जब मैंने जॉय (जस्ट ओल्डर यूथ) बनाई थी, तब सोचा भी नहीं था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब हमारा परिवार इतना बड़ा हो जाएगा। यह समूह है, बुजुर्ग होकर भी युवा होने का। इसमें 55-65 वर्ष के ऐसे अकेले लोग जुड़े हुए हैं जो अपनी तमाम जिम्मेदारियों से मुक्त होकर फिर से जीवन का आनंद लेना चाहते हैं। कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें अकेलापन मिल गया है। यानी किसी के जीवनसाथी का साथ छूट गया तो किसी के पास माता-पिता की जिम्मेदारी थी और वह अपने लिए कुछ सोच ही नहीं सका। यह समुदाय है, जहां हम एक-दूसरे की मदद करना चाहते हैं, एक साथ सब बिना चिंता के रहना चाहते हैं कि कल को हालत खराब हुई तो अकेले कैसे रहेंगे। मैं सबसे कहती हूं, यहां 'लाइक माइंडेड' नहीं 'लाइक हार्टेड' लोग रहते हैं यानी ऐसे लोग जो दूसरों की मदद करना चाहें, अकेलेपन में किसी का साथ दे सकें और जरूरत पड़ने पर किसी की मदद कर सकें।
कठिन वैवाहिक जीवन और कई साल अकेले रहने के बाद मैंने पाया कि आजादी का भी अलग आनंद होता है। इस दौरान मैंने कई देश देखे, इन यात्राओं ने मुझे खुद को समझने के लिए बेहतर समझ दी। इन्हीं यात्राओं से मैंने जाना कि मेरे अंदर किसी के साथ रहने की उत्कंठा है। कोई ऐसा जिसके साथ बातें साझा की जा सकें, अपना कुछ सुनाया जा सके, दूसरे की सुनी जा सके। मैंने जाना कि हमेशा ऐसा नहीं होता कि बच्चे आपकी देखभाल न करना चाहें, लेकिन बच्चों का भी अपना जीवन है। कई बार माता-पिता की देखभाल के कारण वे अपने करियर के लिए भी कहीं नहीं जाते। मेरा अपने बेटे से बहुत अच्छा रिश्ता है लेकिन मुझे पता था कि एक दिन ऐसा आएगा जब उसको कहीं बाहर जाना पड़ सकता है। मेरी उम्र की शायद आखिरी पीढ़ी होगी जो अपने माता-पिता की देखभाल कर रही है। मेरे पिता उम्र के सातवें दशक में हैं और कुछ साल से स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे हैं। उनकी देखभाल के लिए मुझे अपने करियर के बारे में सोचना पड़ता है। उन्हें देख कर ही मुझे लगा कि जीवन की अंतिम सांस तक स्वस्थ रहना कितना जरूरी है। मैंने यह भी सोचा कि मुझे खुद को यह समझाने की जरूरत है कि कोई जरूरी नहीं कि मेरी देखभाल के कारण मेरा बेटा अपने कीमती साल नष्ट कर दे। अगर ऐसी नौबत ही आ गई, तो बेहतर है कि मैं मदद के लिए किसी को तनख्वाह पर रख लूं, लेकिन इस स्थिति को जितना टाला जा सके उतना ही बेहतर था।
बस यही कुछ बातें मेरे दिमाग में थीं, जिसकी वजह से मुझे लगा कि कुछ ऐसा किया जाए जहां रिटायरमेंट के बाद कुछ ऐक्टिविटी हो सके और एक-दूसरे की मदद करने वाले लोग हों। दिमाग में यह विचार आने के बाद मैंने फेसबुक पर एक पेज बनाया। तब मैंने पहली बार वहां लाइक मांइडेड के बजाय लाइक हार्टेड टर्म को लोगों के बीच पहुंचाया।
मैं अमेरिका में रह रही थी। भारत आना चाहती थी पर मन में डर था, एकांत में बूढ़े होने का डर। अगर बीमार पड़ गए, कभी किसी चीज की जरूरत पड़ी तो क्या होगा। फिर मैंने अपने जैसे लोगों को खोजा। जब खोजना शुरू किया तो पाया कि बहुत से लोगों को किसी न किसी की जरूरत है, लेकिन किसी को भी नहीं मालूम कि आगे क्या किया जाना चाहिए। कई लोगों ने हां कहा लेकिन इनमें जो भी एनआरआइ थे वे इस डर से वापस भारत आना नहीं चाहते थे कि आखिर उन्हें देखेगा कौन। अधिकतर लोगों के बच्चे बाहर थे। जो भारत में थे भी उनकी न्यूक्लियर फैमिली थी। हम खुद भी नहीं चाहते थे कि हम अपने बच्चों पर आश्रित रहें। हमारे पेरेंट्स की जनरेशन की बात अलग थी। वे लोग 45 में ही खुद को बूढ़ा समझने लगते थे, लेकिन अब तो 55 से ऊपर वाले भी काफी यंग फील करते हैं। इस उम्र तक आते-आते सभी लोग स्वतंत्र रहना चाहते हैं। मैंने फेसबुक पर पोस्ट किया कि मैं सिंगल लोगों का एक ग्रुप बना रही हूं। आश्चर्य कि सिर्फ एक घंटे में 40 रिस्पॉन्स आ गए। फिर मैंने यही पोस्ट दूसरे ग्रुप में डाल दी, जिसमें कुछ प्रमोशन जैसी पोस्टें होती थीं। उसके बाद तो सिलसिला थमा ही नहीं। धीरे-धीरे जब ज्यादा लोग जुड़ गए तो मैंने बात करनी शुरू की कि उनका उद्देश्य क्या है। मतलब क्या वे लोग सिर्फ सोशलाइजिंग करना चाहते हैं यानी घर पर बोर हो रहे हैं, कोई बात करने वाला नहीं है, या कुछ और। जबकि मेरा मतलब कम्युनिटी लिविंग की तरह था। जैसे, जब हमारी उम्र बढ़ जाएगी, तो जाहिर सी बात है कि हमारी गतिविधियां सीमित हो जाएंगी। हमारा कहीं आना-जाना कम हो जाएगा। तब कम से कम कोई तो ऐसा हो, जो तबीयत खराब रहने पर डॉक्टर को बुला लाए, दवाई ला सके। इसके लिए जरूरी था कि हम एक साथ रहें। चूंकि हम सब फेसबुक पर जुड़े थे इसलिए सबकी लोकेशन अलग-अलग थी, बजट अलग था, जरूरतें अलग थीं। यानी हम सभी के बीच बहुत भिन्नताएं थीं।
तब कई बार वॉट्सऐप पर हमारी बातचीत हुई और बहुत सी बातें निकल कर आईं। हमने दो वॉट्सऐप ग्रुप बनाए- जॉय कम्युनिटी लिविंग और जॉय क्लब। जॉय क्लब में सामान्य बातें होती हैं, पसंद-नापसंद की बातें। हर शहर के अपने समूह हैं। हम उन लोगों को जोड़ने का काम करते हैं। ये लोग ऑफलाइन मीटिंग करते हैं, कहीं घूमने जाते हैं ताकि अच्छे से जान-पहचान हो सके। सभी का नाम, पता और सामान्य जानकारी एक जगह होती है। फिर इसे समूह में शेयर करते हैं। तब लोग अपने हिसाब से देखते हैं किसके बीच क्या कॉमन है। इसके बाद किसी का बड़ा घर हो, तो चार-पांच लोग वहां शिफ्ट हो जाते हैं या किसी सोसायटी में एक साथ अगल-बगल घर लेकर शिफ्ट हो जाते हैं। हम चाहते हैं कि लोग एक जैसी पसंद के व्यक्ति खुद खोजें और खुद तय करें कि वे सामने वाले के साथ रह भी पाएंगे या नहीं।
कुछ ऐसी सोसायटियां भी हैं जो बिल्डर ने बनाई हैं, जहां सीनियर सिटिजन रिटायरमेंट के बाद रहते हैं। हम ऐसी सोसायटियां भी खोजने में मदद करते हैं या समझ लीजिए, इन सोसायटियों में या तो कोई किराये पर रह सकता है या फिर खरीद भी सकता है। भिवाड़ी में आशियाना नाम से बनी एक सोसायटी इसी तरह की है। यहां बुजुर्गों के हिसाब से हर सुविधा है। डॉक्टर, हाउसहेल्प, जैसी सुविधा यहां आसानी से उपलब्ध है। इसी तरह देहरादून में अंतरा है जिसे मैक्स हॉस्पिटल ने बनाया है। दक्षिण भ्ाारत में सरीन ऐसा ही काम कर रही है। पुणे के पास लवासा में आशियाना सोसायटी है जहां अमेरिका से आई और हमारे ग्रुप से जुड़ी एक सदस्य और एक अन्य सदस्य वहां शिफ्ट कर गए हैं।
हमेशा ऐसा नहीं होता कि बुजुर्ग एकांतवासी किसी सोसायटी में ही रहना चाहते हों। कुछ ऐसे भी हैं जो चाहते हैं कि उन्हें पार्क में खेलते हुए बच्चे भी दिखें, घूमते हुए युवा भी दिखें। इस काम में ग्रुप के सभी सदस्य एक-दूसरे की मदद करते हैं। तब हम ऐसी सोसायटी देखते हैं, ताकि वहां हमारे चार-पांच सदस्य एक साथ शिफ्ट कर जाएं। हमारे पास एक साथ में रहने का भी एक विकल्प है। यानी किसी बड़े घर में चार-पांच लोग एक साथ शिफ्ट कर जाते हैं। घर में सबके अलग-अलग कमरे रहते हैं लेकिन लिविंग रूम, किचन एक ही होता है। सभी का खाना एक साथ एक ही जगह पर बनता है। कहने का मतलब यह कि यह ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया है जो सिंगल लोगों को जोड़ने का काम करता है। कुछ सदस्य हैं, जो मिल कर जमीन खरीद कर बड़ा घर बना रहे हैं ताकि सब आराम से साथ रह सकें। आप इसे यूं कह सकते हैं कि जो भी सिंगल है, उनके लिए यह कोऑपरेटिव इनिशियेटिव की तरह है।
हमारे समूह में अभी तक कपल नहीं हैं क्योंकि हमारा मानना है कि कपल एक-दूसरे का ही हित देखेंगे और इससे दूसरों को परेशानी हो सकती है। अभी जो भी सिंगल है, वह दूसरों के लिए काम कर रहा है। समूह सबके योगदान से चलता है। जैसे, कोई लंच मीटिंग अरेंज कर लेता है, कोई जूम मीटिंग करा लेता है। कोई है जो नए सदस्यों का बायोडेटा बना कर समूह पर पोस्ट करता है ताकि दूसरे अपनी पसंद के लोगों से कनेक्ट कर पाएं। हमारा समूह दिल्ली एनसीआर, पूना, बैंगलोर, मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता, हिसार, बड़ौदा में काम कर रहा है।
(पत्रकार और जस्ट ओल्डर यूथ की संस्थापक)