भारत में इंटरनेट के उपयोग और तकनीकी को अपनाने की दर तेजी से बढ़ रही है। ताजा आंकड़ों के अनुसार देश में 90 करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। इससे देश अब दुनिया के सबसे बड़े ऑनलाइन बाजारों में आ चुका है। संचार, बैंकिंग, शॉपिंग और व्यापार जैसे जरूरी काम अब डिजिटल माध्यम से किए जा रहे हैं। तेजी से बढ़ते डिजिटलीकरण के साथ बड़ा खतरा भी जुड़ा है- साइबर अपराध। आज साइबर अपराध सिर्फ अमीरों तक सीमित नहीं है, बल्कि गांवों में रहने वाले आम लोग भी इसके शिकार हो रहे हैं। समस्या की जड़ साइबर सुरक्षा की कमी है। डिजिटल दुनिया में सुरक्षा के प्रति सतर्क न रहने वाले लोग आसानी से साइबर ठगी का शिकार बन सकते हैं। इसलिए सुरक्षित इंटरनेट उपयोग के लिए सतर्क रहना और साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता देना जरूरी है।
साइबर हमले पहले से अधिक जटिल हो गए हैं। जागरूकता का स्तर भी कम है। अधिकांश लोगों को साइबर हाइजीन यानी इंटरनेट सुरक्षा के बुनियादी नियमों की जानकारी नहीं होती। इससे वे असुरक्षित ऑनलाइन तरीके अपनाते हैं। इससे उनका संवेदनशील डेटा खतरे में पड़ जाता है। एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण के पारंपरिक तरीके उबाऊ और कठिन माने जाते हैं। नतीजा, लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते। आज के डिजिटल युग में साइबर सुरक्षा को रोचक और प्रभावी तरीके से सिखाने की जरूरत है। इसके लिए गेमिफिकेशन (खेल-आधारित सीखने) का उपयोग किया जा सकता है, विजुअल और मल्टीमीडिया कंटेंट को उम्र और भाषा के हिसाब से तैयार किया जाना चाहिए और स्थानीय भाषाओं में साइबर सुरक्षा से जुड़े नुस्खे दिए जाने चाहिए ताकि अधिक से अधिक लोग इसे आसानी से समझ सकें।
साइबर सुरक्षित समाज बनाने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं, बल्कि सभी की है। सरकार, नीति-निर्माता, सोशल मीडिया कंपनियां और साइबर सुरक्षा से जुड़ी संस्थाएं मिलकर ऐसी रणनीतियां अपनाएं जो हर व्यक्ति तक साइबर सुरक्षा की समझ पहुंचा सकें। डिजिटल तकनीक के लाभ का सही इस्तेमाल कर ऐसा डिजिटल माहौल बनाना जरूरी है जहां सुरक्षा, नैतिकता और पारदर्शिता को प्राथमिकता दी जाए।
भारत जैसे बहुभाषी देश में स्थानीय और सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक साइबर सुरक्षा सामग्री की कमी बड़ी चुनौती है। भारत में 22 आधिकारिक भाषाएं और कई बोलियां हैं, ऐसे में यह तय करना आवश्यक है कि साइबर सुरक्षा से संबंधित सामग्री स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध हो। साइबर अपराध के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए ‘साइबरपीस कॉर्प्स’ जैसे प्रयास महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। यह पहल साइबर सुरक्षा से जुड़े स्वयंसेवकों का एक नेटवर्क तैयार करती है जो जमीनी स्तर तक जाकर लोगों को जागरूक करने और साइबर सुरक्षा में सहयोग देने का काम करते हैं। ये स्वयंसेवक न केवल साइबर अपराध के पीड़ितों की मदद करते हैं, बल्कि जागरूकता बढ़ाने और सुरक्षा उपायों को बड़े पैमाने पर लागू करने में भी योगदान देते हैं।
लोगों को पता होना चाहिए कि साइबर अपराध होने पर कहां शिकायत करें, किन प्लेटफार्मों पर अपनी समस्याएं उठाएं और मौजूदा आइटी और डेटा सुरक्षा कानूनों के तहत उन्हें कौन से अधिकार प्राप्त हैं। इंटरनेट की दुनिया में जानकारी साझा करना सबसे बड़ा हथियार है। हर व्यक्ति अपने परिवार, दोस्तों और समुदाय के लोगों के साथ साइबर सुरक्षा से जुड़ी जानकारी साझा करे। यह प्रयास सामूहिक रूप से पूरे समाज को डिजिटल रूप से सशक्त कर सकता है।
डिजिटल इंडिया की सफलता इंटरनेट कनेक्टिविटी और ऑनलाइन सेवाओं को बढ़ाने तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि महत्वपूर्ण है कि हर व्यक्ति इंटरनेट का सुरक्षित इस्तेमाल कर सके। साइबर जागरूकता की इस खाई को पाटने के लिए सामूहिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें सरकार, उद्योग, शैक्षिक संस्थान और नागरिक समाज सभी मिलकर काम करें। साइबर सुरक्षा को व्यापक डिजिटल पहुंच का अनिवार्य हिस्सा बनाना होगा।
(मेजर विनीत कुमार, ग्लोबल प्रेसिडेंट और फाउंडर, साइबरपीस फाउंडेशन)