पहली दफा राज्य में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री नायब सैनी के मंत्रिमंडल में सबसे अधिक पिछड़ी जातियों के चेहरों को तरजीह दी है। आखिर इसी दांव के चलते उसे दस साल की भारी एंटी-इन्कंबेंसी के बावजूद 2024 के विधानसभा चुनावों में अप्रत्याशित जीत जो मिली है। भाजपा के लिए यह जीत और यह दांव राष्ट्रीय पैमाने पर कितना अहम रखता है, यह इससे साफ होता है कि शपथ ग्रहण समारोह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनडीए के मुख्यमंत्रियों के लिए शक्ति-प्रदर्शन कार्यक्रम जैसा बना दिया गया। हरियाणा में भाजपा ने चुनाव में सबसे अधिक 22 ओबीसी उम्मीदवार उतारे थे। कुल 14 मंत्रियों में सबसे अधिक पांच ओबीसी मंत्री बनाए गए हैं। कुल 90 में 48 विधानसभा सीटों पर जीत के साथ पूर्ण बहुमत पाने वाली नायब सरकार में जाट और गैर-जाट संतुलन के अलावा तमाम जातिगत, क्षेत्रीय और राज्य में प्रभावी रहे तीन लाल परिवारों की विरासत का भी खयाल रखा गया है। इस तरह मंत्रिमंडल में दो जाट, दो ब्राह्राण, दो एससी, एक वैश्य, एक पंजाबी और एक राजपूत चहरे को जगह दी गई है ताकि कांग्रेस के कथित ‘36 बिरादरी’ फार्मूले की काट की जा सके। मुख्यमंत्री के अलावा एक मंत्री महिपाल ढांडा को छोड़कर बाकी सभी चेहरे नए हैं।
पांच ओबीसी चेहरों में गुड़गांव की बादशाहपुर सीट से विधायक राव नरवीर सिंह, बरवाला से विधायक रणबीर गंगवा, अटेली से केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती सिंह राव और तिगांव से राजेश नागर हैं। दो जाट मंत्रियों में पानीपत ग्रामीण से महिपाल ढांडा और तोशाम से श्रुति चौधरी हैं। दो ब्राह्राणों में गोहाना से अरविंद शर्मा और पलवल से गौरव गौतम हैं। एससी मंत्रियों में इसराना से कृष्णलाल पंवार और नरवाना से कृष्ण कुमार बेदी हैं। वैश्य समुदाय से विपुल गोयल और पंजाबी समुदाय से अनिल विज हैं। श्याम सिंह राणा राजपूत चेहरा हैं। क्षेत्रीय समीकरणों में भाजपा ने सबसे अधिक प्रतिनिधित्व अपने गढ़ जीटी रोड बेल्ट को दिया है। इसमें अंबाला से लेकर लाडवा, पानीपत और इसराना से जीते मुख्यमंत्री और तीन कैबिनेट मंत्री हैं।
कंप्यूटर ऑपरेटर से मुख्यमंत्री तक का सफर
इसी साल लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 12 मार्च को अपने सियासी गुरु मनोहरलाल खट्टर की जगह मुख्यमंत्री बने नायब सैनी का सियासी सफर मात्र 15 साल का है, लेकिन वे तमाम धुरंधरों को पछाड़कर दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे। कंप्यूटर ऑपरेटर से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे 54 वर्षीय सैनी का जन्म नारायणगढ़ के गांव मिजापुर माजरा में 25 जनवरी 1970 को हुआ था। वे पहली बार 2009 के विधानसभा चुनाव में नारायणगढ़ सीट पर अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे, बावजूद इसके उन्हें 2012 में अंबाला का जिलाध्यक्ष बनाया गया। 2014 में पहली बार नारायणगढ़ से वे विधायक बने, तब जाकर भाजपा की पहली खट्टर सरकार में 2016 के मंत्रिमंडल विस्तार में उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया।
2019 के लोकसभा चुनाव में सैनी समुदाय बहुल कुरुक्षेत्र सीट से सांसद बने सैनी अपनी विधानसभा नारायणगढ़ में अधिक सक्रिय रहे ताकि केंद्र के बजाय राज्य की गैर-जाट राजनीति को साधा जा सके। खट्टर ने अक्टूबर 2023 में प्रदेश अध्यक्ष पद से जाट ओमप्रकाश धनखड़ को हटवाकर सैनी को अध्यक्ष बनवाया। लोकसभा चुनाव की गहमागहमी में हरियाणा में एंटी-इन्कंबेंसी से डरे भाजपा आलाकमान ने 12 मार्च को खट्टर से इस्तीफा ले लिया, तो नए मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल गैर-जाट चेहरों में अनिल विज, राव इंद्रजीत, कृष्णपाल गुर्जर जैसे तमाम पांच-छह बार के सांसद, विधायक रहे दिग्गज थे। लॉटरी खुली एक बार के सांसद और विधायक रहे सैनी की। उसके पीछे खट्टर की रणनीति और तगड़ी सिफारिश थी। केंद्रीय मंत्री बनने के बावजूद हरियाणा की सत्ता में सीधा दखल रखने की नीयत से खट्टर नहीं चाहते थे कि उनके धुर विरोधी विज, राव इंद्रजीत या कृष्णपाल गुर्जर जैसे किसी दिग्गज को मुखिया की कुर्सी मिले।
सैनी को अपने पांच महीने के कार्यकाल में राजकाज के लिए मात्र 56 दिन मिले, लेकिन वे खट्टर सरकार के साढ़े नौ साल की एंटी-इन्कंबेंसी और किसान, जवान तथा पहलवान जैसे कांग्रेस के मुद्दों से घिरी भाजपा के लिए चुनावी जमीन तैयार करने में सफल रहे। आउटलुक से सैनी ने कहा, “बीते पहले कार्यकाल के मात्र 56 दिनों में लिए 126 अहम फैसले हरियाणा के विकास के लिए मील का पत्थर साबित होंगे। इन फैसलों का असर किसानों, युवाओं, महिलाओं और समाज के वंचित तबके पर पड़ेगा। जनता ने तीसरी बार भाजपा पर भरोसा जताया है, भाजपा सरकार जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की हरसंभव कोशिश करेगी। पहले दिन से ही संकल्प पत्र पर काम शुरू किया जा रहा है। शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही 25,000 सरकारी नौकरियों की भर्ती के नतीजे घोषित किए गए हैं। जल्द ही नियुक्ति पत्र जारी किए जाएंगे।”
प्रमुख चेहरे
अनिल विज: मंत्रिमंडल में एकमात्र पंजाबी चेहरा। 1990 से लगातार रिकॉर्ड सात बार के विधायक 71 वर्षीय अनिल विज बीते मार्च में खट्टर के बदले सैनी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के वक्त बुलाई गई भाजपा विधायकों की बैठक का बहिष्कार कर आए थे। अपने हलके अंबाला छावनी में विधानसभा चुनाव प्रचार दौरान 14 सितंबर को एक जनसभा में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी जताने वाले विज के तेवर एक महीने के भीतर ऐसे ढीले पड़ गए कि 16 अक्टूबर को पंचकूला स्थित भाजपा कार्यालय में पर्यवेक्षक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री पद के लिए सैनी के नाम का प्रस्ताव विज ने ही रखा।
कृष्णलाल पंवार: छह बार के विधायक और राज्यसभा की सांसदी छोड़ पानीपत जिले की इसराना सीट से विधायक चुने गए पंवार भाजपा के बड़े दलित चेहरों में से एक हैं, जो 2014 में इनेलो से भाजपा में आए।
राव नरवीर सिंह: चौथी बार मंत्री बने राव नरवीर गुड़गांव की बादशाहपुर सीट से चुनाव जीते हैं। पहली बार 1987 में मात्र 26 साल की उम्र में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह को हराकर विधायक बनने वाले नरवीर को देवीलाल ने अपनी सरकार में सबसे युवा मंत्री बनाया था।
महिपाल ढांडा: पानीपत ग्रामीण सीट से लगातार तीसरी बार के विधायक महिपाल की सियासी पारी 2014 में भाजपा से ही शुरू हुई। नायब सरकार की पहली पारी में पहली बार मंत्री बने।
विपुल गोयल: फरीदाबाद से दूसरी बार के विधायक 52 वर्षीय विपुल गोयल 2014 में खट्टर सरकार के पहले कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री रहे। 2019 में केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर के विरोध के चलते टिकट से वंचित रह गए थे।
अरविंद शर्मा: सोनीपत की गोहाना सीट से विधायक शर्मा चार बार के सांसद रहे। इससे पहले दीपेंद्र हुड्डा को उनके गढ़ रोहतक से 2019 के लोकसभा चुनाव में हराया था। पहली बार 1996 में बसपा के टिकट पर सांसद बने थे। फिर 2004 और 2009 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए।
श्याम सिंह राणा: यमुनानगर के रादौर से तीन बार के विधायक श्याम सिंह राणा राजपूत कोटे से एकमात्र मंत्री हैं। 2014 में मनोहर सरकार में संसदीय सचिव रहे राणा 2019 में टिकट कटने पर भाजपा छोड़ इनेलो में शामिल हो गए थे। लोकसभा चुनाव के वक्त भाजपा में वापसी।
रणबीर गंगवा: विधानसभा डिप्टी स्पीकर रहे गंगवा ओबीसी वर्ग ए के कुम्हार समुदाय से आते हैं। इस बार बरवाला से विधायक बने हैं।
कृष्ण बेदी: दो दशक से भाजपा से जुड़े बेदी मनोहर लाल सरकार के पहले कार्यकाल में भी मंत्री रहे। 2019 को चुनाव हारे तो खट्टर के राजनीतिक सलाहकार के तौर पर कार्य किया। इस बार आरक्षित सीट नरवाना से चुनाव जीत कर मंत्री बने।
श्रुति चौधरी: पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पोती। चार महीने पहले अपनी मां किरण चौधरी के साथ भाजपा में शामिल हुईं। सांसद रहीं श्रुति पहली बार विधायक बनते ही जाट कोटे से मंत्री बनी हैं।
आरती सिंह: केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बेटी। अहिरवाल के अटेली विधानसभा क्षेत्र से पहली बार में विधायक बनने पर पहली बार में ही मंत्री बनीं।
राजेश नागर: दूसरी बार के विधायक। तिगांव विधानसभा से जीते राजेश नागर केंद्रीय मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर के करीबी हैं। गुर्जर समुदाय से ओबीसी कोटे में मंत्री बने हैं।
गौरव गौतम: पलवल सीट से पूर्व मुख्यमंत्री भुपेंद्र सिंह हुड्डा के समधी करण दलाल को हराकर पहली बार विधायक बने 36 वर्षीय गौरव पहली बार में ही मंत्री बना दिए गए।
हार से कांग्रेस में रार
हरियाणा में गुटबाजी, भितरघात और बागियों से घिरी कांग्रेस की मुश्किलें थमी नहीं हैं। भाजपा से अप्रत्याशित हार से सबक लेने के बजाय नेता प्रतिपक्ष पद के लिए गुटों में रार जारी है। 18 अक्टूबर को चंडीगढ़ में केंद्रीय पर्यवेक्षक अशोक गहलोत, अजय माकन, प्रताप सिंह बाजवा और छत्तीसगढ़ के पूर्व उप-मुख्यमंत्री टीके सिंहदेव की मौजूदगी में हुई विधायक दल की बैठक में शामिल सभी 37 विधायकों से राय लेने के बाद नेता प्रतिपक्ष पद का फैसला आलाकमान पर छोड़ा गया है।
कुमारी सैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला गुट नेता प्रतिपक्ष का पद अपने गुट के विधायक को देने की मांग कर रहा है जबकि दोनों गुटों के मात्र छह विधायक हैं। नेता प्रतिपक्ष के लिए लामबंद हो रहे इस गुट की घेरेबंदी के लिए पूर्व मुख्यमंत्री तथा पूर्व नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने चंडीगढ़ बैठक से दो दिन पहले 16 अक्टूबर को अपने दिल्ली आवास पर एक बैठक बुलाई, जिसमें पहुंचे 31 विधायकों के जरिये अपनी ताकत का एहसास कराया।
नेता प्रतिपक्ष के लिए सैलजा और रणदीप गुट ने पांच बार के विधायक पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के बेटे पंचकूला से विधायक चंद्रमोहन का नाम आगे बढ़ाया है। दूसरी ओर हुड्डा खुद इस दौड़ में बताए जाते हैं। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, हाल के विधानसभा चुनाव में हुड्डा को फ्री हैंड दिए जाने के बावजूद सत्ता हाथ न आने से नाराज पार्टी आलाकमान प्रदेश में कमान उन्हें और प्रदेश अध्यक्ष उदयभान देने के पक्ष में नहीं है। प्रदेश की कुल 90 विधानसभा सीटों में से 72 सीटों पर हुड्डा की पसंद के उम्मीदवार जीत की गारंटी के साथ उतारे गए थे, लेकिन टिकट वितरण के बाद बगावत और सैलजा तथा रणदीप गुट के मुख्यमंत्री पद को लेकर हुड्डा से खींचतान में कांग्रेस जीत से दूर होती चली गई।
कौन जिम्मेदारः चंडीगढ़ में कांग्रेस विधायक दल की बैठक में कांग्रेस के नेता
हुड्डा के एक करीबी नेता के मुताबिक, “कांग्रेस भाजपा से नहीं बल्कि अपने ही लोगों से हारी है। हार का सबसे बड़ा कारण अपने पक्ष में आंधी मानकर कांग्रेस सही जिताऊ और टिकाऊ उम्मीदवारों के चयन में भी अंधी हो गई थी। बागियों ने भी कांग्रेस का खेल बिगाड़ा।” अंबाला छावनी जैसी सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार परमिंदर सिंह परिमल को जमानत गंवानी पड़ी जबकि बागी उम्मीदवार चित्रा सरवारा भाजपा के विजयी विधायक अनिल विज से करीब 7000 मतों से पीछे रहीं। प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चित्रा जैसे दो दर्जन से अधिक बागियों को घोषित उम्मीदवारों के पक्ष में चुनाव मैदान से हटाने में नाकाम रहे। कांग्रेस के उलट भाजपा अपने ज्यादातर बागियों को मनाने में सफल रही।
कांग्रेस 2014 में सत्ता से बाहर हुई और मात्र 15 सीटों पर सिमट गई थी जबकि प्रमुख विपक्षी दल इंडियन नेशनल लोकदल के नेता प्रतिपक्ष ओमप्रकाश चौटाला थे। 2019 के विधानसभा चुनाव में 31 सीटों पर जीत के साथ प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरी कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष पद पर काबिज हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दबदबा अब भी कांग्रेस के कायम है। उसी के चलते इस चुनाव में टिकटों के मामले में उनके समर्थकों को अधिक तवज्जो मिली। सैलजा और रणदीप उनकी बराबरी नहीं कर पाए। दूसरे, किरण चौधरी, कुलदीप बिश्नोई और कैप्टन अजय यादव सरीखे वरिष्ठ नेताओं ने भी हुड्डा के दबदबे के दबाव में कांग्रेस से किनारा कर लिया। अब हुड्डा की ताकत 31 विधायक हैं और ये विधायक राज्यसभा के चुनाव में कांग्रेस का खेल पलट सकते हैं। पिछले दस साल में राज्यसभा की दो सीट विधायकों की बगावत की वजह से कांग्रेस हार चुकी है। कांग्रेस आलाकमान की कोशिश जाट-दलित समीकरण साधने की हो सकती है। दोनों से कांग्रेस को वोट मिले हैं इसलिए नेता प्रतिपक्ष और अध्यक्ष का पद दलित और जाट को दिया जा सकता है।