शोहरत की बुलंदियों पर अगर सुकून की नींद आती या चाहने वालों की भीड़ किसी की खुशियां मापने का पैमाना होता, तो परवीन बॉबी का नाम दुनिया की चंद खुशनसीब शख्सियतों की फेहरिस्त में होता। परवीन ने अपनी काबिलियत से हर वह चीज हासिल कर ली थी जिसकी तमन्ना लेकर कोई नवयुवती बॉलीवुड में अपनी किस्मत आजमाने आती है। लेकिन 22 जनवरी 2005 को जब मुंबई के जुहू स्थित उनके चार बेडरूम वाले फ्लैट में उनकी लाश मिली, तो लोगों तो पता चला कि वह निजी जिंदगी में कितनी तन्हा थीं। सिर्फ 55 साल की उम्र में परवीन की मृत्यु का तब पता चला जब उनकी बिल्डिंग में रहने वालों ने गौर किया कि उनके दरवाजे पर रखे गए दूध के पैकेट और समाचारपत्रों को तीन-चार दिनों से उठाया ही नहीं गया है। जब पुलिस अंदर पहुंची तो उन्होंने डायबिटीज से ग्रसित परवीन को मृत पाया, संभवतः पैर में हुए गैंग्रीन की वजह से। दरअसल उनकी मौत के तीन दिन बीत चुके थे।
अपनी मृत्यु से पूर्व लगभग 25 वर्षों तक परवीन डिप्रेशन से जूझती रहीं, जिसकी शुरुआत उन दिनों हुई जब एक दिलकश अदाकारा के रूप में उनकी लोकप्रियता चरम पर थी। परवीन ने अपने करिअर का आगाज क्रिकेटर सलीम दुर्रानी के साथ 1973 में प्रदर्शित चरित्र जैसी फ्लॉप फिल्म से की थी, लेकिन उनके मनमोहक स्क्रीन प्रेजेंस और बिंदास छवि ने निर्माताओं को उनकी ओर आकर्षित किया। अगले दो वर्षों में उन्हें बड़ी अभिनेत्रियों में शुमार किया जाने लगा। 1976 में प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन ने जब एशियाई सिनेमा के बदलते स्वरूप पर कवर स्टोरी छापी तो परवीन उसकी मुखपृष्ठ के लिए पहली पसंद बनीं। यह अकारण न था।
सत्तर के दशक के पूर्व भारतीय सिनेमा की मुख्य अभिनेत्रियां सती-सावित्री के किरदारों में ही सीमित थीं। परवीन और उनकी समकालीन जीनत अमान ने उस छवि को अपनी पाश्चात्य शैली से प्रभावित बोल्ड और ग्लैमरस अंदाज से बदलने में सफलता पाई। परवीन और जीनत दोनों अपने जमाने में बॉलीवुड की दो सबसे बड़ी सेक्स सिंबल के रूप में देखी जाती थीं। उनमें कई समानताएं भी थीं। दोनों ने अमिताभ बच्चन समेत उस समय के हर शीर्ष अभिनेता के साथ काम किया, लेकिन उनमें एक मूलभूत अंतर भी था। जीनत को शुरुआत से ही देव आनंद और राज कपूर जैसे गॉडफादर का वरदहस्त मिला, जिसने उनकी सफलता का मार्ग प्रशस्त किया, लेकिन परवीन ने बगैर किसी सहारे के अपनी मंजिल खुद तलाश की। छोटी फिल्मों से पारी शुरुआत करने के बावजूद उन्होंने अमिताभ के साथ आठ फिल्में कीं और नमकहलाल (1982) की सफलता के बाद शिखर पर पहुंच गईं, लेकिन इसके तुरंत बाद वे सब-कुछ त्याग कर अचानक गायब हो गईं।
लोगों का कहना था कि वे पैरानॉयड स्किट्जोफ्रेनिया नामक बीमारी से ग्रसित थीं। यह भी कहा गया कि अपने पूर्व प्रेमी महेश भट्ट द्वारा बनाई गई 1982 में प्रदर्शित फिल्म अर्थ देखकर वे विचलित हो गई थीं, क्योंकि उसमें उनके निजी संबंधों को तथाकथित रूप से दर्शाया गया था। हालांकि भट्ट ने बाद में एक साक्षात्कार में कहा कि परवीन की मानसिक हालत से वे अपने रिश्तों के दौरान ही वाकिफ हो चुके थे। उनके अनुसार, एक दिन परवीन ने उन्हें इशारे से यह कहते हुए चुप करा दिया कि दुश्मनों ने उन्हें मारने के लिए उनके पूरे घर को खुफिया यंत्रों से पाट दिया है।
कुछ ऐसा ही अनुभव इससे पूर्व अभिनेता डैनी को हुआ, जब वे उनके साथ लिव-इन रिलेशन में थे। एक दिन घर में डैनी के शंख बजाते ही वे काफी भयभीत हो गईं। और तो और, डैनी के साथ उन्होंने अपने संबंध भी इसीलिए तोड़ लिए क्योंकि एक साक्षात्कार पढ़ने के दौरान उन्हें अमिताभ और डैनी के अच्छे दोस्त होने की जानकारी मिली।
अपनी बीमारी के दौरान परवीन ने अमिताभ पर एक अंतरराष्ट्रीय माफिया का लीडर होने समेत कई आरोप लगाए। उन्होंने देश-विदेश के कई नामचीन शख्सियतों पर भी ऐसे गंभीर आरोप लगाए। एक बार तो उन्होंने बॉम्बे हाइकोर्ट में कुछ ऐसी ही याचिका भी दायर कर दी जिसे साक्ष्य के अभाव में खारिज कर दिया गया। जाहिर है, वे अपनी मानसिक अवस्था से वर्षों तक जूझती रहीं। उनके पूर्व प्रेमी उन्हें मनोचिकित्सक के पास लेकर गए, वे स्वयं शांति की तलाश में पूरी दुनिया घूम आईं। बाद के वर्षों में उन्होंने फिल्मों की दुनिया से दूर एकाकी जीवन बिताया।
लेकिन परवीन हमेशा ऐसी नहीं थीं। अंग्रेजी साहित्य में स्नातक परवीन बॉलीवुड में खलील जिब्रान और जिद्दू कृष्णमूर्ति को पढ़ने वाली अपनी पीढ़ी की एकमात्र अभिनेत्री थीं। वे उस समय की नारी सशक्तीकरण की ऐसी प्रतीक थीं, जिन्होंने जिंदगी को अपनी शर्तों पर जिया। उनकी बौद्धिक क्षमता का लोहा उनके अधिकतर सह-कलाकार मानते थे, लेकिन बॉलीवुड की चमक-दमक उनके लिए ताउम्र बेमानी ही रहा। अंततः मानसिक अवसाद ही उनकी असामयिक मृत्यु का कारण बना। जिस अदाकारा की राह में कभी उनके शैदाई दिलोजान बिछाने को तैयार रहते थे, उनकी मैयत में बमुश्किल चार लोग मौजूद थे।