कमलनाथ सरकार के केवल 15 महीने में गिरने के बाद सत्ता में आए शिवराज सिंह चौहान की मुख्यमंत्री की कुर्सी बची रहेगी या फिर चली जाएगी, इसका फैसला 10 नवंबर को हो जाएगा। राज्य की 28 सीटों पर 3 नवंबर को मतदान होगा। ये उपचुनाव कमलनाथ के भविष्य के लिए भी काफी अहम साबित होंगे। आंकड़ों के आधार पर तो शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी के लिए कोई खतरा नहीं दिख रहा है। उसकी वजह यह है कि 230 सीटों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में भाजपा के पास 107 विधायक हैं। ऐसे में उसे बहुमत के लिए 27 में से सिर्फ नौ सीटें जीतने की जरूरत है। लेकिन कांग्रेस को सत्ता में वापसी के लिए सभी 27 सीटें जीतने की जरूरत पड़ेगी। दिसंबर 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 114 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन विधायकों के टूटने के बाद अब उसके 89 विधायक ही रह गए हैं। अगर दोनों दल उपचुनाव के परिणामों के बाद बहुमत का जादुई आंकड़ा नहीं छू पाते हैं, तो सत्ता की चाबी एक बार फिर बहुजन समाज पार्टी के दो, समाजवादी पार्टी के एक और चार निर्दलीय विधायकों के पास चली जाएगी। फिलहाल कमलनाथ और शिवराज, दोनों यही दावा कर रहे हैं कि उपचुनावों के बाद उनकी पार्टी को बहुमत मिल जाएगा।
उम्मीदवारों की घोषणा के मामले में कांग्रेस ने भाजपा से कहीं ज्यादा तेजी दिखाई है। कांग्रेस ने 29 सितंबर तक 15 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया था, जबकि भाजपा एक भी नाम तय नहीं कर पाई। वैसे, मुख्यमंत्री के एक करीबी सूत्र ने आउटलुक को बताया, “वे उपचुनावों के लिए अप्रैल-जुलाई में ही एक-एक सीट का बारीकी से अध्ययन कर चुके हैं।” कमलनाथ का सिंधिया परिवार के प्रभाव वाले ग्वालियर-चंबल क्षेत्र पर ज्यादा जोर है। इस क्षेत्र में उपचुनाव की 27 सीटों में से 16 सीटें आती हैं। इन क्षेत्रों में कमलनाथ ज्यादातर उन लोगों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं, जो सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद असहज महसूस कर रहे हैं।
कमलनाथ की यह रणनीति कांग्रेस के उम्मीदवारों के ऐलान से भी दिखती है। अब तक घोषित 15 सीटों में से तीन पर ऐसे नेताओं को टिकट दिया गया है, जो पहले भाजपा में थे। अगली लिस्ट में भी कई ऐसे नेताओं को टिकट दिए जा सकते हैं जो सिंधिया के करीबी रहे हैं, लेकिन भाजपा का दामन नहीं थामना चाहते। दूसरी तरफ, भाजपा उन नाराज नेताओं को मनाने में लगी हुई है, जिन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथियों के भाजपा में शामिल होने के बाद अपना राजनीतिक करियर खत्म होता दिख रहा है। सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लंबे समय से जुड़े जयभान सिंह पवैया ने तो सिंधिया के करीबियों के लिए चुनाव प्रचार करने से भी मना कर दिया है।
हालांकि मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वी.डी.शर्मा इन बातों को नकारते हुए कहते हैं, “पार्टी पूरी तरह एकजुट है और सभी 27 सीटों पर जीत हासिल करेगी।” एक वरिष्ठ मंत्री का कहना है, “सिंधिया ने अपने 14 विधायकों को मंत्री बनवाकर उन्हें टिकट दिलाना पक्का कर लिया है। वे चार से छह टिकट और चाहते हैं। हमारे लिए उन नेताओं की उम्मीदवारी को नजरअंदाज करना काफी मुश्किल हो रहा है, जो पिछले चुनाव में जीत कर आए थे।”
सूत्रों के अनुसार कमलनाथ ने लोगों के बीच कांग्रेस की स्थिति जानने के लिए तीन एजेंसियों को जिम्मेदारी दी थी, जिसके शुरुआती परिणाम पार्टी के लिए उत्साहजनक हैं। ऐसे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं से यह भी कहा गया है कि वे मतदाताओं को ज्योतिरादित्य सिंधिया के धोखे और चौहान सरकार की किसान विरोधी नीतियों के बारे में भी जोर-शोर से बताएं। इसके अलावा वह सचिन पायलट को भी प्रचार के लिए बुला रही है। पायलट के जरिए कांग्रेस की कोशिश युवाओं को लुभाने की है।
दूसरी तरफ, शिवराज सरकार ने मतदाताओं को लुभाने के मकसद से प्रदेश वासियों के लिए नौकरियों में आरक्षण की बात की है, ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कई इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की भी घोषणा की है। भाजपा मोदी और शिवराज-सिंधिंया के करिश्मे के भरोसे चुनाव जीतने का दावा कर रही है।