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नजरिया: बहुत कुछ खोया अब और नहीं

कांग्रेस के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए हैं और उसको इतिहास से सबक सीखना होगा, जिसके सहारे उसका पुनरुत्थान संभव है
विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद विमर्श के लिए कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक

सबसे पुराना राजनैतिक दल, देश की आजादी की लड़ाई में सबसे अहम भूमिका निभाने वाला दल, आधुनिक भारत की मजबूत नींव रखने वाला दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वर्तमान में अपनी पारंपरिक और ऐतिहासिक भूमिका आगे बढ़ाने में असहाय, अक्षम और असमर्थ दिखाई दे रहा है। इसका ह्रास कई वर्षों और कई कारणों से निरंतर हो रहा है। इस स्थिति के लिए किसी एक व्यक्ति, विचार या घटना को दोषी ठहराया जाना उचित नहीं होगा। जिस प्रकार बाढ़ की बर्बादी के लिए किसी एक बूंद को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता, भले ही बाढ़ एक-एक बूंद के कारण आई हो।

सही है कि कांग्रेस ने बहुत कुछ खोया है, लेकिन बहुत कुछ बाकी भी है। कांग्रेस के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए हैं और उसको इतिहास से सबक सीखना होगा, जिसके सहारे उसका पुनरुत्थान संभव है। सबसे पहले यह मानना होगा कि कांग्रेस की विचारधारा नहीं हारी है, कांग्रेस का विमर्श हारा है। शहीदे आजम भगत सिंह अपने साथियों को समझाते थे, ‘‘हमारी पार्टी का काम नियमित रूप से चलता रहे, हमारे कार्य सफल हों, हमारी बात देशवासियों तक नियमित पहुंचती रहे, आजादी की लड़ाई में हम हर मंजिल पर कामयाब होते रहें, इन सब के लिए आवश्यक है एक मजबूत संगठन और प्रचार की।’’ कांग्रेस, भाजपा के मुकाबले प्रचार में पिछड़ी है। यह बात कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी स्वीकार की है कि कांग्रेस पार्टी के विचार, ‘सुसंगठन और स्पष्टता’ की कमी के कारण धरातल पर काम कर रहे कार्यकर्ता तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।

दूसरे, यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि कोई भी राजनीतिक दल एक स्फूर्त और जीवंत संगठन के बिना कामयाब नहीं हो सकता। किसी भी संगठन का उद्देश्य उसकी विचारधारा, किसी व्यक्ति विशेष से महत्वपूर्ण होती है। कांग्रेस को यह सच्चाई आत्मसात करनी होगी। भाजपा उसके सामने उदाहरण है। देश के करोड़ों लोग कांग्रेस के मजबूत संगठन के बिना राष्ट्र की राजनीति में सकारात्मक प्रतिभागिता नहीं कर पा रहे हैं।

तीसरे, इसी से जुड़ा हुआ विषय नेतृत्व का है। पिछले दशकों से देश की केंद्रीय राजनीति में परिवर्तन आया है। हर प्रदेश में लोगों की अलग-अलग समस्याएं हैं, आकांक्षाएं हैं। स्थानीय समस्याओं का समाधान भी केंद्र सरकार करें, यह लोगों को स्वीकार नहीं है। इसलिए प्रदेश में अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारें बन रही हैं। देश की राजनीति में एकरसता और एकजुटता हो, इसके लिए आवश्यक है कि प्रदेशों में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व मजबूत हो, जो स्थानीय पार्टियों का मुकाबला कर सके। केंद्रीय नेतृत्व इस प्रक्रिया में सहायक बने, निर्णायक नहीं। कांग्रेस की संस्कृति समावेशी है। पार्टी हर तरह के विचार की स्वतंत्रता का स्वागत करती रही है, मतभेद को विरोध या विद्रोह कभी नहीं माना गया। यही उसकी देशभक्ति, शक्ति और स्वीकार्यता का कारण रहा है। निर्णय सामूहिक हो, अकेले आलाकमान का नहीं।

समय आ गया है कि कांग्रेस का नेतृत्व दूरदृष्टि और आत्मविश्वास का प्रदर्शन और परिचय दे; प्रदेशों में पार्टी का नेतृत्व और संगठन को मजबूती देने की जिम्मेवारी वहां के सबसे मजबूत तथा सबसे स्वीकार्य नेताओं को सौंपे; और रोजाना दखलंदाजी न करे। केंद्रीय नेतृत्व समन्वय स्थापित करे, निगरानी रखे और आवश्यक नीति-निर्देश दे, एकजुटता और अनुशासन बनाए रखे। इस प्रकार सभी प्रदेश मिलकर केंद्र को मजबूत कर सकते हैं। इसके लिए जो भी संवैधानिक या संस्थागत परिवर्तन करने की आवश्यकता हो, सूझबूझ और शीघ्र किया जाए।

केंद्रीय नेतृत्व की जिम्मेवारी है कि कांग्रेस के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुट कर उसमें नई जान फूंके। वरना, दिलों की उलझनें बढ़ती रहेंगी/ अगर कुछ मशवरे बाहम न होंगे!!

(लेखक केंद्र में सचिव पद से रिटायर पूर्व अधिकारी और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार निजी हैं)

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