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8 जुलाई 2024 · JUL 08 , 2024

जनादेश ’24 नजरियाः गांव और संविधान की जीत

राहुल गांधी की यात्राओं के दौरान ही सामाजिक न्याय और संविधान के मुद्दे गरमा गए थे
यात्रा ने बदला कांग्रेस के प्रति रवैया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार एनडीए की सरकार ने अपना कामकाज संभाल लिया है। भाजपा के भीतर सबसे अधिक चर्चा इसी बात पर है कि उसके भाग्यविधाता राज्य उत्तर प्रदेश में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के बावजूद आखिर करारा झटका क्यों लगा और वे कौन-से मुद्दे थे जिन्होंने भाजपा को चोट पहुंचाई। हिंदी पट्टी में भाजपा ने 71 सीटें गंवाईं और सबसे अधिक 29 सीटों का नुकसान उसे उत्तर प्रदेश में हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र में कहा गया है कि ऐसा अति-आत्मविश्वास के कारण हुआ पर हकीकत यह है कि 400 पार का नारा उस पर भारी पड़ा और संदेश गया कि संविधान को बदलने के लिए भाजपा ऐसा प्रयास कर रही है। इसीलिए एनडीए संसदीय दल की बैठक में संविधान को माथे से लगाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सकारात्मक संकेत दिए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

भाजपा 240 सीटों पर विजयी रही और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने अपनी सीटें बढ़ाकर 99 कर लीं। समाजवादी पार्टी ने 37, तृणमूल कांग्रेस ने 29, द्रमुक ने 22, तेलुगुदेसम ने 16, जदयू ने 12 और लोजपा ने पांच सीटें जीतीं। आजादी के बाद से ही कहावत चलती रही है कि देश की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से हो कर जाता है। 22 करोड़ से अधिक आबादी वाले इस सूबे से लोकसभा के 80 और राज्यसभा के 31 सांसद चुने जाते हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीतिक अहमियत के कारण ही 2014 में नरेंद्र मोदी ने वाराणसी सीट अपने लिए चुनी थी। अयोध्या, मथुरा और काशी में मंदिर के मुद्दे पर भाजपा को काफी शक्ति मिली।

1991 के बाद विपरीत माहौल में भी उत्तर प्रदेश भाजपा का शक्ति-केंद्र रहा। इस बार उसने न केवल करारा झटका दिया, बल्कि भाजपा को बहुमत से रोक दिया और एक दशक में पहली बार घटक दलों पर भाजपा को निर्भर होना पड़ा है। उत्तर प्रदेश में भाजपा का वोट 2019 के 49.98 प्रतिशत के मुकाबले 41.37 प्रतिशत पर आ गया और वह केवल 33 सीटों पर सिमट गई जबकि इंडिया गठबंधन को भारी जीत मिली।

राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद राममय रहे अवध की 20 में से 12 सीटों पर भाजपा हार गई जबकि विपक्षी सपा पांच से 37 सीटों पर पहुंच गई और कांग्रेस एक से छह सीटों पर आ गई। बहुजन समाज पार्टी सबसे ज्यादा घाटे में रही। वह न कोई सीट जीत सकी, न उसका कोई उम्मीदवार नंबर दो पर आया, न ही वह भाजपा को मदद पहुंचा सकी। इस बार बसपा का 2019 का 19.43 प्रतिशत वोट 10.04 प्रतिशत घट कर 9.43 प्रतिशत पर आ गया।

भाजपा का आकलन था कि मायावती के साथ उनका वोट बैंक चट्टान की तरह खड़ा रहेगा, लेकिन वह इंडिया गठबंधन की ओर चला गया। भाजपा के सुभीते के लिए बसपा ने 13 टिकट बदले। ऐसे टिकट दिए जो सपा-कांग्रेस उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाएं, पर यह भी उलटा पड़ा।

उत्तर प्रदेश में दलित मतदाता करीब 22 प्रतिशत हैं। इसमें 14 प्रतिशत जाटव को बसपा का वोट बैंक कहा जाता है। बाकी में पासी, धोबी, खटीक, मुसहर, कोली, वाल्मीकि, गोंड, खरवार सहित 60 जातियां आती हैं। ओबीसी करीब 45 प्रतिशत हैं, जिसमें 10 प्रतिशत यादव, 5 प्रतिशत कुर्मी और शेष में मौर्य, लोधी, जाट, गुर्जर, राजभर, मल्लाह, निषाद, लोहार, चौरसिया, बिंद, बियार, कहार, प्रजापति और कुम्हार सहित 100 से ज्यादा उपजातियां हैं। करीब 19 प्रतिशत मुसलमान मतदाता हैं।

इन तबकों में संविधान एक बड़ा मुद्दा बना। संविधान भी मुख्य चुनावी मुद्दा बन सकता है, भाजपा के रणनीतिकारों ने इसे नहीं स्वीकारा था। वे मंदिर, मुसलमान, आरक्षण, सनातन जैसे अपने परंपरागत मुद्दों को ही तूल देकर अबकी बार 400 पार का नारा लगाते रहे। वे विपक्ष को मंदिर-विरोधी और मुसलमान परस्त बताते रहे। वहीं इंडिया गठबंधन एक स्वर में बुनियादी मुद्दों को जमीन पर उठाते हुए कहता रहा कि भाजपा को 400 पार  सीटें संविधान खत्म करने के लिए चाहिए।

चुनाव की घोषणा के पहले ही संविधान राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका था। छह बार के भाजपा सांसद और मोदी कैबिनेट में मंत्री रहे अनंत कुमार हेगड़े ने 11 मार्च, 2024 को बाकायदा यह बयान देकर माहौल गरमा दिया कि भाजपा को संसद में दो-तिहाई बहुमत इसलिए चाहिए कि संविधान बदलना है। चुनाव के दौरान नागौर की भाजपा उम्मीदवार ज्योति मिर्धा तथा मेरठ में अरुण गोविल ने भी यही बात कही। फैजाबाद के पूर्व सांसद लल्लू सिंह भी इसे दोहराते रहे। भाजपा ने अगर नजाकत भांप कर स्थिति संभाल ली होती तो तस्वीर बदल सकती थी, पर इसे हलके में ले लिया।

वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी सभाओं में संविधान की प्रति को साथ रखा और दिखाया। राहुल गांधी ने संविधान के साथ बाबा साहब की तस्वीर भी रखी। दलितों के मुद्दों से लेकर मताधिकार तक को उठाया। काफी बाद में जब मोदी को आभास हुआ तो उन्होंने यहां तक कहा कि संविधान ही हमारे लिए गीता-कुरान है और बाबा साहब भी आ जाएं तो वे संविधान नहीं बदल सकते हैं।

विपक्ष ने दस साल में संविधान को कमजोर करने की कोशिशों का विस्तार से विवरण दिया। न्यायपालिका, युनिवर्सिटी, दलित समाज और अल्पसंख्यकों पर हमलों से लेकर कामचलाऊ सरकार द्वारा विपक्षी दलों को परेशान करने और चुनाव आयोग के एकपक्षीय रवैये के साथ जातिगत जनगणना को भी पिछड़ों, दलितों, और आदिवासियों के बीच उठाया। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान ही सामाजिक न्याय और संविधान के साथ बेरोजगारी, महंगाई और  प्रमुख मुद्दों को विपक्ष ने उठाया।

ग्रामीण इलाकों की चुनौती ने भी भाजपा को नुकसान पहुंचाया। ग्रामीण इलाकों में दलित, अतिपिछड़े और वंचित मतदाताओं ने संविधान और दूसरे सवालों को ध्यान में रख कर वोट दिया। भाजपा ने इसे भांपते हुए ही चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने के साथ किसानों का वोट अपने पाले में करने के लिए राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठबंधन किया था और मोदी की पहली रैली भी मेरठ में हुई थी, पर कुछ भी काम न आया।

अरविंद कुमार सिंह

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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