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जनादेश 2022/नजरिया: मजबूत विपक्ष देशहित में

कांग्रेस में ही भाजपा के खिलाफ खड़े होने की क्षमता, लेकिन उसके मौजूदा रूप में नहीं
कांग्रेस को मुख्यधारा में आने के लिए करनी होगी बहुत मेहनत

हाल में जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए उनमें से चार राज्यों में जीत दर्ज कर भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर साबित किया है कि बेहतर रणनीति, कठिन परिश्रम, कार्यकर्ताओं का अथक प्रयास और इन सबसे ऊपर विकल्प का पूर्ण अभाव सफलता के तयशुदा सूत्र हैं। हर चुनाव में सभी पार्टियों के लिए कुछ न कुछ सीख होती है, चाहे वह पार्टी जीती हो या हारी हो। चुनाव के इस पाठ से जो पार्टी सीखती है, वही फायदे में रहती है। चुनाव में बार-बार हारने के बावजूद न सीखने वाली पार्टी का नाम लेने की जरूरत नहीं। इन चुनावों से भी सीख मिली है, लेकिन यह सिर्फ उनके लिए है जो सीखना चाहते हैं।

एक समय इन चारों राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में कांग्रेस का शासन था। कांग्रेस इन राज्यों में कमजोर हुई तो उसकी जगह भाजपा ने ली। इसने तत्काल ऐसे कार्यक्रम लागू किए जिनसे समाज के बड़े वर्ग को फायदा हुआ। वह वर्ग मतदाता भी है। हिंदू पूजा स्थलों की दशा सुधारने के एजेंडे पर अमल करने के साथ भाजपा ने उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार किया और खासकर महिलाओं में सुरक्षा की भावना जगाई। योगी आदित्यनाथ को मिला जनमत उनके कार्यों को जनता की स्वीकारोक्ति समझा जाना चाहिए, न कि उसे सांप्रदायिक नजरिए से देखा जाना चाहिए।

भाजपा पर हिंदुओं की पार्टी होने के आरोप लगते हैं। इसके बावजूद यह मणिपुर में बहुमत हासिल करने में कामयाब रही, जहां 41 फीसदी आबादी ईसाइयों की है। गोवा और उत्तराखंड के चुनावी नतीजे भी इस बात के सबूत हैं कि भाजपा की लोकप्रियता समाज के हर वर्ग में है।

सीमाई प्रदेश पंजाब ने कुछ अलग कहानी लिखी है। यहां कांग्रेस ने अपने ही लोकप्रिय मुख्यमंत्री को बड़े बेआबरू करके हटाकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। उसके बाद जो कुछ हुआ, वह इस बात का उदाहरण है कि किसी राज्य के शासन और पार्टी की इकाई में क्या नहीं किया जाना चाहिए। यहां कांग्रेस की हार की इबारत तो पहले ही लिखी जा चुकी थी। लेकिन यहां आम आदमी पार्टी की जीत से भाजपा को सीख लेने की जरूरत है, जो दिल्ली में उसकी मुख्य विरोधी पार्टी है। पंजाब मे आप की बड़ी जीत का एक कारण कांग्रेस की कमजोर स्थिति तो है, लेकिन उससे भी बड़ा कारण यह है कि भाजपा यहां अपने आप को विकल्प के तौर पर पेश करने में नाकाम रही।

गोवा और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों से यह तो स्पष्ट होता है कि अखिल भारतीय स्तर पर कोई भी आम आदमी पार्टी को विकल्प के तौर पर नहीं देखता है। दिल्ली में उनके प्रदर्शन के बारे में कुछ न ही कहा जाए तो अच्छा। आप अन्य किसी भी क्षेत्रीय पार्टी की तरह एक छोटे से इलाके तक सीमित है और उसका कोई राष्ट्रीय नजरिया भी नहीं है। अब यही उम्मीद की जा सकती है कि पंजाब में वे ईमानदारी से काम करेंगे और ऐसे हालात नहीं बनने देंगे जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को किसी तरह का खतरा हो।

यह बात तो दिन की रोशनी की तरह साफ है कि भाजपा ने पूरे देश में मुख्यधारा की राजनीतिक शक्ति के रूप में कांग्रेस की जगह ले ली है। ऐसा नहीं था कि कांग्रेस समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व नहीं करती थी। वह आजादी के आंदोलन के नाम पर सत्ता सुख भोगती रही। लेकिन 1970 के दशक से हालात बदलने लगे। गुड गवर्नेंस के नाम पर उसने विभाजनकारी राजनीति, बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक और अमीर बना गरीब की नीति अपनाई। आपातकाल लागू करके पार्टी ने यह भी साबित कर दिया कि उसे लोकतंत्र और संविधान की परवाह नहीं है। थोड़े समय के लिए आई जनता पार्टी की सरकार भी कोई विकल्प नहीं थी। तब लोकसभा में सिर्फ दो सांसदों वाली भाजपा ने अपने आपको बदला और कांग्रेस का विकल्प बनाया।

भाजपा के सत्ता के शिखर तक पहुंचने की मुख्य वजह बेहतरीन रणनीति, जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं का कठिन परिश्रम, दूसरों की परवाह करने वाला और कार्यकर्ताओं के करीब रहने वाला शीर्ष नेतृत्व और इन सबसे महत्वपूर्ण चुनावी वादों पर अमल करना है। कई बार तो घोषणापत्र में किए गए वादों से भी ज्यादा काम किए गए। पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक ढांचा होने के कारण साधारण कार्यकर्ता भी सत्ता में ऊपर तक पहुंच सके और इसके बावजूद वे विनम्र तथा पार्टी के सिद्धांतों और विचारधारा के प्रति समर्पित रहे। आज के समय का मतदाता ऐसी पार्टियों को पसंद नहीं करता जहां शीर्ष पद जन्मजात अधिकार माना जाता हो, चाहे वह कोई क्षेत्रीय पार्टी हो या राष्ट्रीय।

इन चुनावों की एक और खास विशेषता है कि अगले लोकसभा चुनावों के बारे में सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि नतीजे भाजपा के पक्ष में होंगे। भाजपा का कोई विकल्प नहीं है, सिर्फ यही कारण उसकी जीत तय करने के लिए काफी है। हालांकि लोकतंत्र के हित में यही होगा कि अखिल भारतीय स्तर पर कोई पार्टी विकल्प के रूप में मौजूद हो। लेकिन ऐसा कहना आसान है, करना मुश्किल। सिर्फ भाजपा की आलोचना करने या उसका अनुसरण करके सफलता नहीं मिल सकती।

विडंबना यही है कि लगातार खराब प्रदर्शन के बावजूद कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी दिखती है जो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ खड़ी होने की क्षमता रखती है। लेकिन उसके मौजूदा रूप में तो यह बिल्कुल संभव नहीं है जहां नेतृत्व एक परिवार के हाथों में है। जरूरी यह है कि पार्टी तत्काल अपने शीर्ष नेतृत्व को बदले, एक नई विजनरी टीम लेकर आए और पार्टी को बुनियादी रूप से मजबूत करे। फिलहाल तो यह सब दूर की कौड़ी लगती है।

(लेखक ऑर्गनाइजर के पूर्व संपादक हैं, विचार निजी हैं)

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