ब्रिटेन के ताजा राजनीतिक घटनाक्रम ने एक बार फिर दुनिया की निगाहें अपनी तरफ खींची हैं। पिछले दिनों ब्रिटेन के राज्य स्कॉटलैंड में हमजा यूसुफ को राज्य का सर्वोच्च नेता यानी फर्स्ट मिनिस्टर चुन लिया गया। स्कॉटलैंड में पहली बार ऐसा हुआ जब किसी मुस्लिम नेता को प्रमुख चुना गया हो। पाकिस्तानी मूल के हमजा यूसुफ ने पद संभालते ही एक अलग देश स्कॉटलैंड की अपनी मांग को एक बार फिर हवा दे दी। उन्होंने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक से स्कॉटलैंड में जनमत संग्रह की मांग दोहराई। इसे सुनक ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हमजा इस मसले पर उनका मत पहले से ही जानते हैं, इसलिए यह संभव नहीं है।
इसे नियति का चक्र ही कहेंगे कि भारत विभाजन के महज 75 वर्ष बाद आज ऐसा वक्त आया है, जब ब्रिटेन के बंटवारे की चर्चा होने लगी है। भारत का विभाजन करवाने वाले ब्रिटेन के साम्राज्यवादियों, प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली और वायसराय माउंटबेटेन ने शायद ही कभी कल्पना की होगी कि ऐसा वक्त आएगा और आएगा भी तो इतनी जल्दी, लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं हो रहा है। इस बार जो बंटवारे का राग अलाप रहा है, उसके पूर्वज उस वक्त भी बंटवारे के हिमायती थे। हमजा यूसुफ, जिनका लखनवी परिवार धार्मिक आधार पर भारत को तोड़ने के लिए लड़ा था अब स्कॉटलैंड की स्वतंत्रता पर जोर देकर ब्रिटेन को तोड़ने के लिए तैयार हैं जबकि उसको एकजुट रखने की जिम्मेदारी ऋषि सुनक पर है जिनके पूर्वज उस वक्त भी अलग देश के हिमायती नहीं थे।
ऋषि सुनक ने एक बातचीत में कहा, “जब हमारे पूर्वज यहां आए तो इंग्लैंड में नहीं बल्कि युनाइटेड किंगडम में आए थे और हमारी परवरिश उसी माहौल में हुई है, जहां हमने एकता की ताकत की सीख ली है।” ऐसा लगता है कि स्कॉटलैंड ने मुख्य रूप से स्कॉटलैंड के अलगाव पर बातचीत करने के लिए पाकिस्तानी प्रवासियों के एक बेटे को अपने नेता के रूप में चुना है। पिछले 18 वर्ष से स्कॉटलैंड में रह रहे और वहां की राजनीति में सक्रिय ग्लासगो सिटी कॉलेज के प्रोफेसर ध्रुव कुमार कहते हैं कि हमजा स्कॉटिश लोकतंत्र के लिए फिट नहीं है और उनके चुनाव से स्कॉटलैंड की अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र की विरासत सवालों के घेरे में है। उनके मुताबिक हमजा ने मुस्लिमों और लाभ चाहने वालों को भुनाया है। इसके अलावा, हमजा भारत विरोधी भी हैं और स्कॉटलैंड में रह रहे भारतीयों और हिंदुओं को पसंद नहीं करते।
आखिर ऐसा क्यों है कि हमजा यूसुफ अलग स्कॉटलैंड की मांग की ताकत से आज राज्य की सत्ता के शीर्ष पर हैं। अगर उनकी मांग और इच्छा पूरी हो गई तो इस्लामिक देशों से इतर किसी दूसरे देश के प्रधानमंत्री बनने वाले वे पहले मुस्लिम हो सकते हैं। क्या यह इतना आसान है?
अलग स्कॉटलैंड की मांग कोई नई नहीं है। सन 1707 से स्कॉटलैंड युनाइडेड किंगडम का हिस्सा है। 1800 में आयरलैंड के जुड़ने पर इसका नाम ‘युनाइडेट किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड’ हुआ, लेकिन जब 1922 में आयरलैंड का एक हिस्सा अलग हो गया तब से इस देश का नाम ‘युनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड नार्दन आयरलैंड’ है। इस देश में इंग्लैंड, वेल्स, स्कॉटलैंड और नॉर्दन आयरलैंड चार राज्य हैं। इंग्लैंड को छोड़ बाकी तीनों राज्यों में अंग्रेजी के अलावा उनकी अपनी भाषा भी है। यही वजह रही कि 1997 में स्कॉटलैंड के लिए अलग संसद की मांग को लेकर एक जनमत संग्रह हुआ जिसमें स्कॉटलैंड की जीत हुई और स्कॉटिश पार्लियामेंट की स्थापना हुई। 1999 में ब्रिटेन ने स्कॉटलैंड को स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि पर अपना कानून बनाने का अधिकार दे दिया, लेकिन विदेश नीति, रक्षा जैसे अहम मुद्दों पर आज भी ब्रिटेन का ही अधिकार है यानी इन मुद्दों से जुड़े सारे फैसले ब्रिटिश सांसद लेते हैं।
हाउस ऑफ कॉमन्स यानी संसद में स्कॉटिश सांसद एक राज्य से केंद्र में आए सांसद की तरह होते हैं। 2014 में एक और जनमत संग्रह हुआ था। यह अलग स्कॉटलैंड की मांग को लेकर था, लेकिन 55 फीसदी जनता ने ब्रिटेन के साथ रहने की सहमति दी। एक बार फिर हमजा जनमत संग्रह की बात कर रहे हैं। प्रधानमंत्री सुनक के इनकार के बावजूद अगर हमजा जनमत संग्रह करवाते हैं तो वो एक तरह से बगावत होगी, लेकिन यह हमजा युसूफ का अधिकार होगा और वे ऐसा करा सकते हैं। ब्रिटिश संसद उस पर कैसी प्रतिक्रिया देगी यह अभी स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता है। फिर भी अगर मौजूदा हालात को देखें तो जनमत संग्रह के परिणाम हमजा के पक्ष में जाते हुए नहीं दिखते क्योंकि हमजा के विरोधियों का मानना है कि अभी आर्थिक तौर पर स्कॉटलैंड उस स्थिति में नहीं है कि वह ब्रिटेन से अलग होने का जोखिम उठाए। उदाहरण के तौर पर, स्कॉटलैंड के उत्पादन के 65 फीसदी हिस्से की खपत इंग्लैंड और वेल्स में ही होती है। ऐसे में स्कॉटलैंड के लिए यह जोखिम उठाना उचित नहीं होगा।
हमजा की राजनीति अलगाववाद के मुद्दों पर टिकी हुई है। स्कॉटलैंड की आबादी तकरीबन 55 लाख है जिनमें से 15 लाख के करीब या तो सरकारी अनुदानों पर आश्रित हैं या शरणार्थी हैं। शरणार्थियों में सीरिया, मिस्र, अल्बानिया और दक्षिण अफ्रीकी देशों से आए लोगों की तादाद ज्यादा है और उनमें भी मुस्लिम समुदाय बहुतायत में है। हमजा उन्हीं लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं और अपने लिए एक नया और उनका अच्छा खासा वोट बैंक भी है। जब हमजा ने फर्स्ट मिनिस्टर बनने के साथ अपना कार्यभार संभालने वाले दिन ही अपने दफ्तर में मौलवियों के साथ नमाज अता की, तो स्कॉटिश समुदाय में एक नई बहस छिड़ गई। स्कॉटलैंड के एक मजदूर यूनियन के नेता ने बातचीत में कहा कि वे अलग देश तो चाहते हैं लेकिन अलग मुस्लिम देश नहीं चाहते।
दिलचस्प यह है कि यूके के विभाजन की मांग करने वाला और उसे विभाजित होने से बचाने को तैयार दोनों व्यक्ति भारतीय मूल के ही हैं और इन सब पर एक और भारतीय मूल के व्यक्ति यानी आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो की नजर है। जिस भारत के टुकड़े कर अंग्रेजों ने भारत को कभी न खत्म होने वाला जख्म दिया है अब उन्हीं टुकड़ों के अलग-अलग हिस्सों से बाहर गए लोग अलग-अलग भूमिकाओं में ब्रिटेन की किस्मत का फैसला कर रहे हैं। कह सकते हैं कि काल का एक चक्र पूरा हो रहा है।