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हरियाणा-पंजाब: संभालने की जुगत

दो राज्यों में गुटबाजी खत्म कर पार्टी को पटरी पर लाना कांग्रेस की बड़ी चुनौती
हरियाणा कांग्रेस के बड़े नेता

हरियाणा में तीन साल पहले गांधी परिवार की करीबी कुमारी शैलजा को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। इसका मकसद संगठन को नए सिरे से खड़ा करना था। लेकिन तीन साल में कुछ नहीं हो सका तो शैलजा की जगह किसी व्यापक जनाधार वाले नेता को आगे लाने की मांग उठने लगी है। पार्टी हाइकमान ने 25 मार्च को प्रदेश के नेताओं के साथ बैठक की, उसमें भी यह मांग उठी। समस्या है कि जिनका जनाधार है वे जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं और जो दावेदारी जता रहे हैं उनका कोई जनाधार नहीं है।

पूर्व मुख्यमंत्री भुपेंद्र सिंह हुड्डा ने स्पष्ट कर दिया है कि उनके पास नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी है, इसलिए वे अध्यक्ष पद का जिम्मा नहीं ले सकते। अब पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी, पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई और राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी जता रहे हैं। लेकिन इनमें से कोई ऐसा नहीं जिसका पूरे प्रदेश में जनाधार हो।

कांग्रेस में इतने दावेदारों पर हरियाणा विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष कुलदीप शर्मा सटीक टिप्पणी करते हैं। वे कहते हैं, “मुख्यमंत्री और अध्यक्ष पद के जितने दावेदार हरियाणा कांग्रेस में हैं, उतने किसी और पार्टी या प्रदेश में नहीं हैं। जिनका विधायक बनना तक मुश्किल है वे मुख्यमंत्री और अध्यक्ष बनना चाहते हैं। जब तक पद की लड़ाई नहीं छोड़ेंगे, तब तक कांग्रेस को सत्ता नहीं मिलेगी।” शर्मा का इशारा राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला की ओर है। 2018 के जींद उपचुनाव में जमानत जब्त कराने वाले सुरजेवाला 2019 का विधानसभा चुनाव भी कैथल से हार गए थे। शर्मा का कहना है कि प्रदेश व देश में कांग्रेस का मजबूत संगठन तैयार होना चाहिए। कांग्रेस से दूर हुआ बहुत बड़ा वर्ग पार्टी के साथ फिर से जुड़ना चाहता है।

पंजाब का तो और बुरा हाल है जो विधानसभा चुनाव से कई महीने पहले से दिख रहा है, खास कर जब से नवजोत सिंह सिद्धू की महत्वाकांक्षा कुलांचे मारने लगी। उन्होंने पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ माहौल बनाया। लेकिन पार्टी ने कैप्टन को हटाकर सिद्धू के बजाय चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया। सिद्धू अब चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेने तक को तैयार नहीं हैं। वे कहते हैं, “चुनाव चन्नी की अगुवाई में लड़ा गया, इसलिए हार की जिम्मेदारी चन्नी की है।” चन्नी को अगला मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किए जाने के बाद सिद्धू सिर्फ अपने विधानसभा क्षेत्र तक सीमित हो गए थे। चुनाव प्रचार के समय धूरी में प्रियंका गांधी की मौजूदगी में उन्होंने जनसभा को संबोधित करने से इनकार कर दिया था।

अब सिद्धू की जगह किसे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाए, इस पर भी रस्साकशी शुरू हो गई है। सिद्धू भी विधायकों की लामबंदी के जरिए हाइकमान पर दबाव बना रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष पद के लिए भी खींचतान जारी है। राज्य की 117 सीटों में से सिर्फ 18 पर सिमटी पार्टी में सुखजिंदर रंधावा, सुखपाल खैहरा, अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग और प्रताप सिंह बाजवा चार-चार दावेदार हैं।

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