प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को लॉकडाउन का ऐलान करते वक्त जब कहा था कि महाभारत की लड़ाई 18 दिन चली थी , ये लड़ाई 21 दिन की है, तो पूरे देश ने यही सोचा था कि 21 दिन के लॉकडाउन के बाद कोरोना का खतरा खत्म हो जाएगा। लेकिन लड़ाई अब 60 दिनों से ज्यादा की हो चुकी है। संक्रमण घटने के बजाय बढ़ता जा रहा है। हालत यह है कि भारत 1.45 लाख संक्रमित (25 मई तक) मामलों के साथ दुनिया के 10 सबसे ज्यादा संक्रमित होने वाले देशों में पहुंच गया है। जाहिर है, कोरोना की लड़ाई खत्म होने की जगह गंभीर होती जा रही है। खुद प्रधानमंत्री ने चौथे चरण के लॉकडाउन का ऐलान करते वक्त कहा कि यह लड़ाई लंबी चलेगी, हमें कोरोना के साथ जीना होगा। लेकिन डरने वाली बात यह है कि अकेले मई के 25 दिनों में देश में 1.10 लाख से ज्यादा कोरोना संक्रमण के मामले सामने आ गए हैं जबकि 30 अप्रैल तक देश में केवल 34866 मामले थे। उससे भी परेशान होने वाली बात यह है कि कोरोना का संक्रमण अब उन ग्रामीण इलाकों में भी पहुंच रहा है, जो कभी ग्रीन जोन में थे। आशंका खुद प्रधानमंत्री ने राज्य के मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक में जताई थी।
समस्या यह है कि जब दिल्ली-मुंबई जैसे शहर पर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं होने की वजह से मरीजों को नहीं संभाल पा रहे हैं, तो पहले से ही लचर व्यवस्था से जूझ रहे छोटे शहर और ग्रामीण इलाके बढ़ते बोझ को कैसे संभाल पाएंगे।
हाऊ इंडिया लिव्स डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार, 25 मई तक देश के 717 जिलों में से 613 जिलों में कोविड-19 के मामले पहुंच गए हैं। जबकि खुद स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने आउटलुक को दिए इंटरव्यू में 13 मई तक के आंकड़ों के आधार पर बताया था कि 319 जिलों का ग्रीन जोन में ले न आना एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन मात्र 12 दिनों में 215 नए जिलों में संक्रमण फैल गया है। यही नहीं, मई के महीने में संक्रमण की दर में भी काफी तेजी से इजाफा हुआ है। इस दौरान 25 मई तक करीब 22 लाख लोगों की टेस्टिंग हुई है, इसमें से पांच फीसदी लोग संक्रमित हुए है। वहीं, अगर पिछले 10 दिन की रफ्तार देखे तो संक्रमण की दर छह फीसदी पहुंच गई है, जो मई में अमेरिका की संक्रमण की दर से भी ज्यादा है। इसी वजह से एम्स के डायरेक्टर रणदीप एस. गुलेरिया सहित दूसरे विशेषज्ञ यह आशंका जता रहे हैं कि जून और जुलाई के दौरान भारत में कोरोना का संक्रमण अपने उच्चतम स्तर पर होगा। बढ़ते मामलों के आधार पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार की लॉकडाउन स्ट्रैटेजी पर सवाल उठा दिए हैं, उनका कहना है, “पूरी दुनिया में लॉकडाउन तब हटाया जा रहा है, जब वहां संक्रमण के मामले कम हो रहे हैं, भारत में सरकार, लॉकडाउन तब हटा रही है, जब मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में, साफ है कि लॉकडाउन का उद्देश्य और मकसद दोनो फेल हो गया है।” क्या वास्तव में लॉकडाउन की स्ट्रैटेजी कारगर साबित नहीं हुई इस पर प्रसिद्ध वॉयरोलॉजिस्ट और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च में सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च इन वॉयरोलॉजी के पूर्व प्रमुख डॉ. टी.जैकब जॉन का कहना है “भारत में अभी तक संक्रमण जैसी संभावना थी, उसी तरह दर से बढ़ रहा है। उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। वायरस के व्यवहार में अभी तक कोई बदलाव नहीं आया है। उसके विपरीत, वायरस से लड़ने के लिए मानव ने उम्मीदों के अनुसार व्यवहार नहीं किया है।”
असल में कौन सी गलतियां थीं, जिनकी वजह से लॉकडाउन के बावजूद देश में संक्रमण के मामले न कम हो रहे हैं और न ही सीमित हैं, इस पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सेंटर फॉर कम्युनिटी मेडिसिन के पूर्व प्रोफेसर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि “कोरोनावायरस चीन से पूरी दुनिया में फैला, ऐसे में सरकार को तुरंत अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के भारत में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना चाहिए था, ऐसा करते तो संक्रमण बहुत हद तक नियंत्रित रहता। अगर यह नहीं हो पाया तो सरकार को रैपिड टेस्टिंग का तरीका अपनाना चाहिए था। क्योंकि अभी हम केवल लक्षण पाए जाने वालों की टेस्टिंग कर रहे हैं। इस कारण बिना लक्षण वाले मरीजों की पहचान नहीं हो पा रही है, और उनकी वजह से भी संक्रमण तेजी से फैल रहा है। तीसरी अहम बात यह है कि संक्रमण बढ़ने के दौर में लॉकडाउन में ढील दे दी गई है। अब इसकी वजह से भी संक्रमण तेजी से बढ़ेगा।”
संक्रमण तेजी से बढ़ने का सबसे बड़ा खतरा है यह है कि वह उन इलाकों में फैल रहा है, जहां पर लॉकडाउन करने के बाद भी कोविड-19 के बीच पर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं हो पाया है। मसलन, देश के सभी औद्योगिक इलाकों से सबसे ज्यादा प्रवासी श्रमिक उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, बंगाल, झारखंड में जा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार, अकेले उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में 50 लाख श्रमिक पहुंचे हैं। बड़े पैमाने पर इन श्रमिकों का इन राज्यों में पहुंचना भी एक बड़ी चुनौती बन रहा है। क्योंकि इन राज्यों में न तो पर्याप्त कोविड-19 की जांच सुविधाएं हैं और न ही स्वास्थ्य सेवाओं का बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद से मिली जानकारी के अनुसार, देश में 25 मई तक कोविड-19 टेस्टिंग के कुल 612 लैब हैं। इसमें से 430 सरकारी और 182 प्राइवेट लैब हैं। अहम बात यह है कि देश में मौजूद कुल लैब में से 50 फीसदी लैब तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र में हैं। जबकि उत्तर प्रदेश जैसे घनी आबादी वाले राज्य जहां 23 करोड़ आबादी निवास करती है, वहां केवल 27 और 12 करोड़ आबादी वाले बिहार में केवल 17 लैब, पश्चिम बंगाल में 37 और झारखंड में केवल 20 लैब हैं। जबकि एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स ने भारत सरकार को जो आंकड़ा दिया है, उसके अनुसार श्रमिकों में संक्रमण की दर करीब पांच फीसदी है। ऐसे में इन राज्यों के लिए संक्रमण का विस्फोट संभालना बहुत मुश्किल होगा। क्योंकि उत्तर प्रदेश और बिहार के सभी जिलों में कोविड-19 के मामले आ चुके हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थिति पर एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स के डायरेक्टर जनरल गिरधर ज्ञानी का कहना है, “कोविड-19 के पहले से ही भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं की दिक्कत रही है। ऐसे में लॉकडाउन में कुछ बड़ा बदलाव नहीं किया जा सकता है। लेकिन यह जरूर है कि सरकार को अपनी स्ट्रैटेजी में बदलाव करना पड़ेगा। जो आंकड़े आ रहे हैं, उससे साफ है कि अभी स्थिति और बिगड़ेगी। संक्रमण के जो मामले आ रहे हैं, उसमें से ज्यादातर ऐसे हैं, जिनको हॉस्पिटलाइजेशन की जरूरत नहीं है। ऐसे लोग होम क्वारंटीन से ही ठीक हो सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। सभी को अस्पतालों में भर्ती किया जा रहा है। इसे देखते हुए बेड की दिक्कतें आ रही हैं। सरकार को कम गंभीर लोगों को हॉस्टल, होटल आदि में क्वारंटीन करने की व्यवस्था करनी होगी। लेकिन सरकार के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती खड़ी हो रही है, वह मेडिकल स्टॉफ की उपलब्धता है। क्योंकि मरीजों की संख्या को देखते हुए पर्याप्त मेडिकल स्टॉफ नहीं है। ”
इस बीच गुजरात हाईकोर्ट ने भी अहमदाबाद के सिविल अस्पताल पर तल्ख टिप्पणी कर दी है। उसके अनुसार, अहमदाबाद के सिविल अस्पताल की हालत ‘दयनीय’ है और यह अस्पताल ‘कालकोठरी जैसा है, यहां तक कि उससे भी ज्यादा बदतर है। 22 मई तक सिविल में 377 कोरोना मरीजों की मौत हो गई थी।’ हालात की गंभीरता को देखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय भी अलर्ट हो गया है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी से मिली जानकारी के अनुसार राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ 23 मई को स्वास्थ्य मंत्रालय की बैठक हुई है। जिसमें 11 म्युनिसिपल क्षेत्रों के लिए अगले दो महीने का प्लान तैयार करने के लिए कहा गया है। इसके तहत महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के म्युनिसिपल क्षेत्र शामिल हैं। जहां पर देश में कोविड-19 के 70 फीसदी मामले हैं। जाहिर है, कई छोर पर सरकार के लिए खतरे बढ़ गए हैं। ऐसे में कारगर कदम नहीं उठे तो जून-जुलाई में स्थिति संभालना मुश्किल हो सकता है।
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डरावने हैं आंकड़े
1.5 लाख लोग संक्रमित, 4,346 की मौत
दो हफ्ते में 75 हजार मरीज बढ़े
8,944 मरीज आईसीयू में भर्ती, गंभीर मरीजों के मामले में भारत तीसरे नंबर पर
मुंबई में मास्को के बाद सबसे ज्यादा हर रोज आ रहे हैं मामले, मरीजों की संख्या 32,974 पहुंची
अब तक 33 लाख लोगों की टेस्टिंग, संक्रमण दर छह फीसदी तक पहुंची
मृत्यु दर 2.9 फीसदी और रिकवरी दर 42.4 फीसदी से थोड़ी राहत
(नोट- सभी आंकड़े 26 मई तक के हैं, स्रोंत-भारत सरकार, वर्ल्डमीटर डॉट ओआरजी, कोविड-10 डॉट ओआरजी)