सत्ता की चाशनी के बिना छत्तीसगढ़ में भाजपा के नेता अलग-अलग राह पर चल पड़े हैं और एक-दूसरे के लिए गड्ढा खोदते दिख रहे हैं। राज्य में पार्टी के भीतर अभी डॉ. रमन सिंह और उनका विरोधी खेमा साफ तौर पर आमने-सामने दिखाई दे रहा है। रमन सिंह अपनी पसंद के किसी नेता को नया प्रदेश अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं, तो विरोधी खेमा इसके उलट चाहत रखता है। मुख्यमंत्री रहने के कारण डेढ़ दशक तक संगठन का मुखिया रमन सिंह की पसंद से ही बनता रहा है। रमन सिंह अभी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के साथ राज्य के कद्दावर नेता हैं, जिनके चेहरे पर भाजपा ने तीन चुनाव जीते। 2018 के विधानसभा चुनाव में बुरी हार का दाग भी उन्हीं पर लगा। लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते 11 में से 9 सीटें जीतने वाली भाजपा इसके बाद न तो उपचुनाव जीत सकी और न ही नगरीय निकाय और पंचायतों में कांग्रेस को मात दे सकी। दस निगमों में कांग्रेस के महापौर बन गए। 27 में से सात जिला पंचायत अध्यक्ष ही भाजपा के खाते में आए।
भाजपा हाइकमान ने 2019 के लोकसभा चुनाव में दस मौजूदा सांसदों का टिकट काटकर नए लोगों को उतारा, जिनमें से नौ सांसद बन गए। लेकिन संगठन में पुराने नेताओं को नजरअंदाज करना हाइकमान के लिए आसान नहीं होगा। छत्तीसगढ़ भाजपा अध्यक्ष के लिए रामविचार नेताम, विष्णुदेव साय, संतोष पांडेय और विजय बघेल के नाम चल रहे हैं। कहा जा रहा है कि रमन सिंह का खेमा किसी अनुभवी और पुराने नेता को संगठन की कमान देने के पक्ष में है। वहीं, रमन विरोधी माने जाने वाले नेता बृजमोहन अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पांडेय और दूसरे लोग नए और आक्रामक नेता को अध्यक्ष के रूप में चाहते हैं। संतोष पांडेय और विजय बघेल लोकसभा के मौजूदा सांसद हैं, जबकि रामविचार नेताम राज्यसभा सदस्य हैं। विष्णुदेव साय को पिछली बार चुनाव नहीं लड़ाया गया था। वे 2006 और 2014 में दो बार अध्यक्ष रह चुके हैं। विजय बघेल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के रिश्तेदार हैं। उनके खिलाफ चुनाव लड़ने के साथ राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता भी है। रमन विरोधी विजय के पक्ष में लाबिंग कर रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय महासचिव सरोज पांडेय कितनी सहमत होती हैं, यह भी अहम है। संतोष पांडेय संघ के पुराने कार्यकर्ता हैं और रमन सिंह के गृह जिले से हैं। हाइकमान ने रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह का टिकट काटकर संतोष पांडेय को लोकसभा लड़ाया था।
रामविचार नेताम अभी पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उन्होंने जिला पंचायत चुनाव में अपने बूते पर बलरामपुर जिले में बहुमत दिलाकर बेटी निशा नेताम को अध्यक्ष बनवा दिया। ओबीसी वर्ग से धरमलाल कौशिक नेता प्रतिपक्ष हैं और वे प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। कौशिक को रमन सिंह की पसंद से भाजपा विधायक दल का नेता बनाया गया था। लेकिन इसको लेकर पार्टी में मतभेद चल रहा है। बड़ी उलझन यह है कि किसी आदिवासी नेता को संगठन की कमान सौंपा जाए या ओबीसी अथवा सामान्य वर्ग के नेता को चुना जाए।
कहते हैं, इतिहास खुद को दोहराता है। ऐसा ही कुछ छत्तीसगढ़ भाजपा में हो रहा है। 2002 में भाजपा के एक दर्जन विधायक कांग्रेस में गए थे। भाजपा ने तब राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी खड़ाकर कांग्रेस को वाकओवर दे दिया था। अबकी बार बिलासपुर में पार्टी ने महापौर के लिए प्रत्याशी ही नहीं उतारा। कोरबा निगम में बहुमत होते हुए भी भाजपा का महापौर नहीं बन सका। कुछ जगहों पर भाजपा के पार्षदों ने क्रॉस वोटिंग की। एक बात तो साफ है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा सत्ता गंवाने के बाद बुरे दौर से गुजर रही है। अब सारा दारोमदार नए प्रदेश अध्यक्ष पर रहेगा। यह देखना है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा राज्य के नेताओं की सलाह मानते हैं या खुद फैसला करते हैं। नड्डा छत्तीसगढ़ के प्रभारी रह चुके हैं।
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रमन खेमा किसी अनुभवी नेता को अध्यक्ष बनाना चाहता है, लेकिन विरोधी खेमा इस पद पर आक्रामक व्यक्ति चाहता है