कहते हैं किसी नेता के सियासी कैरियर में टिकट कट जाने से ज्यादा बड़ा ग्रहण तब लगता है जब चुनाव हार चुके उम्मीदवार पर पार्टी एक बार फिर दांव खेले और पार्टी को निराशा ही हाथ लगे। कहानी यहीं नहीं रुकती। पार्टी दो बार हार चुके उम्मीदवार को फिर मौका देने का सोचती है और इस बार भी पार्टी को निराशा ही हाथ लगती है। मतलब 2008 में विधानसभा चुनाव और दो लोकसभा चुनाव हार उसके खाते में जुड़ जाते हैं। फिर भी, पार्टी हारे हुए नेता के नेतृत्व में ही 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ने का सोचती है। इस बार नेता पार्टी के अरमानों पर खरा उतरता है और पार्टी उसे मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंप देती है।
इसे किस्मत कहें या कुछ और? ऐसी ही किस्मत छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से जुड़ी है, जो हार पर हार के बावजूद अपनी बाजी पलटने में सफल रहे। कई राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि अगर भूपेश ने हार के सामने घुटने टेक दिए होते तो आज वे मुख्यमंत्री नहीं होते। आज भूपेश देश में इकलौते ऐसे मुख्यमंत्री है जो एकाधिक बार हारने के बावजूद मुख्यमंत्री हैं और पांच महीने बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी का नेतृत्व करने जा रहे हैं। जानकारों का मानना है कि उनकी कामयाबी के पीछे सबसे बड़ी वजह पारिवारिक पृष्ठभूमि है।
राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में 2018 में शपथ लेते ही उन्होंने किसानों का कर्ज माफ करके अपनी पारी की शुरुआत की। उनकी सरकार ने किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की सीमा 15 क्विंटल से बढ़ाकर 20 क्विंटल कर दी। स्वामी आत्मानंद स्कूलों की शृंखला और डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना जैसी नवाचारी पहल से लोगों को आसानी से शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं देने का काम किया है। बेरोजगारों को प्रतिमाह भत्ता मिलना प्रारंभ हो चुका है। इसी तरह से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, स्कूलों में मध्याह्न भोजन बनाने वाले रसोइयों की भी चिंता करते हुए उनके मानदेय में वृद्धि कर उनका मान बढ़ाया है।
श्रमिकों का मान बढ़ाने के लिए कई बड़ी घोषणाएं उन्होंने की हैं। कार्यस्थल पर दुर्घटनावश मृत्यु में पंजीकृत निर्माण श्रमिकों के परिजनों को मिलने वाली सहायता राशि एक लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये तथा स्थायी विकलांगता की स्थिति में उन्हें देय राशि 50 हजार से बढ़ाकर ढाई लाख रुपये करने की घोषणा की। साथ ही अपंजीकृत श्रमिकों को भी कार्यस्थल पर दुर्घटना से मृत्यु होने पर एक लाख रुपये की सहायता प्रदान की जाती है।
हिमाचल प्रदेश के 2022 के विधानसभा चुनाव में अपना करिश्मा दिखा चुके और कर्नाटक के चुनाव में पार्टी को मिले प्रचंड बहुमत से गदगद भूपेश बघेल बजरंग बली के भक्त हैं। कर्नाटक चुनाव के नतीजों पर बघेल कहते है, ‘‘बजरंग बली हमेशा धर्म के साथ हैं, हमेशा अन्यायी और अत्याचारियों को परास्त करते रहे हैं। कर्नाटक में यही हुआ है और आगे भी यही होने वाला है। भाजपा के साथ बजरंग बली नहीं हैं।’’
जानकारों का कहना है कि छत्तीसगढ़ का चुनावी माहौल दक्षिण या पश्चिम के राज्यों से बिलकुल ही अलग है। यहां के लोग तो उस राजनैतिक दल और उम्मीदवार पर अपना स्नेह बिखेरने को तैयार रहते हैं जो दुख-सुख में उनका साथ देता है। आज भूपेश सत्ता में है और भारतीय जनता पार्टी बघेल सरकार पर लगातार हमला बोल रही है। भाजपा का आरोप है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के शासन में अपराधी बेखौफ हो गए हैं। भाजपा ने वादा किया है कि यदि वह विधानसभा चुनाव में विजयी होती है और सरकार बना लेती है, तो उपद्रवी तत्वों पर नकेल कसने के लिए बुलडोजर कार्रवाई को अमल में लाएगी। मतदाताओं ने भी भाजपा और कांग्रेस दोनों की सरकारों को देख लिया है, इसलिए इस बार वे बहुत सोच-समझ के अपना मत देंगे।
फिलहाल, भूपेश बघेल के सियासी कद का कोई नेता राज्य में नहीं है। उस पर से उन्हें अपनी शुरू की योजनाओं का भी लाभ मिलेगा। ‘कका’ बघेल फिलहाल लोगों का आशीर्वाद लेने उनके बीच पहुंच चुके हैं, इंतजार चुनाव की तारीख का है।