आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच पूर्वी घाट पर स्थित नलमल्ला के जंगलों में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त होकर सितंबर 2009 में गुम हो गया था। उस हादसे में आंध्र के पूर्व मुख्यमंत्री वाइएस राजशेखर रेड्डी उर्फ वाइएसआर मारे गए थे। दो बार 2004 और 2009 में सूबे में कांग्रेस की सरकार लाने वाले वाइएसआर लोगों के लिए आदर्श नेता थे। अचानक हुई उनकी मौत की सूचना से उनके चाहने वालों को ऐसा सदमा लगा कि 450 लोगों की मौत हो गई, हैदराबाद की सड़कें सुलग उठीं, लोग चीख-चीख कर रोने लगे थे। तीन हफ्ते बाद जगनमोहन रेड्डी ने उनकी जगह लेने की घोषणा करते हुए कहा कि वे पिता की विरासत आगे बढ़ाएंगे। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कांग्रेस उन्हें ऐसा करने देगी या नहीं।
वाइएसआर ने ‘विकास और विश्वसनीयता’ का नारा देकर राज किया था। उन्होंने 2003 की गर्मियों में निकाली अपनी पदयात्रा में 1470 किलोमीटर की दूरी तय की थी जिसमें वे पिछड़े इलाकों के लोगों, किसानों, महिलाओं के दुख-दर्द को बांटते थे। उन्होंने अपनी नोटबुक में में लिखा था, ‘‘2014 के आम चुनाव तक कांग्रेस को अपने दम पर बहुमत मिल जाएगा और राहुल गांधी भारत के प्रधानमंत्री होंगे। इसे कोई नहीं रोक सकता।’’ तब उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी कि उनकी पदयात्रा के बीस साल बाद उनके बेटे और कांग्रेस के बीच रिश्तों में इतनी खटास आ जाएगी।
तेदेपा के चंद्रबाबू नायडु
अपने पिता की मौत के चौदह माह बाद जगन ने कांग्रेस छोड़ दी। उनका आरोप था कि पार्टी के बड़े नेताओं ने कई मौकों पर उनका और उनके परिवार का अपमान किया था। दरअसल, पार्टी ने उनकी जगह के. रोसैया को मुख्यमंत्री पद के लिए चुना था। जगन ने वाइएसआर की स्मृति में अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू करने का ऐलान कर दिया। अपने समर्थकों से उन्होंने कहा, ‘‘मैं भरोसा दिलाता हूं कि नई पार्टी आंध्र की आत्म-प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए संघर्ष करेगी।’’
इस घोषणा के साथ 2011 में युवजन श्रमिक रायतु कांग्रेस पार्टी (वाइएसआरसीपी) का गठन हुआ। पार्टी के संक्षिप्त नाम से लेकर उसकी विचारधारा तक सब कुछ दिवंगत मुख्यमंत्री वाइएसआर के हिसाब से गढ़ा गया। कृषि ऋण माफी से लेकर मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में सब्सिडी सहित अन्य तमाम कल्याणकारी उपाय वैसे ही किए गए, जैसी परिकल्पना वाइएसआर ने की थी।
नई पार्टी का जश्न लंबा नहीं चल सका क्योंकि आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में सीबीआइ ने जगनमोहन को गिरफ्तार कर लिया। लेखक चिन्नैया जंगम बताते हैं कि उस दौरान अखबारों में कई लेख आए जिसमें, ‘‘भारतीय राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार को गिनवाते हुए लोगों से अपील की गई कि उसके मुकाबले वे जगनमोहन के मामूली और नियमित भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करें।’’ इससे लोगों की नजर में जगन की ‘पीडि़त’ छवि बनाने में मदद हुई।
इस बीच उनकी बहन वाइएस शर्मिला और मां विजयम्मा ने पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली थी। जगन जेल में रहने के बावजूद 2012 में 18 सीटों पर हुए उपचुनाव में पार्टी कामयाब रही। जमानत पर छूटने के बाद वे पार्टी के ‘सुप्रीम नेता’ बनकर उभरे। उन्हें पार्टी का ‘आजीवन अध्यक्ष’ बना दिया गया हालांकि बाद में इस फैसले को पार्टी ने ही पलट दिया।
जगन ने 2011 में ‘रंजन्ना का राज’ (वाइएसआर का राज) लाने का जो वादा किया था, 2017 में वह बदल कर ‘कावली जगन, रावली जगन’ (हम जगन को चाहते हैं, जगन ही आएगा) हो गया। जगन वही करने लगे जो उनके पिता करते थे। धीरे-धीरे पार्टी वाइएसआर के साये से मुक्त होकर जगनमोहन रेड्डी के व्यक्तित्व और नेतृत्व के इर्द-गिर्द सिमटती चली गई। अगले आम चुनाव और विधानसभा चुनाव में (2019) वाइएसआर कांग्रेस ने 175 में से 151 असेंबली सीटों पर जीत हासिल की जबकि लोकसभा की 25 में से 22 सीटें जीतीं।
जगन की बहन वाय.एस. शर्मिला
वे भाजपा नीत एनडीए और विपक्षी कांग्रेस या कहें नए 'इंडिया' गठबंधन से बराबर की दूरी बनाए रहे, फिर भी उनकी पार्टी पर एनडीए के प्रति ‘मित्रवत’ रहने का आरोप लगता रहा है। जगनमोहन ने कमान उस वक्त संभाली थी जब आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिए जाने की मांग राजनीति में भावनात्मक मुद्दा बन चुकी थी। मनमोहन सिंह की तत्कालीन यूपीए सरकार ने आंध्र प्रदेश के लिए विशेष दर्जे का वादा तो किया था लेकिन वह कभी साकार नहीं हो सका। बाद में आई भाजपा नीत एनडीए सरकार ने इस विकल्प को यह कहकर खारिज कर दिया कि ‘‘ऐसी व्यवस्था ‘संवैधानिक’ रूप से केवल उत्तर-पूर्वी राज्यों और तीन पर्वतीय राज्यों तक सीमित है।’’ आखिरकार 2014 में इस सूबे के दो टुकड़े कर दिए गए और अलग राज्य के रूप में इससे तेलंगाना का जन्म हुआ।
विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग का दबाव उस वक्त एन. चंद्रबाबू नायडु पर भी था क्योंकि 2017 में अपनी राज्यव्यापी यात्रा के दौरान जगनमोहन लगातार उन्हें और उनकी पार्टी तेलुगु देसम को इस बात के लिए निशाना बनाए हुए थे कि नायडु केंद्र की भाजपा सरकार को विशेष दर्जे के लिए राजी नहीं कर पा रहे हैं। दबाव इतना बढ़ा कि नायडु को एनडीए गठबंधन से बाहर निकलना पड़ गया।
इसके बावजूद कुछेक निर्णायक मौकों पर वाइएसआर कांग्रेस ने भाजपा को समर्थन दिया है। मसलन, पिछले साल मानसून सत्र के दौरान कांग्रेस के लाए अविश्वास प्रस्ताव का वाइएसआर कांग्रेस ने विरोध किया था और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) संशोधन बिल पर केंद्र का समर्थन किया था। पार्टी पिछले साल नई संसद के उद्घाटन में भी गई थी जिसका कई विपक्षी दलों ने बहिष्कार किया था।
भाई के साथ प्रतिद्वंद्विता के चलते रेड्डी की बहन शर्मिला कांग्रेस के साथ चली गईं। उन्होंने जगन सरकार पर भाजपा की ‘कठपुतली’ बन जाने का आरोप लगाया था। शर्मिला ने हाल ही में कहा था, ‘‘एक बार भी जगन ने आंध्र को विशेष दर्जा दिए जाने की मांग को मजबूती से नहीं रखा जबकि राहुल गांधी ने कहा है कि कांग्रेस सत्ता में आई तो पहले ही दिन वह आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दे देगी।’’
ध्यान रहे कि वाइएसआर कांग्रेस ने 2018 में केंद्र की एनडीए सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन किया था ताकि सरकार के ऊपर आंध्र को विशेष दर्जा देने का दबाव पड़ सके।
जानकारों का कहना है कि एनडीए को वाइएसआर कांग्रेस का समर्थन उस केंद्रीय अनुदान पर राज्य की निर्भरता के चलते है जिससे पोलावरम बांध जैसी बड़ी परियोजनाएं बननी हैं। पोलावरम आंध्र प्रदेश के एलुरु और पूर्वी गोदावरी जिले के बीच गोदावरी नदी पर बन रहा बहुउद्देश्यीय सिंचाई बांध है। इसके अलावा राज्य को 2014 में हुए विभाजन से हुए राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए भी केंद्र से वित्तीय मदद की दरकार है। फिर, रेड्डी के सिर पर कई मामलों में ईडी और सीबीआइ की तलवार भी लटक रही है। उधर, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तेदेपा वापस एनडीए के साथ चली गई है। अब देखना है कि तेदेपा की सवारी कर भाजपा को फायदा होता है कि नहीं?