विराट कोहली ने बीते कुछ दिनों में सोशल मीडिया पर दो बड़ी घोषणाएं कीं, जिनकी क्रिकेट जगत में बड़ी चर्चा है। पहले उन्होंने कहा कि अक्टूबर-नवंबर में आइसीसी वर्ल्ड कप के बाद भारत की ट्वेंटी-20 टीम की कप्तानी छोड़ देंगे। दूसरी घोषणा आइपीएल के मौजूदा सीजन के बाद रॉयल चैलेंजर्स टीम की कप्तानी छोड़ने की थी। कोहली भारत के सबसे सफल ट्वेंटी-20 कप्तान हैं। उन्होंने 2017 में यह जिम्मेदारी संभाली थी। इस दौरान बतौर बल्लेबाज उनका योगदान ऑस्ट्रेलिया के ट्वेंटी-20 कप्तान एरोन फिंच के बाद दूसरे नंबर पर है। यह सच है कि बतौर कप्तान उन्होंने कभी आइसीसी या आइपीएल ट्रॉफी नहीं जीती। लेकिन ऐसे समय में जब वे कप्तानी की बागडोर दूसरे को सौंपने वाले हैं, कौन जानता है कि आगे क्या होने वाला है।
वह कौन-सी बात है, जो एक कप्तान के रूप में विराट कोहली को दूसरों से अलग करती है? वे एक स्वाभाविक लीडर हैं। उनके नेतृत्व के तरीके को समझने के लिए पहले यह स्वीकार करना जरूरी है कि कोहली सफल भारतीयों की नई पीढ़ी के हैं। कोहली शिद्दत से चाहते थे कि भारत दुनिया की नंबर एक टीम बने, और उनकी कप्तानी में भारत ने वह मुकाम हासिल किया। उनका आत्मविश्वास और अपने आप पर भरोसा उन्हें आक्रामक बनाता है। उन्हें प्रतिद्वंद्वी को यह जतलाने से कोई गुरेज नहीं कि उनकी टीम जब चाहे उन्हें ध्वस्त कर सकती है। उनका यह गुण बहुत-सी टीमों को परेशान करने वाला होता है। हाल ही में इंग्लैंड ने इसे महसूस किया।
अतीत में भारतीय क्रिकेटरों की छवि भद्र व्यक्ति की रही है, लेकिन कोहली इसके ठीक विपरीत हैं। इस छवि को सबसे पहले सौरभ गांगुली ने तोड़ा जब उन्होंने लॉर्ड्स मैदान की बालकनी में शर्ट उतारकर लहराया था। इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन का हाल का वह बयान काफी चर्चित रहा कि अनेक खिलाड़ी कोहली के खिलाफ इसलिए नहीं खेलना चाहते क्योंकि वे प्रतिद्वंद्वी को परेशान कर देते हैं। अपने समय में गांगुली ने भी ऐसा करने में महारत हासिल की थी। इसलिए कोहली की बल्लेबाजी और कप्तानी से कम चर्चा मैदान पर उनके व्यवहार को लेकर नहीं होती है। वे ऐसे कप्तान हैं जिससे प्रतिद्वंद्वी टीम के फैन नफरत करना पसंद करते हैं। लेकिन जब तक टीम जीतती है, उन्हें इसकी परवाह नहीं।
मैदान पर उनका यह बेरहम बर्ताव कई बार डराने वाला होता है। हाल के ट्वेंटी-20 मैच में कई बार उनके इस बर्ताव ने टीम को जीत दिलाई और ड्रेसिंग रूम का वातावरण बदला है। उनके बर्ताव से साथी खिलाड़ियों का आत्मविश्वास बढ़ता है और किसी भी कीमत पर जीतने की इच्छा बलवती होती है। कोहली को मालूम होता है कि टीम की दिशा क्या है। 2015 में उन्होंने कहा था, “मैं इसे सबसे फिट टीम देखना चाहता हूं, मैं इसे दुनिया की सबसे महान टीम बनाना चाहता हूं। ऐसी टीम जो घर से बाहर भी बढ़िया खेल दिखा सके और किसी को भी हरा सके। इसके लिए बेहद उम्दा गेंदबाजी आक्रमण की जरूरत है।”
इतने वर्षों के दौरान फिटनेस और प्रदर्शन पर फोकस करके उन्होंने इस लक्ष्य को हासिल भी किया है। भले इसके चलते कुछ बड़े नामों के साथ विवाद या मनमुटाव की खबरें आईं। कई बार खिलाड़ियों के चयन में ऐसे फैसले किए गए, जिनकी कोई वजह समझ में नहीं आती। लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि आज भारत की टीम क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में विश्व में लंबे समय तक दबदबा रख पाने की स्थिति में है, जैसा पहले कभी वेस्टइंडीज और ऑस्ट्रेलिया का था।
विराट कोहली निश्चित रूप से इसका कुछ श्रेय अपने विजन और आक्रामक नेतृत्व को दे सकते हैं। वर्षों से उग्रता, ऊर्जा और प्रतिस्पर्धी क्षमता उनकी पहचान बन गई है। भारतीय टीम पर इसकी अमिट छाप दिखती है। लेकिन यह भी सच है कि वे ऐसे शख्स हैं जिसे हमेशा चर्चा में रहने की जरूरत है। इससे उन्हें ऊर्जा मिलती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि कप्तानी छोड़ने के बाद जब अचानक सबका ध्यान उनसे हटेगा तो वे उससे कैसे निपटते हैं।
पिछले साल सितंबर में जब भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया पहुंची तो विराट कोहली वहां के राष्ट्रीय मीडिया में छाए हुए थे। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के बाद संभवतः सबसे अधिक कोहली का ही चेहरा दिखाया जा रहा था। मानो मुकाबला ‘ऑस्ट्रेलिया बनाम भारत’ के बजाय ‘ऑस्ट्रेलिया बनाम कोहली’ है। इसने 1970 के दशक के ‘इंदिरा इज इंडिया’ नारे की याद दिला दी। हाल के दशकों में किसी देश में विदेशी खिलाड़ी की इतनी चर्चा शायद ही हुई हो।
जब कोई खिलाड़ी चर्चा से बाहर हो जाता है तो वह ज्यादा मजबूती के साथ वापसी की कोशिश करता है। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि ‘प्लेइंग 11’ में सिर्फ एक खिलाड़ी के तौर पर कोहली का रवैया कैसा रहता हैं। शायद वे अतीत की तरह अपने आप को रन मशीन बनाएं, जो भारत के लिए फायदेमंद होगा। हाल के दिनों में वे बड़े स्कोर बनाने में नाकाम रहे हैं, अगले वर्षों में अंतरराष्ट्रीय बल्लेबाजी रिकॉर्ड में अपने को दर्ज कराना उनके लिए नई चुनौती होगी। खासकर यह देखते हुए कि उनसे पहले ‘क्रिकेट के भगवान’ ऐसा कर चुके हैं।
टीम की कप्तानी बदलेगी तो कुछ लोग शांत स्वभाव के रोहित शर्मा या ऑस्ट्रेलिया में टीम का बेहतर नेतृत्व करने वाले अजिंक्य रहाणे को पसंद करेंगे। यह चर्चा भी संभव है कि कोहली की अाक्रामकता ने कई बार टीम को अतिरिक्त दबाव में ला दिया। लेकिन आक्रामक नेतृत्व का उनका तरीका भारतीय क्रिकेट के इतिहास में दर्ज हो गया है। अगली पीढ़ियों के लिए उनकी यह सबसे बड़ी विरासत है।
(लेखक पूर्व रणजी ट्रॉफी क्रिकेटर और भारतीय वायु सेना के अवकाशप्राप्त विंग कमांडर हैं)