीं होतीं, वे इतिहास और वर्तमान भी होती हैं। लेखिका ने संस्मरणों का सहज और सजीव चित्रण किया है। वे इतिहास-भूगोल की परत हटाकर एक-एक हिस्सा हमें दिखाती हैं, वहां के स्थानीय व्यंजनों-शाकाहार हो अथवा मांसाहार स्वाद चखाती चलती हैं। उनके संस्मरण सिर्फ अपने लालित्य की वजह से नहीं, बल्कि अपनी विषय-वस्तु की सघनता और उसके सूक्ष्म विश्लेषण के सहारे भी पठनीय बने हैं।
लेखिका के इस यात्रा संस्मरण में बहुत कुछ ऐसा है जो संस्मरणों से आगे जाकर एक तरह से सरोकारों से जूझता है और पाठकों को बांध कर यात्रा के रोमांच से भर देता है। सिडनी की सब्जी मंडी ‘पैडिस’, रेन फॉरेस्ट, कंगारू वैली, ग्रेट बैरियर रीफ, ब्रिस्बेन, मेलबर्न, प्रशांत महासागर के तटबंधों के ‘मैंग्रोव्स’, पारामाट्टा नामक भारतीय मोहल्ले में स्थित भारतीय बाजार, पोर्ट डगलस, ऑपेरा हाउस, एक किसान के गेस्ट-हाउस में रात्रि विश्राम कर ऑस्ट्रेलिया का गांव देखना, वहां के जीवन स्तर का सजीव वर्णन पुस्तक में है। ग्रेट बेरियर रीफ देखकर उन्हें प्राकृतिक सौंदर्य का नया अर्थ परिभाषित हुआ। सागर के 50 मीटर नीचे फैला हुआ विभिन्न प्रकार के मूंगे का खेत। आश्चर्यजनक सौंदर्य से परिपूर्ण यह प्रवाल शृंखला शायद तभी प्राकृतिक जगत के सात आश्चर्यों में से एक है। वह लिखती हैं, “पनडुब्बी धीरे-धीरे चल रही थी, लगता था मानो हम समुद्र तल में पहुंच गए हैं। निरीह कछुए भी मूंगे की भित्ति और समुद्री घास में उलझे बैठे थे। तभी सफेद पोल्का डॉट छापे की कई मछलियां समुद्री घास की सेज से हमारी खिड़की की तरफ तैरती आ गईं।”
ऑस्ट्रेलिया की धरती की सुंदरता, वहां का भरपूर प्राकृतिक सौंदर्य, अनछुई धरती का अनछुआ अभिनव रूप लेखिका के अंतर्मन में नई चेतना, नया अनुभव, नई स्फूर्ति का संचार कर देता है। कभी आसमान में काले बादलों के बीच झांकता सूर्य तो कभी चमकता दिन, फिर धीरे-धीरे सुरमई शाम और चांदनी में नहाई रात उन्हें आकर्षित करती है। यहां जीवन स्तर का पैमाना मात्र आर्थिक ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, संस्कृति, राजनीतिक स्थिरता और संरचना की गुणवत्ता भी है। पर्यावरण और सामान्य छुट्टियां जीवन का आनंद उठाने के लिए आवश्यक हैं। भीख मांगने वालों की अदा एक ओर तो लेखिका को आश्चर्य से भर देती है और दूसरी तरह उन्हें प्रभावित भी करती है। यहां लोग मॉल में आकर भीख मांगते हैं और उन्हें बाइज्जत भीख मिल भी रही है। भीख मांगने वालों की संख्या तो कम है ही, तरीका भी अलग है।
लेखिका को सफर के दौरान गांव, खेत, हरियाली और मवेशी भी दिखते हैं। ज्यादातर किसानों के स्वस्थ घोड़े, जो बड़े से चारागाह में खुले घूम रहे होते हैं, उन्हें आकर्षित करते हैं। प्यारे-प्यारे छोटे-छोटे गांव प्राकृतिक संपदा से भरपूर हैं। ऑस्ट्रेलिया उन्हें सिर्फ सोने की खान नहीं, बल्कि यह धरती उन्हें सुनहरे सौंदर्य की खान भी लगती है। किसी किसान के खेत में संतरों से लदे पेड़ और उसके बाग उन्हें आकर्षित करते हैं। यह देखकर उनके मन में एक सवाल भी उठता है कि क्या अपने देश के किसान कभी इतने उन्नतिशील हो सकेंगे? यहां की परिस्थितियां तो उनसे जिंदगी भी छीनने को तैयार हैं।
संस्मरण की भाषा सरल, शिल्प सहज और तरल संवेदना से भरपूर है। प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर शब्द मीना के अन्तस से स्वत: निसृत हो रहे हैं। छोटी-बड़ी सभी यात्राओं, अनुभूत परिस्थितियों का बड़ा ही सूक्ष्म विश्लेषण किया है। उनका यह यात्रा संस्मरण महज एक देश की यात्रा नहीं बल्कि मन की अंतर्यात्रा का संवेदनशील ब्योरा भी है।