Advertisement
13 नवंबर 2023 · NOV 13 , 2023

आवरण कथा/नजरिया: आर्थिक दिशा की तलाश

अस्सी के दशक तक हुए विकास पर टिके हरियाणा को अब सामाजिक मूल्यों के आधुनिकीकरण की जरूरत
आर्थिक प्रदर्शन के मामले में हरियाणा सबसे सफल राज्यों में से एक है

भारत में आर्थिक प्रदर्शन के मामले में हरियाणा सबसे सफल राज्यों में से एक है। 2022-23 में इसकी प्रति व्यक्ति आय 2.97 लाख रुपये या 14,469 डॉलर क्रय-शक्ति के अनुपात में थी। क्रय शक्ति अनुपात विभिन्न देशों की अर्थव्यएवस्था  की तुलना करने के लिए व्यापक रूप से स्वीकृत विधि है। प्रमुख भारतीय अर्थशास्‍त्री सुरजीत भल्ला के अनुसार उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था का अर्थ है जहां प्रति व्यक्ति आय 20,000 डॉलर से अधिक हो। हरियाणा ने चार दशक से अधिक समय से सात प्रतिशत की औसत विकास दर को बनाए रखा है। इस गति से यह संभावना है कि 2027-28 तक यह राज्य उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगा!

हरियाणा की कहानी का सबसे अच्छा पक्ष यह है कि यहां चौतरफा विकास हुआ है। वर्तमान में कृषि क्षेत्र राज्य जीएसडीपी का लगभग 17 प्रतिशत है, जिसमें लगभग 30 प्रतिशत श्रमबल रोजगाररत है। हरियाणा की अर्थव्यवस्था अब कृषि पर निर्भर नहीं रह गई है। उसने उद्योग और सेवा केंद्रित अर्थव्यवस्था में अपना रूपांतरण कर लिया है। अर्थव्यवस्था की नई वास्तविकताएं नई चुनौतियां लेकर आई हैं। ग्रामीण और कृषि अर्थव्यवस्था से आधुनिक उद्योग और सेवा आधारित अर्थव्यवस्था में रूपांतरण जटिल और महीन प्रक्रिया है और इसीलिए इससे बहुत सावधानी से निपटने की जरूरत है। 

हरियाणा का आर्थिक विकास बड़े पैमाने पर उसके रणनीतिक भूगोल, जिसमें दिल्ली तीन ओर से घिरी है, और उपयुक्त जलवायु के चलते है जिसने यहां हरित क्रांति को कामयाब बनाया। कृषि उपज के बढ़े हुए स्तर ने ग्रामीण इलाकों में बाजार में बेचे जाने लायक अतिरिक्त माल पैदा किया। इस माल के परिवहन के लिए नियमित बाजार और भंडार राज्य के हर कोने में स्थापित किए गए। गांवों को बारहमासी सड़कों और बिजली के साथ जोड़ा गया। यह सब 1970 और 1980 के दशक में हुआ।

उन्नत नीतियों ने 1960 के दशक से ही राज्य में एक समृद्ध औद्योगिक क्षेत्र को स्‍थापित किया। विविध औद्योगिक आधार के साथ फरीदाबाद इसका अगुआ बना। अन्य महत्वपूर्ण औद्योगिक शहरों में पानीपत का वस्‍त्र उद्योग, अंबाला का वैज्ञानिक उपकरण उद्योग, यमुनानगर का प्लाइवुड और कागज उद्योग, हिसार का पीवीसी और स्टील पाइप उद्योग शामिल हैं। उसने राज्य को सेवा-केंद्रित अर्थव्यवस्था के अंतर्गत लाने का काम किया, लेकिन इस प्रक्रिया में उभरी अंतरक्षेत्रीय और वर्गीय असमानताओं ने राजनैतिक वर्ग के लिए गंभीर चुनौतियों को पैदा किया है। उदाहरण के लिए, ढांचागत परिवर्तन ने अर्थव्यवस्था में कृषि और पारंपरिक क्षेत्रों का हिस्सा घटाया है। क्षेत्रीय असमानताएं बढ़ी हैं। कुल निवेश का करीब 70 प्रतिशत, निजी क्षेत्र में कुल रोजगार का 54 प्रतिशत और हरियाणा में वाणिज्यिक संस्थानों में कर्मचारियों की कुल संख्या का 84 प्रतिशत अकेले गुड़गांव के हिस्से है। दूसरी ओर अंबाला, यमुनानगर, पानीपत, रोहतक, हिसार वगैरह औद्योगिक केंद्रों में गतिरोध आ गया है। औद्योगिक क्षेत्रों के विकास के लिए सरकारी कार्यक्रम तो चल रहे हैं, लेकिन उनके परिणाम संतोषजनक नहीं हैं। इन औद्योगिक केंद्रों में गतिरोध के कारणों की पड़ताल किए जाने के बजाय चौतरफा निराशा का माहौल पसरा हुआ है।

विकल्प के रूप में राज्य सरकार ने दिल्ली केंद्रित विकास विकास रणनीति पर अपना ध्यान केंद्रित किया है, जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के रणनीतिक निकटता होने के चलते नया निवेश आकर्षित किया जा सकता है। पहले यह लाभ फरीदाबाद को मिला, उसके बाद गुड़गांव आया। अब मानेसर, सोनीपत और खरखोदा ने नए निवेशों को आकर्षित करने में सफलता प्राप्त की है। दूसरी ओर, कई औद्योगिक एस्टेट और औद्योगिक मॉडल टाउनशिप (आइएमटी) जो एचएसआइडीसी ने एनसीआर के दूरदराज क्षेत्रों में बनाए, वे उतने कामयाब नहीं रहे। उसने और ज्यादा निराशा पैदा की है। नई दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में ऐसा विकास बड़ी संख्या में कामकाज के लिए लोगों को आकर्षित करता है, हालांकि एनसीआर में अकुशल और अर्द्धकुशल व्यक्तियों का पारिश्रमिक कम होने के कारण उनकी बचत कम हो जाती है। इसका मतलब यह है कि पलायन तभी अच्छा माना जाएगा जब जीवन जीने के लिए पारिश्रमिक पर्याप्त हो ताकि लोग प्रतिष्ठापूर्ण जीवन जी सकें। फिर इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि हरियाणा का युवा एनसीआर की नौकरी करने में दिलचस्पी नहीं दिखाता। इसका समाधान क्या है?

किसान वर्ग की आर्थिक स्थिति को सुधारने का एकमात्र तरीका उद्योग और सेवाओं में गुणवत्ता वाली नौकरियों को पैदा करके उन्हें खेतों से बाहर लाना है। कृषि में बहुत भीड़भाड़ है और वहां ज्या‍दातर रोजगार अदृश्य  हैं। सड़कों, बिजली, सिंचाई, अस्पताल, शिक्षण संस्थानों आदि की आपूर्ति में वृद्धि के साथ उत्पादन प्रणाली, सामाजिक दृष्टिकोण और सांस्कृतिक मूल्यों को भी आधुनिक बनाने की आवश्यकता है।

राज्य के हृदयस्थल में उद्यमिता की गतिविधियों को आकर्षित करने और इस प्रक्रिया के माध्यम से आर्थिक आधुनिकीकरण के लिए एक सुविधाजनक स्थिति गुड़गांव को छोटे शहरों के साथ सुगम रास्तों से जोड़ना है और सड़कें सुधारना है। यह एक आदर्श स्थिति है जो यहां लागू हो गई तो दक्षिणी हरियाणा के भीतरी इलाकों में अनछुए स्थानों तक विकास गतिविधियों को ले जा सकेगी। हरियाणा उच्च-आय वाली विकसित अर्थव्यवस्था बनने की कगार पर है लेकिन इसके लिए उसे अपनी आर्थिक नीतियों को नई दिशा देते हुए सामाजिक मूल्यों के आधुनिकीकरण पर ज्यादा जोर देना होगा।

प्रो. नरेंद्र कुमार बिश्नोई

(लेखक हरियाणा के हिसार स्थित गुरु जंभेश्वर विज्ञान और तकनीकी विश्वविद्यालय में अर्थशास्‍त्र के प्रोफेसर हैं। विचार निजी हैं )

Advertisement
Advertisement
Advertisement