राज्य में बरसात का लगभग एक महीना और बाकी है, अब तक हुई अच्छी बारिश ने छत्तीसगढ़ में चुनाव का माहौल हरा-भरा कर दिया है। पिछले चुनाव में मध्य प्रदेश के साथ छत्तीसगढ़ से बेदखल हुई भाजपा को इस बार यहां से काफी उम्मीद है। इस उम्मीद के चलते पार्टी ने चौतरफा सर्जरी शुरू कर दी है। इसकी शुरुआत उसने बॉटम्स अप एप्रोच की जगह टॉप टु बॉटम एप्रोच के साथ की। भाजपा ने सबसे पहले अपना चेहरा बदला। पहले प्रदेश अध्यक्ष हटाए गए, फिर नेता प्रतिपक्ष को बदल दिया गया। अब भाजपा 2023 का चुनाव पहली बार बने सांसद अरुण साव की अगुवाई में लड़ने जा रही है। पार्टी की सोच है कि कांग्रेस के हावी होते छत्तीसगढ़ियावाद का जवाब अरुण साव हो सकते हैं।
प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस का कहना है कि चेहरे बदलने के बावजूद भाजपा को कुछ हासिल नहीं होने वाला। कांग्रेस के छत्तीसगढ़ प्रभारी पीएल पुनिया कहते हैं, ‘‘केवल अध्यक्ष बदलने से कोई काम नहीं चलेगा। चार साल में चार अध्यक्ष बदल रहे हैं तो संगठन की क्या स्थिति है यह समझ सकते हैं।’’
साव मूल रूप से तेली हैं जो छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख ओबीसी वर्ग है। पिछले चुनाव में भाजपा के समर्थक समझे जाने वाले राज्य के साहू मतदाता स्थानांतरित हो गए थे जिसकी वजह से भाजपा को 10 साल के बाद प्रदेश से सत्ता गंवानी पड़ी।
जानकारों का कहना है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में ओबीसी मतदाता भाजपा से कांग्रेस की तरफ चले गए। इसकी सबसे बड़ी वजह कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हैं। बघेल ओबीसी समाज से ताल्लुक रखते हैं और राज्य के एक अन्य प्रमुख वर्ग कुर्मी से आते हैं। 2023 के चुनाव में प्रदेश में भाजपा को फिर से सत्ता में लाने के उद्देश्य से एक मजबूत ओबीसी चेहरे को कमान सौंपी गई है।
भाजपा ने प्रदेश के मुखिया का चेहरा क्या बदला पार्टी, आरएसएस और इसके आनुषंगिक संगठनों की 2023 विधानसभा चुनाव को लेकर क्या भूमिका होगी, इस पर विस्तार से विचार-मंथन कर रणनीति करती नजर आने लगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की रायपुर में 10 सितंबर को शुरू हुई तीन दिवसीय समन्वय बैठक उसी का संकेत है।
भाजपा वोटरों पर अपनी मजबूत पकड़ बनाने के उद्देश्य से प्रदेश में धान और धर्म को अपना प्रमुख हथियार बना कर चल रही है। पार्टी धर्मांतरण और धान को लेकर प्रदेश भर में आंदोलन कर चुकी है। इसके अलावा राज्य में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार, खाद आपूर्ति की समस्या, अघोषित बिजली कटौती, आदि मुद्दों को समय-समय पर उठाती रही है। सत्ता से बेदखल होने के तीन वर्ष बाद हुए नगरीय निकाय के चुनाव में उसे खासी सफलता नहीं मिल पाई। लगभग तीन वर्ष के अंतराल के बाद हुए इस महत्वपूर्ण चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को एक बार फिर से साफ कर डाला। ठीक वैसा जैसे उसने 2018 में किया था जब 90 में से 70 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। कांग्रेस ने 14 निकायों पर कब्जा कर लिया। कमल मात्र एक पर ही खिल पाया। कांग्रेस के इस दमदार प्रदर्शन का श्रेय सीधे भूपेश बघेल के नेतृत्व के खाते में गया।
इसके पीछे वजह रही सरकार द्वारा राम वन गमन पथ को लेकर किया जा रहा कार्य, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए गोबर और गौमूत्र की खरीदी जैसे कार्य। प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी आगामी चुनाव में इन सभी कार्यों और योजनाओं को लेकर सभी वर्ग के वोटरों तक पहुंचने जा रही है और वह भी ऐसे समय में जब पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष की अभी तक की बारिश ने किसानों के हलों को मजबूती दे दी है और इस साल राज्य के बांधों में 26 फीसदी ज्यादा पानी है। जो भी हो, जानकारों का मानना है कि 2023 चुनाव के परिणाम सभी के लिए चौंकाने वाले होंगे।