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31 मार्च 2025 · MAR 31 , 2025

आवरण कथा/भोजपुरी: होइ गवा बाजारू हल्ला

हनी सिंह के नए एलबम से भोजपुरी के अश्लील बोल पर उठा विवाद बाजारूपन और सस्ती कमाई के लालच में बर्बाद होती सभ्यता, संस्कृति की मिसाल
स्त्री 2 में राजकुमार राव के साथ पवन सिंह

हनी सिंह का नया अलबम आया है, मैनिएक। एलबम के एक गाने में रागिनी विश्वकर्मा की आवाज में भोजपुरी में एक पंक्ति है, ‘दीदी का देवर, हमारी चोली का... चखना चाहता है।’ इससे पहले भोजपुरी में इस तरह से सीधे और भदेस शब्दों में अश्लीलता शायद ही दाखिल हुई थी। अब तक जो भी था, वह द्विअर्थी था। एलबम आने के बाद जैसा कि होता है, रस्म अदायगी के लिए भोजपुरी भाषियों ने सोशल मीडिया में नाराजगी जताई। लेकिन जैसा कि हर बार होता है, इस बार भी कुछ नहीं हुआ और मुद्दा आया गया हो गया। लेकिन वहीं दूसरा वर्ग इस बात से खुश था कि यह भोजपुरी की तरक्की है। देखो, हमारी भाषा कहां से कहां तक पहुंच गई है। गर्व इस बात का था कि हनी सिंह को भी भोजपुरी की जरूरत है! यह गर्व की बारिश सिर्फ भोजपुरी तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि उसकी कुछ बूंदे रागिनी विश्वकर्मा पर भी गिरीं कि उनके भाग जाग गए हैं और हनी सिंह के साथ गाने से अब उनके सामने संभावनाओं के अनंत द्वार खुल जाएंगे। 

नदिया के पार

भोजपुरी फिल्म नदिया के पार में दिलीप कुमार

हनी सिंह से पहले प्रियंका चोपड़ा भोजपुरी पर अपनी नजरें इनायत कर चुकी हैं। उन्होंने बम-बम बोल रहा काशी (2016) नाम की फिल्म प्रोड्यूस की थी, जिसमें एक गीत था, बोलेरो के चाभी से खोद देला नाभी। तब भी दो-चार दिनों तक विरोध का ऐसा ही खेल चला था। विरोध करने वालों का तर्क था कि प्रियंका चोपड़ा को अपनी फिल्म में ऐसे गाने को नहीं रखना चाहिए था।  तब भी कुछ लोगों का यही तर्क था कि यह भोजपुरी की बढ़ती ताकत है।

बलम परदेसिया

भोजपुरी के अश्लील, द्विअर्थी और स्‍त्री विरोधी होते जाने के दौर में सबके अपने-अपने तर्क हैं। जो लोग इस भाषा की मिठास के कायल हैं, उनके लिए निस्‍संदेह यह दुख की बात है कि इस भाषा को मात्र अश्लीलता के साथ जोड़ दिया जाए। विरोध और समर्थन के बीच समाधान कुछ नहीं निकलता और असली मुद्दा बस बहस में दब कर रह जाता है, जैसा कि इस बार भी हो रहा है। उसके बाद पिछला सब कुछ भुला दिया जाता है और सिलसिला फिर चल पड़ता है। 

भोजपुरी के इधर कुछ दशकों के गानों पर गौर किया जाए, तो हनी सिंह प्रकरण उसका सिर्फ विस्तार लगता है। निरहुआ, खेसारी लाल यादव, आम्रपाली जैसे कलाकार या तो अश्लील और द्विअर्थी गाने गाते हैं या खुद पर उत्तेजक तरीके से फिल्माते हैं। अश्लील बोल के साथ उतने ही कामुक तरीके से इन गानों को फिल्माया जाता है। इन गानों और एलबम का अलग ही बाजार है। होली के समय ऐसे गानों की भारी मांग होती है। गैर भोजपुरी भाषी भी डीजे पर भोजपुरी गाने पर होली का उत्सव मनाते हैं। दरअसल भोजपुरी को सस्ती लोकप्रियता से कमाई की ओर धकेलने में कालाकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है।

बॉलीवुड कनेक्शन

पिछले दिनों भोजपुरी के नामी कलाकार पवन सिंह ने जब एक फिल्म में राजकुमार राव के साथ काम किया, तो हल्ला हुआ कि यह हर भोजपुरी भाषी के लिए खुशी और आह्लाद का विषय है। जाहिर सी बात है, ऐसा उत्साह वही लोग दिखाते हैं, जो भोजपुरी गीतों के सफर से अनभिज्ञ हैं। भोजपुरी गीतों का शुरू से ही मुंबइया फिल्मी जगत से संबंध रहा है। समय-समय पर हिंदी फिल्म उद्योग के कई नामी लोग इससे जुड़ते रहे हैं। फरवरी की जिस 22 तारीख को हनी सिंह का मैनिएक एलबम रिलीज हुआ, संयोग से उसी दिन 1963 में भोजपुरी की पहली फिल्म हे गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो रिलीज हुई थी। इस फिल्म के गीत शैलेंद्र ने लिखे थे और संगीत चित्रगुप्त ने दिया था। शैलेंद्र तब भी हिंदी सिनेमा जगत में गीतकार के रूप में बड़े और प्रतिष्ठित नाम थे। चित्रगुप्त की भी प्रतिष्ठिा कम नहीं थी।

पवन सिंह

पवन सिंह

आजादी के एक साल बाद 1948 में आई हिंदी फिल्म नदिया के पार में पहली बार भोजपुरी गीत फिल्माए गए थे। इस फिल्म में अभिनेता थे दिलीप कुमार। इसमें भोजपुरी गीत, ‘कठवा के नइया बनइहे मलहवा, नदिया के पार दे उतार’ गीत उन दिनों भोजपुरी न जानने वालों की जबान पर भी चढ़ा हुआ था। इसके गीतकार थे मोती बीए। भोजपुरी का बॉलीवुड और बड़े नामों से जुड़ने का सिलसिला आजादी के बाद शुरू हुआ, जो अनवरत जारी है। उस दौर में लागे नहीं छुटे रामा, बलम परदेसिया, बिदेसिया समेत न जाने कितनी क्लासिक फिल्में बनीं, जिनके गीत गानेवाले कलाकारों में मोहम्मद रफी, मुकेश, किशोर कुमार, लता मंगेशकर, आशा भोंसले, महेंद्र कपूर जैसे चोटी के गायक कलाकार रहे। पंडित रविशंकर जैसे ने भी भोजपुरी गीतों को संगीतबद्ध किया, जो हिंदुस्तानी संगीत की दुनिया में सिरमौर बन चुके थे। जगजीत सिंह ने भी भोजपुरी गीत गाए। अमिताभ बच्चन, अजय देवगन भी भोजपुरी से जुड़े। भोजपुरी मास कल्चर न पहचान की मोहताज है, न उसकी लोकप्रियता में कोई कमी है। भोजपुरी में औसतन हर सप्ताह ऐसे गाने आते हैं, जिनके एक ही दिन में लाखों व्यूज पहुंच जाते हैं।

भोजपुरी रैप का जलवा

भोजपुरी में रैप पहले भी गाए गए हैं। कोविड काल में डॉ. सागर का लिखा रैप, ‘का बा...’ कौन भूल सकता है। अनुभव सिन्हा ने इसे मनोज वाजपेयी पर फिल्माया था। रैप मनोज वाजपेयी ने ही गाया था। यह भोजपुरी का कल्ट गीत बना, जिसकी तर्ज पर तब से अब तक न जाने कितने गीत रचे या गाए गए। 

का बा में मनोज बाजपेयी

का बा में मनोज बाजपेयी

यह तो मानना होगा कि भोजपुरी की लोकप्रियता या भोजपुरी के प्रति वैश्विक आकर्षण नई बात नहीं है। भोजपुरी गायकी का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलाव पुराना रहा है। गिरमिटिया जब भारत से बाहर गए, तो अपने साथ भोजपुरी की खुशबू भी ले गए। अभी भी जहां-जहां गिरमिटिया गए हैं, वहां भोजपुरी मौजूद है। सुंदर पोपो से लेकर राजमोहन और रागा डी मेन्नू तक ऐसे कलाकारों की लंबी और समृद्ध परंपरा भोजपुरी गायन के पास है। दशकों से यह भाषा दुनिया में भोजपुरी की मिठास को गानों के माध्यम से फैला रही है। सुंदर पोपो का गाया गाना, ‘फुलौरी बिना चटनी कइसे बनी’ 70 और 80 के दशक में दुनिया भर में फैला था। इस गीत को फिर से गाकर भारत के दो कलाकार कंचन और बावला ने फिर लोकप्रियता हासिल की थी।

समृद्ध इतिहास

भोजपुरी का समृद्ध इतिहास रहा है। तब सवाल यही उठता है कि फिर ऐसा क्या हुआ जो बेहतरीन बोल, गीत और संगीत वाली भोजपुरी की दुनिया अचानक स्‍त्री को कमोडिटी के रूप में देखने लगी और अंग विशेष पर द्विअर्थी बोलों वाले गीत बनने लगे। आखिर इसके पीछे क्या वजह थी? दरअसल, देश में जैसे-जैसे बाजारवाद असर बढ़ा तो स्‍त्री देह को कॉमोडिटी मानने का बाजार भी बढ़ा। यह बॉलीवुड की फिल्मों खुलकर दिखता है। इसका असर छनकर दूसरी भाषाओं-बोलियों में ज्यादा भद्दे और बाजारू ढंग से उतरता गया। इसमें भोजपुरी अकेली नहीं है। लेकिन भोजपुरी भाषी कलाकार और श्रोताओं का भी गुनाह कमतर नहीं है। भोजपुरी भाषी कलाकारों ने ज्यादा बिकने और कमाई की लालच में भोजपुरी गीतों को स्त्री देह पर केंद्रित करना शुरू किया। यह सब लोकप्रियता के चक्कर में हुआ और इसका जो सिलसिला चला तो फिर वह चलता ही रहा।

अश्लीलता पर सहजता

हाल के वर्षों की बात करे, तो भोजपुरी गीतों का अलग ही वर्ग तैयार हुआ है। आधुनिक दौर के लोकप्रिय गीत या वीडियो की बात करें, तो पवन सिंह का गाया गाना, ‘लॉलीपॉप लागेलू...’ आज भोजपुरी का इंटरनेशनल कल्ट गाना है। जिस गीत पर भोजपुरी समाज को प्रतिक्रिया देना चाहिए थी, वही समाज उस पर फिदा हो रहा है। महिलाएं सार्वजिनक उत्सव में उसके बोलों पर नाच रही हैं, थिरक रही हैं। नई उम्र की लड़कियां उस पर रील बनाने में व्यस्त हैं। हर आयोजन में यह गीत बज रहा है। पवन सिंह का ही एक गीत पिछले साल आया था, ‘पियर फराक वाली’। इस गीत में लड़की से पूछा जा रहा है कि तुम रात में कहां थी, जो तुम्हारे कपड़े पर दाग लगा हुआ है। इस गीत ने भी कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। 

लॉलीपॉप लागेलू का दृश्य

लॉलीपॉप लागेलू का दृश्य 

एक जमाने में ऐसे गीत आने पर समाज प्रतिक्रिया देता था। अब वही समाज ऐसे गानों के बोल पर उत्सव मना रहा है। अपने समय के लोकप्रिय गायक बालेश्वर ने जब पहली बार गाया, ‘तीन बजे आ के जगहइे पतरकी, सूतल रहब खरिहानी में’ तो भोजपुरी के एक बड़े वर्ग से विरोध की सुगबुगाहट हुई। उन्हें पारिवारिक आयोजनों में बुलाना बंद कर दिया गया। मशहूर गायिका और तवायफ बिजली रानी ने जब ‘कटवले बाड़ू बाल हो बॉब कट’ गाया था तब भी विरोध हुआ था। बिजली रानी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा था और उन्होंने  एक बातचीत में कहा था कि भोजपुरी समाज अपने ढोंग के बारे में सोचे न कि मेरे बारे में। उन्होंने बताया था कि ‘‘हमने एक गीत गाया था, ‘तोहके खियाइब लंबका केला हमार डेरा चला...’ तो लोगों ने बहुत विरोध किया था। बहुत बुरा-भला कहा और गालियां दी थीं। लोगों ने कहा था कि मैं भोजपुरी का सत्यानाश कर रही हूं। किसी को यह नहीं दिखता कि मंच पर लड़कियों के साथ छेड़खानी करनेवाले, स्‍त्री के हर अंग का वर्णन करने वाले, सॉफ्ट पॉर्न गीत गाने या गाना बनाने वाले बड़े कलाकार के रूप में स्थापित हो रहे हैं।’’

अपना-अपना दौरः (बाएं से) भिखारी ठाकुर, बालेसर, गायत्री ठाकुर, बिजली रानी

अपना-अपना दौरः (बाएं से) भिखारी ठाकुर, बालेसर, गायत्री ठाकुर, बिजली रानी

बिजली रानी की इन बातों में दम है। बिजली रानी की ख्याति ही तवायफ के रूप में थी पर भोजपुरी में उसी दौर में राधेश्याम रसिया, गुड्डू रंगीला से लेकर न जाने कितने कलाकार आए, जिन्होंने अपने गीतों से स्त्री देह को नंगा करना शुरू किया। वीडियो में फिल्माना शुरू किया और बाद में उन सबका अनुसरण करते हुए पवन सिंह, खेसारी लाल युग की शुरुआत हुई, जिन्होंने भोजपुरी की पहचान बिलकुल बदल कर रख दी। ऐसा नहीं है कि भोजपुरी में सिर्फ अश्लील गीत ही बन रहे हैं। पर्व-त्योहार आने पर भक्ति गीत भी सुनाई पड़ते हैं। लेकिन यह बहुत कम वक्त के लिए बजते हैं और लोगों के जेहन में जगह नहीं बना पाते। बाकी के पूरे समय स्त्री विरोधी गीतों का ही बोलबाला रहता है। जिस भोजपुरी में तेजी से मंच पर अश्लील थियेटर की परंपरा खत्म हुई, उसे फिर से इस धारा ने जीवित कर दिया। अब मंच पर ऐसे कलाकार दर्जन भर लड़कियों या नर्तकियों के साथ ही गाने जाते हैं और उनके साथ मंच से ही सरेआम गलत हरकत भी करते हैं। बाद में हर रूप में इसका विस्तार होता गया।

बदल गया रूप

भोजपुरी में दुगोला गायन की परंपरा रही है। इस गायन विधा की बहुत प्रतिष्ठा रही है। गायत्री ठाकुर से लेकर वीरेंद्र सिंह धुरान जैसे ख्याति प्राप्त कलाकार हुए हैं। अब इस विधा को भी नया रोग लग गया है। इस विधा में आए नए कलाकारों ने इसे पारंपरिक गायन से निकाल भौंडे गायन में बदल दिया है। यह कहने को भोजपुरी के बड़े और स्टार कलाकार कर रहे थे। हनी सिंह ने तो उसके भोंड़ेपन को बस कुछ और विस्तार दिया है। दरअसल गाने में जरा भी गुदगुदाने वाले शब्द हों, अश्लीलता का छौंक हो, तो उसके वायरल हो जाने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है। इसके लिए किसी एक को दोषी करार देना मुश्किल है। पिछले दिनों इस विषय पर आयोजित एक संवाद में भोजपुरी गायक और अभिनेता मनोज तिवारी ने कहा कि मीडिया को भी इसमें भूमिका निभानी चाहिए। मीडिया को विरोध में लिखना चाहिए कि फलां गायक या गायिक फूहड़ है।

चुनौती भोजपुरी की

सुंदर पोपो

सुंदर पोपो

भोजपुरी के सामने लोगों के बीच जगह बनाने की चुनौती नहीं है। हमेशा से लोगों के बीच इसका आकर्षण रहा है। जिनकी भाषा भोजपुरी नहीं रही, उन कलाकारों ने भी भोजपुरी गाने गा कर प्रतिष्ठा पाई, नाम कमाया। पिछले कुछ दशकों से भोजपुरी की लोकप्रियता पहले की तुलना में गैर-भोजपुरी भाषियों के बीच तेजी से बढ़ी है। साथ ही उतनी ही तेजी से भोजपुरी भाषियों का क्लास इससे कटा भी है। मास के बीच जाने की होड़ में ही भोजपुरी गायकी ने अपना रास्ता बदला। संभ्रांत समाज भोजपुरी से कटता गया और भोजपुरी इलाके से ही निकले प्रकाश झा, मनोज बाजपेयी, पंकज त्रिपाठी जैसे नामचीन कलाकार, बॉलीवुड में स्थापित होकर भी अपनी भाषा को बचाने के लिए कुछ नहीं कर पाए। इन लोगों ने भाषा की गरिमा को बचाने की कोई कोशिश नहीं की जैसी कभी नजीर हुसैन, पंडित रविशंकर, शैलेंद्र, चित्रगुप्त जैसे ख्यातिलब्धों ने की थी।

एलबम के दौर में

भोजपुरी की यह नई पहचान एलबम के दौर में शुरू हुई। गीतों को सुनाने से ज्यादा दिखाने का जब दौर शुरू हुआ, तभी बिहार के प्रतिष्ठित संगीत समीक्षक पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह ने कहा था कि यह दौर भोजपुरी लोकसंगीत के सौंदर्यबोध को विद्रूप बना देगा। गजेंद्र सिंह ने कहा था कि भोजपुरी गीतों को अब सुनाने से ज्यादा दिखाने का रोग लगा है। दिखाने की अब कोई सीमा नहीं रहेगी। पहले लोग साली, भाभी तक सीमित रहेंगे और फिर इसका विस्तार कहां तक होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। गजेंद्र सिंह की चिंता और भविष्यवाणी सच साबित हुई। एलबम कल्चर के बाद रील कल्चर के दौर में अब अपनी ही बहन और बेटी को लेकर भोजपुरी गीत बन रहे हैं।

खेसारी लाल

खेसारी लाल

अब जरूरत है, भोजपुरी में हो रहे अच्छे काम को बढ़ावा देने की। यह देखना होगा कि इन कामों की चर्चा कम क्यों होती है? आशय यह नहीं है कि भोजपुरी को भजन गायन की जरूरत है। लोकगीतों को वाकई लोकगीत बनाना होगा। भोजपुरी समाज का तर्क रहता है कि जब सब जगह यही चल रहा है, तो क्या किया जाए। लेकिन देखा जाए, तो इस तर्क में दम नहीं है।

अश्लीलता का आनंद जो लोग उठाते हैं, उनकी संख्या इतनी भी नहीं कि अच्छी पसंद वालों पर भारी पड़ जाए। अगर भोजपुरी अश्लीलता का बाजार बनता जा रहा है, तो उसके पीछे बाजार और पूंजी है। सब जानते हैं कि बाजार के खिलाफ खड़े होने के लिए ताकत लगती है। भोजपुरी जानने वाले इसके बरअक्स नया बाजार खड़ा करें, तो ही बात बनेगी। बाकी रही बात हनी सिंह की तो उसे लेकर हाय-तौबा मचाने के बजाय भोजपुरी में रैप और पॉप में काम कर रहे राजमोहन, रागा डी मेन्नू जैसे कलाकारों पर ज्यादा बात की जाए। नितिन चंद्रा जैसे गिने-चुने जो लोग अच्छी फिल्में बना रहे हैं, उन्हें आगे लाने और प्रोत्साहन देने की जरूरत है। उज्ज्वल पांडे, अमित झा, अमित मिश्रा जैसे कई युवा हैं, जो भोजपुरी में स्तरीय वृत्तचित्र और शॉर्ट फिल्में बना रहे हैं। इन सब पर ज्यादा से ज्यादा बात करने की जरूरत है।

ईमानदारी से कोशिश की जाएगी, तो स्थिति जरूर बदलेगी। मलयालम समाज इसका उदाहरण है। वहां भी फिल्में पोर्नोग्राफी का पर्याय हो गई थीं, पर समाज ने अपनी पहल से उसे फिर से क्लासिक में बदल दिया। हनी सिंह जैसे लोग आते-जाते रहेंगे, लेकिन भोजपुरी का अस्तित्व था और रहेगा। सबको मिलकर सोचना होगा कि भोजपुरी भाषा सिर्फ और सिर्फ लोकप्रिय हो जाने और सस्ती कमाई का जरिया बन कर न रह जाए।   

मनोज तिवारी

‘‘मीडिया को भी इसमें ऐसे गानों और गायकों को ग्लैमराइज करना बंद करना चाहिए। उसे भी अपनी भूमिका निभानी चाहिए। कहना चाहिए कि फलां अच्छा, फलां फूहड़’’

मनोज तिवारी, कलाकार, भाजपा सांसद

 

 निराला बिदेसिया

(घुमंतू लेखक और संस्कृतिकर्मी )

 

 

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