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सितारों के स्वर

बॉलीवुड में नागरिकता कानून पर कुछ फिल्मकारों ने तो खुलकर बोलने का जोखिम उठाया मगर बड़े सितारों ने चुप्पी को पॉलिटिकली करेक्ट माना
मुद्दा 2019  नागरिक प्रश्न,

नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में देश भर में भड़के प्रदर्शनों में सितारों की दुनिया फिर बंटी। फरहान अख्तर, अनुराग कश्यप, अनुभव सिन्हा, स्वरा भास्कर जैसे कलाकारों और निर्देशकों ने इस कानून के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की, जबकि परेश रावल, अनुपम खेर जैसे लोगों ने कानून का स्वागत किया। कई अन्य कलाकारों ने बीच का रास्ता अपनाया लेकिन बॉलीवुड के अधिकतर शीर्ष कलाकार जैसे सलमान खान, शाहरुख खान, आमिर खान, अक्षय कुमार, अमिताभ बच्चन या दीपिका पादुकोण इस विवाद पर चुप ही रहे।

हाल के वर्षों में किसी भी विवादास्पद मुद्दे पर इन कलाकारों ने अपनी प्रतिक्रिया देने से परहेज किया है चाहे वह इंडस्ट्री में महिला कलाकारों के यौन शोषण के खिलाफ ‘मीटू’ आंदोलन ही क्यों न हो? इसके कारण उन्हें अक्सर तीखी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा है। पिछले दिनों जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों पर पुलि‌सिया कार्रवाई के बाद फिल्मकार अनुराग कश्यप ने उन लोगों की चुप्पी पर गुस्सा जाहिर किया, जिनके बोलने के कुछ मायने हो सकते थे। जाहिर है, उनका इशारा इंडस्ट्री के बड़े कलाकारों की ओर था। उन्होंने अक्षय कुमार की आलोचना की जिन्होंने जामिया आंदोलन पर एक ट्वीट को ‘लाइक’ करने के बाद यह कहकर डिलीट कर दिया कि यह भूलवश कर दिया था। थिएटर कलाकार और रेडियो जॉकी रोशन अब्बास ने तो शाहरुख खान से जामिया के छात्रों के समर्थन में आगे आने की यह कहकर अपील कर डाली कि वे विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि बॉलीवुड के कई बड़े सितारों के प्रशंसकों की संख्या करोड़ों में है। फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर उन्हें लाखों लोग फॉलो करते हैं। इन्हीं कारणों से यह उम्मीद की जा रही थी कि रुपहले परदे के सुपरस्टार, जो युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं, नागरिकता कानून के खिलाफ सड़क पर उतरे छात्रों पर हुए लाठीचार्ज के खिलाफ अपनी आवाज मुखर करेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

इनके समर्थन में बॉलीवुड का एक तबका यह मानता है कि किसी भी कलाकार को राजनैतिक विवादों से दूर ही रहना चाहिए। यह उनके लिए वाकई दोधारी तलवार पर चलने जैसा है। अगर वह किसी विषय पर एक समूह का समर्थन करते हैं तो दूसरा वर्ग उनसे नाराज हो जाता है। इसीलिए वे चुप्पी को ही ‘पॉलिटिकली करेक्ट’ समझते हैं।

कहते हैं दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। कुछ वर्ष पूर्व, आमिर खान को मेधा पाटकर के नर्मदा बचाओ आंदोलन के समर्थन में बयान देना उल्टा पड़ा था, जब उनकी फिल्म फना का गुजरात में प्रदर्शन भारी विरोध की वजह से रोक देना पड़ा। फिर, देश में कथित असहिष्णुता के वातावरण के संबंध में उनके दिए बयान पर भी

भारी बवाल मचा था। शाहरुख खान और नसीरुद्दीन शाह जैसे कई अन्य नामचीन कलाकारों का भी ऐसा ही कटु अनुभव रहा है। नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध चल रहे आंदोलन के बीच भी कुछ ऐसा ही हुआ।

कलाकार सुशांत सिंह को एक टेलीविजन कार्यक्रम, सावधान इंडिया, से कथित रूप से उनके कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के एक महीने पहले ही बाहर कर दिया गया, क्योंकि वे छात्रों के समर्थन में खुलकर सामने आए थे। उन्होंने कहा, “मैं कलाकार के रूप में अपना हुनर बेचता हूं, जमीर नहीं।” अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा को भी हरियाणा सरकार ने ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ कार्यक्रम के ब्रांड एंबेसडर के पद से कथित तौर पर हटा दिया, क्योंकि उन्होंने नागरिकता कानून की मुखालफत की थी। हरियाणा सरकार ने बाद में स्पष्टीकरण दिया कि उनका कॉन्ट्रैक्ट 2017 में ही समाप्त हो गया था, जिसका नवीनीकरण नहीं किया गया।

शायद इन्हीं वजहों से बॉलीवुड के बड़े सितारे मुखर होकर किसी विवादास्पद मुद्दे पर टिप्पणी करने से बचते रहे हैं। यह हॉलीवुड की परंपराओं से बिलकुल अलग है। रॉबर्ट डिनेरो और मेरिल स्ट्रीप जैसे सुपरस्टार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पुरजोर आलोचना करने में सबसे आगे रहे हैं। लेकिन भारत में, खासकर हिंदी फिल्मों में, अधिकतर फिल्मी कलाकार अमूमन सरकार के पक्ष में ही दिखे हैं। यहां तक कि इमरजेंसी के दौरान भी, अगर देव आनंद, विजय आनंद, किशोर कुमार सरीखे अपवादों को छोड़ दिया जाए, तो अधिकतर कलाकार और फिल्मकार सत्तापक्ष के खिलाफ सामने नहीं आए थे। ऐसे बिरले ही मौके आए जब किसी फिल्म कलाकार ने खुलकर सरकार  की नीतियों की आलोचना की हो।

सोशल मीडिया के इस युग में कुछ परिवर्तन अवश्य दिख रहा है। आज अधिकतर कलाकार सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और उन सबकी अपनी-अपनी फॉलोइंग है। मनोज बाजपेयी, दीया मिर्जा, रितेश देशमुख, हुमा कुरैशी, ऋचा चड्ढा जैसे कलाकारों ने अपनी बेबाक राय रखी है। फरहान अख्तर ने जब लोगों से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ मुंबई के अगस्त क्रांति मैदान में गत सप्ताह आयोजित प्रतिरोध सभा में भाग लेने की अपील की, तो स्वरा भास्कर सहित कई कलाकार और फिल्मकार वहां पहुंचे, हालांकि उनमें कोई भी बॉलीवुड की कथित ए-लिस्ट का नुमाइंदा न था। फिर भी, उन सबकी उपस्थिति ने यह जरूर एहसास दिलाया कि बॉलीवुड का हर सेलिब्रिटी अब तटस्थ रहने में विश्वास नहीं रखता है। उनके लिए सोशल मीडिया के आज के दौर में मौन वाकई स्वीकृति का ही लक्षण है। 

 

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अनुराग कश्यप

देशद्रोही वो नहीं जो सड़क पर हैं, देशद्रोही वो हैं जो सत्ता में हैं। देश हमारे लोगों से और संविधान से है, सत्ताधारियों से नहीं। देश तब भी था जब मोदी-शाह नहीं थे और आगे भी रहेगा। लेकिन ये भाजपा का देशद्रोह अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। देशभक्ति भाजपा को साबित करनी है, हमें नहीं।

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परिणीति चोपड़ा

किसी नागरिक के अपने विचार व्यक्त करने पर अगर हर बार यही होता है, तो सीएए को भूल जाइए। हमें अलग कानून पास करना चाहिए और अपने देश को लोकतंत्र नहीं कहना चाहिए। अपनी बात कहने वाले निर्दोष लोगों को पीटा जा रहा है? बर्बर!

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फरहान अख्तर

इस तरह के प्रदर्शन क्यों जरूरी हैं, यह समझने के लिए आपको इन बातों को जानना जरूरी है। अगस्त क्रांति मैदान, मुंबई में 19 दिसंबर को मिलते हैं। सिर्फ सोशल मीडिया पर विरोध जताने का समय अब चला गया है। (सीएए और एनआरसी क्या है, इसका पोस्ट टैग करते हुए)

 

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दीया मिर्जा

मेरी मां हिंदू हैं, मेरे बायोलॉजिकल पिता ईसाई थे, मेरे दत्तक पिता मुसलमान हैं। सभी सरकारी कागजात में मेरे धर्म का कॉलम खाली रहता है। क्या धर्म से पता चलेगा कि मैं भारतीय हूं? ऐसा पहले कभी नहीं हुआ और उम्मीद है होगा भी नहीं।

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