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बदले पुलिसिया तौर-तरीके

इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के युग में लाठी-बंदूक से ज्यादा अहम हुए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और ड्रोन
भारतीय पुलिस में सुधार की जरूरत

इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ पुलिस चीफ्स की 2018 कांफ्रेंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर की पुलिस में तकनीक के इस्तेमाल पर तीन रुझान देखने को मिलने लगे हैं। पुलिस अपने सॉफ्टवेयर को सुरक्षा के लिहाज से विभाग के भीतर ही समेटने के बजाय पब्लिक सेक्टर के क्लाउड कम्प्यूटिंग पर होस्ट करने लगी है। पुलिस के रोजमर्रा के कामकाज में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल भी बढ़ा है। जनसंख्या के बदलते स्वरूप के चलते पुलिस सोशल मीडिया और फील्ड एक्टिविटी के जरिए लोगों, विशेषकर युवाओं से सरोकार मजबूत करने में लगी है।

बीसवीं सदी के मध्य तक पुलिस के औजार के नाम पर  मोटर-घोड़ा, लाठी-बंदूक, टीयर गैस-मोर्टार, बॉडी प्रोटेक्टर-बैरीकेड, वायरलेस फोन, डेस्क टॉप-फोटो स्टूडियो होते थे। लेकिन पिछले बीस साल में सूचना तकनीक क्षेत्र की तीसरी औद्योगिक क्रांति ने समाज के तौर-तरीकों को पूरी तरह से बदल दिया है।

2017 में मैनेजमेंट के स्नातकों के बीच हुए सर्वे में 68 फीसदी प्रतिभागियों ने तकनीक के तेज बदलाव को सर्वाधिक चिंता का विषय बताया था। नाभिकीय युद्ध और क्लाइमेट चेंज दूसरे और तीसरे नंबर पर थे। तकनीक में तेज बदलाव ने कंज्यूमर और रिटेल उद्योग को नई शक्ल ही दे दी है। बाजार में हर रोज नए गैजेट और सेवाएं आ रही हैं। तकनीक की बदौलत ही घर का सामान, सॉफ्टवेयर और किसी अनजान ड्राइवर वाली लेकिन सुगम टैक्सी सर्विस मिल रही है। सर्वे में एक और रोचक तथ्य यह था कि 24 फीसदी लोगों ने टेस्ला और स्पेस एक्स के सीईओ एलन मस्क और 10 फीसदी ने वर्जिन कंपनी के रिचर्ड ब्रैनसन को दुनिया का सबसे प्रभावी बिजनेस लीडर बताया। स्पष्ट है कि आने वाले समय में वे ही लोग टिके रह पाएंगे जो तकनीकी बदलाव की इस आंधी का इस्तेमाल बखूबी कर पाएंगे और अपने काम को बेहतर तरीके से अंजाम दे पाएंगे। पुलिस भी इस मामले में कोई अपवाद नहीं है।

दरअसल किसी ड्रोन की तरह पेट्रोलिंग कोई आदमी कर ही नहीं सकता। ड्रोन कंट्रोल रूम को रियल टाइम वीडियो और इमेज भेज सकता है। इसके आधार पर ज्यादा कारगर सुरक्षात्मक कार्रवाई की जा सकती है। इमेज और वीडियो का इस्तेमाल अपराध के सबूत के तौर पर किया जा सकता है। ये भागते अपराधियों का चुपचाप पीछा कर उसके छिपने के स्थान का पता कर सकता है। इस तरह अपराधी को कम-से-कम खून-खराबे के तरीकों से पकड़ा जा सकता है। गश्त कर रहे पुलिसकर्मी का ‘गूगल ग्लास’ आसपास की घटनाओं को रिकॉर्ड कर सकता है। विश्लेषण कर अगल-बगल के घर, दफ्तर, दुकान और इंसानों के बारे में बता सकता है। इसका फेशियल रिकग्निशन सॉफ्टवेयर वांछित अपराधियों की पहचान कर सकता है। सोशल मीडिया पोस्ट से आपराधिक सूचनाएं मिल सकती हैं। हैंड-हेल्ड स्कैनर से यूनीक बॉयोमेट्रिक जैसे फिंगरप्रिंट, रेटिना स्कैन और डीएनए की पहचान हो सकती है।

न्यूयॉर्क पुलिस के पास ‘डोमेन अवेयरनेस सिस्टम’ है। अपराध की सूचना मिलते ही रिस्पांस टीम को इससे निबटने के लिए उपयोगी इनपुट जैसे कि आपराधिक इतिहास, डिस्पैच, नक्शा, क्राइम रिपोर्ट, सीसीटीवी से लाइव इमेज और वीडियो रियल टाइम में मिलने लगता है। इससे बेहतर जवाबी कार्रवाई करने में मदद मिलती है। टैबलेट, हैंड-हेल्ड ट्रांस्लेटर और इलेक्ट्रॉनिक टिकट राइटिंग डिवाइस से मौके पर ही एक्शन लिया जा सकता है। इलेक्ट्रॉनिक टैग रीडर गाड़ी का नंबर पढ़ इसके चोरी के होने के बारे में फौरन बता देता है। जीपीएस के जरिए  पुलिसकर्मियों की लोकेशन का पता किया जा सकता है, दुर्घटना-संभावित क्षेत्र को चिह्नित किया जा सकता है। इसके विश्लेषण से क्राइम-ट्रेंड का पता चलता है।

स्मार्ट सेंसर से लोकेशन लॉगइन किया जा सकता है, घटनास्थल पर बंदूक की आवाज सुनी जा सकती है, वीडियो स्ट्रीमिंग की जा सकती है, लाइसेंस प्लेट्स को फ्लैग किया जा सकता है, डाटा स्कैन किया जा सकता है और वर्चुअल पेट्रोलिंग की जा सकती है। ऑग्मेंटेड रियल्टी, बॉडी कैमरा, लाइसेंस प्लेट रीडर और स्मार्ट सेंसर्स से एकत्रित डाटा का आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और मशीन लर्निंग की मदद से विश्लेषण किया जा सकता है।

इससे अनुसंधान में तेजी लाई जा सकती है, अपराध-संभावित क्षेत्र की पहचान की जा सकती है, अपराधियों के बीच गठजोड़ और अपराध के पैटर्न का पता किया जा सकता है। 5-जी तकनीक, इलेक्ट्रॉनिक मिनीचराइजेशन तथा ऑग्मेंटेड रियल्टी से मौके पर जा रहे पुलिसकर्मी को कार्रवाई के लिए डिजिटल बैक-अप उपलब्ध रहेगा। अंधेरे में तीर चलाने के बजाय अपराध के रोकथाम और अनुसंधान के लिए आंकड़ा आधारित प्रभावी कदम उठाए जा सकेंगे।

पुलिस के जिम्मे समाज की सुरक्षा है। उसके सामने आज चुनौती सिर्फ नई तकनीक को स्वीकार करने भर की नहीं है, बल्कि इसका इस्तेमाल कर अपराध निषेध और जांच-पड़ताल को बेहतर बनाने की भी है। इसके लिए जरूरी है कि पुलिस मुख्यालयों पर एक सक्षम चीफ  टेक्नोलॉजी ऑफिसर की तैनाती हो जो तकनीक में बदलाव के साथ पुलिस को ढालने की जिम्मेदरी संभाले।

कम्युनिटी पुलिसिंग के जन-रुचिकर तरीकों का पता कर उसे शिद्दत से लागू करने की भी आवश्यकता है। इस क्षेत्र में हरियाणा पुलिस के प्रयासों पर गौर किया जा सकता है। अप्रैल 2018 से मार्च 2019 तक उसने 772 राहगीरी और मैराथन जैसे लोकप्रिय जन-संपर्क कार्यक्रमों के माध्यम से 13,42,500 लोगों से सीधा संपर्क साधा। इसमें अधिकांश युवा थे।

(लेखक आइपीएस अधिकारी और हरियाणा के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक हैं)

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