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17 फरवरी 2025 · FEB 17 , 2025

फिलस्तीन-इजरायलः युद्ध-विराम के आगे-पीछे

फिलिस्तीनियों और इजरायलियों के लिए उम्मीद की किरण मगर कैदियों की अदला-बदली के बाद समझौता टूटने की आशंका
गाजा में बंधकों की रिहाई के लिए एंबुलेंस के आगे हमास के लड़ाके

अच्छी खबर यह है कि इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू की कैबिनेट के आखिरी मौके पर पलट जाने की आशंकाओं के बावजूद रविवार 19 जनवरी को युद्ध-विराम समझौता लागू हो गया। समझौते पर अनिश्चय का यह नाटक रचा गया था ताकि मजहबी पार्टियां उसे खारिज कर दें और अपने कट्टरतावादी समर्थकों को पाले में बनाए रखा जा सके। सरकार के गिरने का तो कोई खतरा था नहीं क्योंकि विपक्ष बाकी बंधकों को छुड़ाने के लिए प्रधानमंत्री को समर्थन दे चुका था। वैसे, अभी तक युद्ध-विराम समझौते के पहले हिस्‍से पर ही कुछ विस्तार से काम हुआ है। पहला चरण समाप्त होने के बाद दूसरे और तीसरे हिस्‍से पर अमल होना है, लेकिन यह आशंका बनी हुई है कि 33 इजरायली बंधकों और लगभग 700-900 या उससे अधिक फिलिस्तीनी कैदियों की अदला-बदली हो जाने के पहले चरण के बाद तीन हिस्‍से वाला जटिल समझौता टूट सकता है।

इसलिए यह अनिश्चित है कि बंधक-कैदी अदला-बदली के बाद युद्ध-विराम समझौता कायम रहेगा या नहीं। फिलहाल इस समझौते की वजह से घिरी हुई गाजा पट्टी में जरूरी मानवीय मदद पहुंचेगी। समझौते के मुताबिक हर रोज रसद भरे 600 ट्रकों के जाने की इजाजत है, लेकिन पिछले अनुभव यही बताते हैं कि रसद के पहुंचने और लोगों के बीच बंटवारे में कई चुनौतियां बनी रहेंगी। इजरायली सैनिकों को हर ट्रक की जांच-पड़ताल में घंटों लग सकते हैं और वितरण में लगे संयुक्त राष्ट्र तथा मदद में जुटे दूसरे कार्यकर्ताओं पर संदेह जाहिर किया जा सकता है। सो, यह देखना अभी बाकी है कि इस बार स्थितियां अलग होंगी या नहीं।

इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू

इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू

फिलिस्तीनी लोगों के अपने घर लौटने की स्थितियां तैयार करने के लिए इजरायली रक्षा बलों (आइडीएफ) की चरणबद्ध वापसी भी होनी है। अगर हमास की ओर से कोई हरकत होती है तो सैन्य वापसी रोक दी जाएगी और आइडीएफ "जंगी जवाब" देगी। मौके पर किसी तटस्थ बल की मौजूदगी के अभाव में बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि इजरायली सेना हमास की किसी गतिविधि को कैसे आंकती है। कतर के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल तानी ने समझौते के ऐलान के वक्‍त यह भी कहा कि मिस्र, कतर और अमेरिका समझौते के गारंटर के रूप में कार्य करेंगे। वे इजरायल और हमास के साथ मिलकर यह आश्‍वस्‍त करेंगे कि दोनों पक्ष समझौते के सभी तीन चरणों पर पूरी तरह अमल करें। प्रधानमंत्री ने अल जजीरा के साथ विशेष बातचीत में यह भी कहा कि "[संयुक्त राष्ट्र] सुरक्षा परिषद [युद्ध विराम] समझौते पर अमल के लिए एक बाध्यकारी प्रस्ताव जारी करेगी।" लेकिन, जैसा कि पहले देखा गया है, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्‍ताव खास मायने नहीं रखते।

युद्ध विराम और दूसरा-तीसरा चरण

कई सारे मुद्दे अब भी अनसुलझे हैं, फिर भी उम्मीद है कि समझौते के पहले चरण पर अमल हो जाएगा। युद्ध-विराम लागू होने के सोलहवें दिन अगले चरण के लिए बातचीत शुरू होगी। सीएनएन के मुताबिक, युद्ध विराम के पहले चरण से आगे जारी रहने की गारंटी नहीं है, हालांकि न्यूज चैनल ने एक अनाम इजरायली अधिकारी के हवाले से बताया कि इजरायल "अपने सभी बंधकों को छुड़ाना" चाहता है, इसलिए सरकार दूसरे चरण के लिए बातचीत शुरू करेगी ताकि गाजा से इजरायली सेना की पूरी तरह वापसी हो सके। जब समझौते के दूसरे चरण पर बातचीत शुरू होगी, तो इजरायली सेना की वापसी जारी रहने के दौरान जीवित बचे बंधकों और फिलिस्तीनी कैदियों की अदला-बदली होगी। यह सुचारु रूप से जारी रहता है तो अस्थायी युद्ध-विराम स्थायी हो जाएगा। समझौते के आखिरी चरण में मृत बंधकों के अवशेष उनके परिवारों को लौटाए जाएंगे और गाजा के पुनर्निर्माण की योजना बनाई जाएगी।

वापसी की राहः युद्घ विराम समझौते के एक दिन बाद राफा में लौटते विस्थापित फिलिस्तीनी

वापसी की राहः युद्ध विराम समझौते के एक दिन बाद राफा में लौटते विस्‍थापित फिलिस्तीनी

यह सवाल भी बड़ा है कि क्या नेतन्याहू वाकई युद्ध खत्‍म करना चाहते हैं। इजरायली प्रेस में छपी तमाम रिपोर्टों से पता चलता है कि नेतन्याहू युद्ध रोकने के इच्छुक नहीं हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा खासकर इसलिए किया है क्योंकि वे डोनाल्ड ट्रम्प को नाराज करने के मूड में नहीं हैं। नेतन्याहू कुल मिलाकर अच्छी स्थिति में हैं क्योंकि इजरायल ने बढ़त हासिल कर ली है और इस समूचे क्षेत्र में सबसे शक्तिशाली फौजी ताकत के रूप में उभर रहा है। हमास बहुत हद तक बर्बाद हो चुका है, लेकिन उसे नेस्‍तनाबूद नहीं किया जा सका है। लेबनान में हिज्‍बुल्ला अब कोई खतरा नहीं है और सीरिया में असद शासन का खात्‍मा हो चुका है। इसके साथ ही इस क्षेत्र में ईरान का दखल भी बेअसर हो गई है। ईरान खुद अपने समर्थक गुटों की मदद के बिना इजरायल के खिलाफ कार्रवाई करने की स्थिति में नहीं है। इजरायल अब पिछले साल 7 अक्टूबर (जब हमास ने धमाके किए थे) के मुकाबले अधिक सुरक्षित है। तो, सवाल है कि गाजा में युद्ध क्यों जारी रहे। जवाब है कि आइडीएफ के पास और कुछ करने को नहीं है? गाजा पट्टी पहले ही बर्बाद हो चुकी है।

लड़ाई खत्म होने का मतलब होगा नए चुनाव, जिसमें नेतन्याहू जीत सकते हैं और नहीं भी। शांति स्‍थापित होने से उनके खिलाफ जांच भी हो सकती है और उन पर अभियोग भी लग सकते हैं। नेतन्याहू यूं तो ट्रम्‍प के करीबी दोस्त हैं, लेकिन उन्हें पता है कि नए अमेरिकी राष्ट्रपति मनमौजी हैं और अमेरिका की ताकत दिखाने इरादा रखते हैं। वे इजरायल को जब चाहे, धमका भी सकते हैं। यह मामला बाइडन सरकार के विपरीत है। ट्रम्‍प को कोई भी हल्‍के में नहीं ले सकता और नेतन्याहू भी कोई अलग नहीं हैं। फिलहाल वे ट्रम्‍प की बात मानने को तैयार हैं, शायद इस उम्मीद में कि नए राष्ट्रपति वेस्ट बैंक में इजरायली बस्तियों के विस्तार की छूट दे देंगे।

गाजा पर किसका कब्‍जा है?

छह हफ्ते की अदला-बदली समाप्त होने और आबादी वाले क्षेत्रों से हटकर आइडीएफ के सीमा के पास स्थिति संभाल लेने के बाद गाजा की कमान किसके हाथ में होगी? जनवरी 2006 में गाजा में चुनावों में जीत के बाद हमास और फतह गुट के बीच विवाद के बाद गाजा पट्टी से फतह के लड़ाकों को बाहर कर दिया गया। हमास के सभी नेताओं का सफाया हो चुका है, लेकिन उसका सफाया नहीं हुआ है। यानी फिलिस्तीन के लोगों को नेतृत्व के सवाल पर फैसला करना होगा क्योंकि यह स्पष्ट है कि इजरायल कभी भी गाजा पर हमास के नियंत्रण पर सहमत नहीं होगा।

गाजा का पुनर्निर्माण

गाजा पट्टी के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी के लिए फिलस्तीन के लोगों को नया नेतृत्‍व तैयार करना होगा। गाजा को फिर से अपने पैरों पर खड़ा करने में कम से कम तीन से पांच साल लगेंगे। गाजा में पूरी तरह नष्ट हो चुकी बस्तियों और इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर के पुनर्निर्माण के लिए अरबों डॉलर की जरूरत है। इसका खर्च कौन उठाएगा, और बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण कार्यक्रम की देखरेख कौन करेगा? बड़ा सवाल यह है कि क्या युद्ध विराम से इजरायल और फिलस्तीन के बीच स्थायी शांति आ सकती है?

लंदन के किंग्स कॉलेज के रणनीतिक विश्लेषक एंड्रिया क्रेग ने अपने ब्लॉग में लिखा, "सबसे बड़ी चुनौती बंधक और कैदी अदला-बदली समझौते को स्थायी युद्ध विराम समझौते में बदलना होगा, जिससे गाजा में युद्ध खत्‍म हो। फिलहाल, नेतन्याहू सरकार युद्ध खत्‍म करने और गाजा के सभी क्षेत्रों से हटने की राजनैतिक इच्छाशक्ति काफी नहीं दिखती है। सो, ट्रम्‍प प्रशासन में प्रमुख वार्ताकारों- खासकर विटकॉफ- और कतर के असर का इस्‍तेमाल किया जाना चाहिए, ताकि यह तय किया जा सके कि अमेरिका का दबाव इजरायल की कट्टर दक्षिणपंथी सरकार से न घटे।"

 

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