छत्तीसगढ़ में बिहार के चारा घोटाले जैसा ही फर्जीवाड़ा सामने आया है। बिहार में नेताओं ने पशुओं का चारा खा लिया, तो यहां दिव्यांगों का इलाज कागजों पर दिखाकर बड़े अफसरों ने अपनी जेब भर ली। हाइकोर्ट की टेढ़ी नजर से मामले का खुलासा हुआ। दो पूर्व मुख्य सचिव समेत पांच आइएएस और समाज कल्याण विभाग से जुड़े सात अफसरों के नाम फर्जीवाड़े में सामने आए हैं। एक जनहित याचिका पर फैसला देते हुए छत्तीसगढ़ की हाइकोर्ट ने सीबीआइ को 12 अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश दिए। 2008 से 2018 के दौरान भाजपा राज में हुए घोटाले में अफसरों ने एक हजार करोड़ रुपये का खेल कर लिया। फर्जीवाड़े की रकम ज्यादा होने के कारण जांच कोर्ट की निगरानी में होगी।
पूर्व मुख्य सचिवों में एक विवेक ढांड अभी रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) के अध्यक्ष हैं, जो संवैधानिक पद है। दूसरे पूर्व मुख्य सचिव सुनील कुजूर राज्य सहकारी निर्वाचन आयोग के कमिश्नर हैं। मुख्य सूचना आयुक्त एम.के. राउत का नाम भी फर्जीवाड़ा करने वालों में है, हालांकि उनका कहना है कि वे कभी समाज कल्याण विभाग में नहीं थे। ढांड और राउत को रमन सरकार ने संवैधानिक पदों पर बिठाया था, तो कुजूर को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मुख्य सचिव और फिर निर्वाचन आयोग का कमिश्नर बनाया। स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला का नाम भी गड़बड़ी करने वालों में है। बहुचर्चित नान (नागरिक आपूर्ति निगम) घोटाले में वे करीब तीन साल तक निलंबित रहे थे। उन्हें कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार ने बहाल किया है।
फर्जीवाड़े में हाथ सेंकने वाले एक आइएएस अधिकारी बाबूलाल अग्रवाल को केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग 250 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप में बर्खास्त कर चुका है। वे जेल भी जा चुके हैं। इस कांड में शामिल पीपी श्रोती राज्य गठन के वक्त 2000 में भोपाल से रायपुर आए थे। वे रिटायरमेंट के बाद भी सेवावृद्धि लेते रहे। वर्षों पंचायत और समाज कल्याण विभाग के संचालक रहे, फिर कांग्रेस की सरकार आने तक राज्य योजना मंडल के सदस्य रहे। समाज कल्याण विभाग के अपर संचालक एम.एल. पांडेय पहले भी भ्रष्टाचार के मामले में फंस चुके हैं। कुछ साल पहले एंटी करप्शन ब्यूरो ने उनके घर छापा मारकर भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा और विदेशी सामान जब्त किया था। दिव्यांगों के नाम का पैसा डकारने वालों में समाज कल्याण विभाग के संयुक्त संचालक राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, पंकज वर्मा और सतीश पांडेय के भी नाम हैं।
रायपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर की ओर से अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर ने 2018 में हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। इसमें बताया गया कि अधिकारियों ने फर्जी संस्थान स्टेट रिसोर्स सेंटर (एसआरसी) के नाम पर घोटाला किया है। एसआरसी का कार्यालय माना, रायपुर में बताया गया, जो समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत आता है। बैंक ऑफ इंडिया के एकाउंट और एसबीआइ मोतीबाग के तीन एकाउंट से संस्थान में कार्यरत अलग-अलग लोगों के नाम पर फर्जी आधार कार्ड से खाते खुलवाकर रुपये निकाले गए। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि ऐसी कोई संस्था राज्य में है ही नहीं। सिर्फ कागजों में संस्था का गठन किया गया था। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह सीबीआइ जांच से सभी बातों के खुलासे की मांग कर रहे हैं, तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल घोटाले के लिए डॉ. रमन सिंह और केंद्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह को जवाबदेह बता रहे हैं।
फर्जीवाड़े में उलझे कुछ ओहदेदारों की नियुक्ति भले रमन सिंह ने की हो, लेकिन आजकल वे भूपेश बघेल की कोटरी के सदस्य कहे जाते हैं। मुख्यमंत्री ने इस मामले में कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर करने की बात की है, लेकिन कोर्ट का रुख अब तक सख्त रहा है। यह मामला पहले सिंगल बेंच के पास था, फिर गंभीरता को देखकर दो जजों की बेंच को भेजा गया। कहा जा रहा है कि कोर्ट संज्ञान नहीं लेती तो इतना बड़ा घोटाला उजागर ही नहीं होता। सवाल यह है कि मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी ही फर्जीवाड़े में शामिल हो जाएं तो प्रशासन भगवान भरोसे ही चलेगा।
केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह का भी नाम
फर्जीवाड़े में केंद्रीय जनजाति विकास राज्यमंत्री रेणुका सिंह भी लपेटे में आ गई हैं। जब यह फर्जीवाड़ा हुआ, तब वह कुछ समय के लिए राज्य की समाज कल्याण मंत्री थीं। सूत्रों के अनुसार सीबीआइ ने रेणुका सिंह के खिलाफ अपराध दर्ज करने को लेकर केंद्र सरकार से कानूनी राय मांगी है। रेणुका सिंह का कहना है कि उन पर गलत आरोप लगाया गया है, लेकिन सीबीआइ पूछताछ करेगी तो पूरा सहयोग करेंगी।