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23 जनवरी 2023 · JAN 23 , 2023

झारखंड : सुलगता सम्मेद शिखर

प्रसिद्ध जैन तीर्थ को पर्यटन स्थल घोषित करने संबंधी पिछली भाजपा सरकार के फैसले पर गहराया विरोध
सम्मेद शिखर जी

अहिंसा और शांति का पैगाम देने वाली जैन संतों की निर्वाण भूमि सम्मेद शिखर, पारसनाथ सुलग रही है। धनबाद की सीमा से लगे गिरीडीह जिले में 20 जैन तीर्थंकरों की निर्वाण-भूमि सम्मेद शिखर से उठ रहीं लपटें अब देश के अन्य हिस्सों में फैल रही हैं। हर जगह जैन संत और जैन समाज विरोध में सड़कों पर उतर आया है। यह विरोध इस पवित्र स्थल को ‘पर्यटन स्थल’ घोषित करने की सरकारी पहल का है। जैन समाज का कहना है कि इससे तीर्थस्थल की पवित्रता भंग हो जाएगी।  जैन धर्मावलंबियों और संतों का मानना है कि पर्यटन स्थल होने से तरह-तरह के लोग आएंगे, मांस-मदिरा का सेवन करेंगे। महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश से इस विवाद पर खबरें आ रही हैं।

राज्य में पूर्ववर्ती भाजपा की रघुवर दास सरकार की अनुशंसा के बाद केंद्र के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2019 में इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित कर दिया था और राज्य सरकार ने इसे पर्यटन स्थल घोषित कर दिया था। हाल में जैन समाज के अलावा दूसरे समुदाय के लोगों के पारसनाथ पर चढ़ने की मनाही से विवाद और गहरा हो गया है। दिसंबर के अंतिम सप्ताह में कोडरमा से पारसनाथ घूमने आए कुछ स्कूली छात्रों को दूसरे प्रदेश से आए तीन-चार तीर्थयात्रियों ने जैन न होने के कारण पहाड़ पर चढ़ने से मना किया और अपशब्द कहे। स्थानीय लोगों को इसकी जानकारी मिली तो विवाद बढ़ गया। स्थानीय लोगों ने बाजार बंद करा दिया और मधुबन थाना गेट, मधुबन रोड को जाम कर दिया। झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार सोनू और प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद देर शाम मामला शांत हुआ।

इसी महीने इसी तरह एक और घटना घटी। इससे लगता है कि तीर्थस्थल घोषित किए जाने से अलग इस मामले की तह में कुछ और भी है। ध्यान देने वाली बात है कि यहां जैन धर्म के दोनों पंथ दिगंबर और श्वेतांबर से आने वाले लोगों की अलग-अलग सोसाइटियां तीर्थ के प्रबंधन का काम देखती हैं। मौजूदा विवाद पर दोनों पंथों के अपने-अपने स्वर हैं।

गिरिडीह जिले में स्थित सम्मेद शिखर, पारसनाथ पहाड़ी और आसपास के जंगलों के कारण लोगों के आकर्षण का केंद्र है। यह झारखंड की सबसे ऊंची पहाड़ी है। यह दुनिया में जैन धर्मावलंबियों के लिए सबसे पवित्र और सर्वाधिक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। चौबीस में से बीस जैन तीर्थंकरों के अतिरिक्त यह और भी जैन संतों की निर्वाण भूमि है। यहां नौ किलोमीटर की चढ़ाई, ऊपर तकरीबन इतनी ही लंबी परिक्रमा और वापसी में नौ किलोमीटर का उतार है। यानी यहां कुल 27 किलोमीटर नंगे पांव चलना पड़ता है। अनेक यात्री पूरे पहाड़ की 54 किलोमीटर की नंगे पांव परिक्रमा करते हैं। चोटी पर जैन संतों के चरण चिह्न हैं, टोंक हैं। तराई में कई विशाल भव्य मंदिर हैं। कम दूरी पर ही ऋजुपालिका नदी के किनारे एक विशाल मंदिर है। मान्यता है कि 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने यहां 12 साल दुग्धासन में गुजारे थे। देश-विदेश से साल में पांच लाख से अधिक जैन तीर्थयात्री पारसनाथ का भ्रमण करने आते हैं।

हाल में यहां पर्यटन को लेकर जब विरोध के स्वर बढ़ने लगे, तब झारखंड के राज्यपाल रमेश बैंस ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर इसे पवित्र जैन तीर्थस्थल ही बने रहने देने की सिफारिश की। इस संदर्भ में विश्व जैन संगठन ने 26 मार्च 2022, 6 जून 2022, 2 अगस्त 2022 और 11 दिसंबर 2022 को ‘श्री सम्मेद शिखर जी बचाओ आंदोलन’ के नाम से देशव्यापी शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन किया। भाजपा विधायक दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी भी इस विवाद में कूद पड़े। उन्होंने मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को पत्र लिखकर सम्मेद शिखर जी पारसनाथ को पर्यटन स्थल नहीं घोषित करने की मांग की है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर जैन समाज के शिष्टमंडल के साथ मुख्यमंत्री के सचिव विनय कुमार चौबे और पर्यटन सचिव अधिकारियों की बैठक हुई। जैन समाज के लोगों ने सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल से बाहर कर तीर्थ स्थल के रूप में अधिसूचित करने की मांग की, मगर इस पर सहमति नहीं बनी। पर्यटन सचिव मनोज कुमार ने कहा कि इसे पर्यटन सूची से बाहर नहीं किया गया है। हां, देश में विरोध को देखते हुए जैनियों के धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में परिभाषित करने का विकल्प रखा गया है। अब मुख्यमंत्री के स्तर पर इस पर निर्णय होना है। पर्यटन अधिकारियों की दलील है कि टूरिज्म एक्ट लागू नहीं होगा तो सरकार कुछ मदद नहीं कर सकेगी। इधर पार्श्वनाथ डेवलपमेंट अथॉरिटी ने यात्री सुविधाओं को लेकर 250 पन्ने का एक मास्टर प्लान तैयार कर रखा है।

ताजा विवाद पर तीर्थ क्षेत्र कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिखरचंद पहाड़िया ने कहा है कि यह पावन क्षेत्र जैनियों के साथ-साथ सभी की श्रद्धा का स्थल है। उन्होंने सभी से निवेदन किया है कि तीर्थयात्री सभी वर्गों की भावनाओं को सुरक्षित रखते हुए अपनी वंदना संपन्न करें। दिगंबर जैन साधु मुनि प्रमाण सागर जी ने इस संबंध में कहा, “जब तक नियमावली नहीं बनती हम किसी को कैसे कुछ कह सकते हैं। हर आदमी व्यवस्थापक बनेगा तो अव्यवस्था बनेगी।” 

प्रबंधन का काम देखने वाली श्वेतांबर जैन सोसाइटी के अध्यक्ष कमल रामपुरिया कहते हैं, “2019 में सरकार ने इसे पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की थी, यह बात लोगों की नजर में अब आई है। हमारी मांग है इसे होली सिटी घोषित किया जाए।”

पारसनाथ पहाड़ की तराई में अनेक गांव आदिवासी बहुल हैं। पूजा में बलि और शराब चढ़ाने की परंपरा है। यहां राइस बीयर यानी हंड़िया और महुआ से घर पर बनी शराब उनके खान-पान में शामिल है। हालांकि अमूमन वे भी जैनियों की आस्था का ध्यान रखते हैं इसलिए खुले में सेवन से परहेज करते हैं। लंबे समय से इसी तरह से सहजीवन चल रहा है। मधुबन क्षेत्र में मांस और मदिरा की दुकानें भी नहीं हैं। पिछले साल कुछ बाहरी लोग यहां मांसाहारी भोजन के साथ पिकनिक मना रहे थे, जिसका वीडियो वायरल हो गया। इसके बाद जैन समाज के लोग उद्वेलित हो गए थे। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के करीबी गिरिडीह से झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने कहा था कि कुछ बाहर के लोग सोशल मीडिया में विवाद को हवा दे रहे हैं और आग में घी डालने का काम कर रहे हैं।

जैन तीर्थयात्रियों के कारण यहां की अर्थव्यवस्था चलती है। यह भी सच है कि संताल समुदाय के लिए यह पहाड़ मरांग बुरू है। संताल समुदाय भी इसे पवित्र मानकर पूजा करता है। पहाड़ पर डोली ले जाने वाले, कोठियों में काम करने वाले, कोई भी जैन नहीं हैं। जमीनी हकीकत समझने वाले यहां के जैन समुदाय के लोगों की ओर से इस पर अभी तक कोई बयान नहीं आया है। पारसनाथ की गतिविधियों पर करीबी नजर रखने वाले पत्रकार पंकज जैन कहते हैं कि वैष्णो देवी की तरह पारसनाथ को भी पवित्र पहाड़ घोषित किया जाना चाहिए।

दिसंबर मध्य में विधानसभा के सत्र के दौरान सात सदस्यीय जैन शिष्टमंडल मुख्यमंत्री से मिला था। इनमें जयपुर, दिल्ली और मुंबई के लोग थे। उनका कहना था कि सरकार पर्यटन रहने दे, बस उसमें धार्मिक शब्द जोड़ दें। इसके बाद एक और समूह मुख्यमंत्री से मिला था। इस समूह को भी पर्यटन स्थल बनाए जाने पर आपत्ति थी।

बहरहाल, वोट के लिहाज से जैन समाज भले बहुत प्रभावी न हो, लेकिन आर्थिक और प्रभाव के स्तर पर इनकी बड़ी ताकत है। इसलिए यह मामला संवेदनशील बन गया है और इसका विरोध व्यापक रूप ले चुका है। फिलहाल, मुख्यमंत्री सोरेन ने  कहा है कि सभी पहलुओं पर विचार किया जाएगा। यहां का जिला प्रशासन जल्द ही जैन समाज की कोठियों के ट्रस्टियों के साथ बैठकर पर्यटन की आधारभूत संरचना विकसित करने के लिए एक सूची तैयार करेगा। बता दें कि यहां छह कोठियां श्वेतांबरों की हैं जबकि 16-17 कोठियां दिगंबरों की हैं। 

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