कला के प्रति समर्पित गैर व्यावसायिक कलाकारों के लिए कठिन समय में कला वसुधा आशा की किरण है। यह प्रदर्शनकारी कला की त्रैमासिक पत्रिका है, जो हाशिए पर चली गई कला की दुनिया को संजोने का काम बखूबी कर रही है। लखनऊ से प्रकाशित होने वाली इस पत्रिका का एक अंक ‘नौटंकी (सांगीत) प्रसंग’ पर आधारित है। यह अपने आप में उपलब्धि है कि कोई पत्रिका नौटंकी जैसे विषय पर पूरा अंक निकाल दे। नौटंकी के हर आयाम को इसमें सहेजा गया है। ‘ग्रामीण परिवेश की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा’ के अंतर्गत अमरेन्द्र सहाय अमर ने इस परंपरा का पूरा लेखा- जोखा दिया है। कला वसुधा ने दो अंक प्रतिबद्ध कलाकार बलराज साहनी को समर्पित किए हैं। याद नहीं पड़ता कि इससे पहले इतनी संजीदगी से कब इस महान और गरिमामय कलाकार को याद किया गया था। बलराज का कलाकार जीवन इसमें उभर कर आया है। जिस तरह नौटंकी पर संपूर्ण अंक है, उसी तरह बलराज साहनी के भी हर पहलू को छुआ गया है। नौटंकी पर आधारित अंक में ऐसे कलाकारों के समर्पण और उनके योगदान के बारे में जानकारी है कि इन कलाकरों के बारे में पढ़ कर लगता है कि एक कलाकार ऐसे ही निखरता और बनता है।
बलराज साहनी के व्यक्तित्व के कुछ प्रसंग तो ऐसे हैं जिनके बारे में संभवतः उनके प्रशंसक भी नहीं जानते होंगे। सेवाग्राम में बलराज ऐसा ही लेख है। बलराज फिल्मों से पहले इप्टा से जुड़े थे। वह फिल्म अभिनेता होने के साथ-साथ रंगमंच के भी मंझे हुए कलाकार थे। उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को जानना प्रशंसकों के लिए दिलचस्प होगा।