इस वक्त तो रितिक रोशन को चीन में होना चाहिए था, जिन्हें अपने देश में हिंदी सिनमा के दीवाने ‘ग्रीक गॉड’ यानी यूनानी देवताओं जैसे खूबसूरत बताते हैं। बीते साल की सुपर हिट फिल्म वार के बाद 46 वर्षीय अभिनेता रितिक रोशन की बिहार के गणित शिक्षक आनंद कुमार पर 2019 में बनी बॉयोपिक सुपर 30 अप्रैल में रिलीज होनी थी। सो, रिलीज से पहले प्रमोशन के लिए रितिक को पिछले महीने के आखिर में चीन जाना था। लेकिन कोरोना वायरस के संकट ने उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। उनके चीनी प्रशंसकों को अब अपने दा शुई (बेहद खूबसरत सितारा) की झलक पाने के लिए लंबा इंतजार करना होगा।
कोविड-19 महामारी से पूरी दुनिया में तहलका मचा हुआ है। सबसे ताकतवर देशों की अर्थव्यवस्था भी घुटनों के बल बैठ गई है। ऐसे में किसी को नहीं पता कि सुपर 30 चीन के परदों पर कब दिखेगी? कथित तौर पर इस वायरस के संक्रमण की शुरुआत वाले वुहान शहर 76 दिनों के लॉकडाउन के बाद खुल तो गया है, लेकिन हालात अभी भी सामान्य नहीं हैं। मौजूदा परिस्थितियों में यह अनुमान लगाना कठिन है कि चीन में सिनेमा का बाजार कब आम दिनों जैसे खुल जाएगा। तो, क्या यह माना जाए कि बॉलीवुड के लिए चीन का बाजार बंद हो जाएगा, जिसे ट्रेड एनालिस्ट भारतीय अभिनेताओं और फिल्म निर्माताओं के लिए सोने की खान बताते रहे हैं? रितिक के लिए चीन के मुख्य भूभाग में सुपर 30 की रिलीज को लेकर काफी कुछ दांव पर है। बिहार के गरीब परिवारों के बच्चों को आइआइटी सरीखे प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिला दिलाने के लिए जीवन खपा देने वाले एक गरीब शिक्षक पर बनी इस बॉयोपिक को पिछले साल भारत में काफी सराहा गया था और कमाई भी अच्छी-खासी हुई थी। लेकिन बॉक्स ऑफिस पंडित मानते हैं कि सभी को शिक्षा का संदेश देने वाली इस फिल्म की पटकथा की सर्वव्यापी अपील के कारण चीन में इसे जबदस्त सफलता मिल सकती है। कई विश्लेषकों का तो यहां तक मानना है कि चीनी दर्शकों को लुभाकर यह खूब कमाई कर सकती है, जैसा कमाल कुछ वर्ष पहले आमिर खान की दंगल (2016) ने दिखाया था। सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार ने आउटलुक को बताया, "यह फिल्म चीन में इस महीने (अप्रैल) रिलीज होनी थी। रितिक और मुझे फिल्म के प्रमोशन के लिए मार्च के आखिर में चीन जाना था लेकिन कोरोना वायरस के चलते सब कुछ थम गया।"
अपने गृह नगर पटना में समाज के कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए पहला कोचिंग सेंटर शुरू करके प्रसिद्धि पाने वाले 47 वर्षीय आनंद मानते हैं कि पूरी दुनिया में जो स्थिति पैदा हुई है, "उसे देखते हुए इस समय चीन में सुपर 30 के रिलीज के बारे में कोई भी नहीं सोच सकता है। वे कहते हैं, इस महामारी ने हर किसी व्यक्ति और उद्योग को प्रभावित किया है और लोगों की जिंदगी संकट में डाल दी है। घर पर सुरक्षित रहना समय की सबसे बड़ी मांग है।"
हालांकि आनंद को उम्मीद है कि अगले महीने हालात सुधरेंगे। उनका कहना है, चीन में हालात धीरे-धीरे सामान्य होने लगे हैं। लेकिन एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में गतिविधियां शुरू होने में अभी पांच-छह महीने और लगेंगे।
निस्संदेह इस महामारी ने न सिर्फ रितिक की फिल्म की कारोबारी संभावनाओं को, बल्कि समूचे बॉलीवुड को बड़ा झटका दिया है। बॉलीवुड कई बड़ी फिल्मों की नाकामी के दौर से गुजर रहा है, अब इस साल वह कोविड-19 के संकट में फंस गया है। भारतीय फिल्मों के लिए चीन कितना बड़ा बाजार है, खासकर पिछले चार-पांच वर्षों में विकसित हुआ है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सिर्फ दंगल फिल्म ने 2017 में वहां 1,357 करोड़ रुपये का कारोबार किया। आमिर खान की फिल्म सीक्रेट सुपरस्टार का चीन में 800 करोड़ रुपये का कारोबार भारत में उसके कारोबार से नौ गुना ज्यादा रहा था।
हालांकि चीन फिल्मों के पारंपरिक विदेशी बाजारों में शामिल नहीं है और वहां के कठोर सेंसरशिप नियमों के चलते भारत की चुनिंदा फिल्मों को ही रिलीज की अनुमति मिल पाती है। भारतीय फिल्मों के विदेशी कारोबार में से 75 फीसदी अमेरिका (30 फीसदी), ब्रिटेन (20 फीसदी) और अरब जगत (25 फीसदी) से मिलता है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, बाकी यूरोप और दक्षिण-पूर्वी एशिया प्रमुख बाजार हैं, जहां भारतीय समुदाय हर हफ्ते भारतीय फिल्में रिलीज होने का इंतजार करता है।
फिक्की और अर्स ऐंड यंग की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में हिंदी फिल्मों के 4,950 करोड़ रुपये के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के साथ भारतीय घरेलू फिल्मों का कुल राजस्व 11,500 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया। रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि में फिल्मों का विदेशों में कारोबार 10 फीसदी गिरकर 2,700 करोड़ रुपये रह गया जबकि ज्यादा फिल्में विदेशों में रिलीज हो रही हैं।
विदेशी राजस्व में गिरावट मुख्य तौर पर पिछले साल सुपरस्टारों की कुछ बड़ी फिल्में फ्लॉप होने के कारण दर्ज की गई लेकिन इसे भारतीय सिनेमा में विदेशी दर्शकों की दिलचस्पी घटने के तौर पर नहीं देखा जा सकता है। इससे हटकर इन्हीं एजेंसियों ने अपनी पिछली रिपोर्ट में कहा था कि भारतीय फिल्म कारोबार 2021 तक 11.6 फीसदी की सालाना रफ्तार से बढ़ेगा। 2018 में इसका कारोबार 23.9 अरब डॉलर था जो 2017 के मुकाबले 13.4 फीसदी बढ़ा था। इन सभी वर्षों में भारतीय फिल्मों का विदेशी बाजार तेजी से बढ़ा और इसके कारण राजस्व वृद्धि में उनका योगदान और बढ़ गया। लेकिन अब समूचे विदेशी बाजार के सभी आशावादी अनुमान कोरोना वायरस के खतरे के कारण बेमानी साबित हो सकते हैं। देश-विदेश में सभी सिनेमा हॉल बंद होने के कारण भारतीय फिल्म उद्योग के लिए इस साल निराशाजनक स्थिति दिखाई दे रही है।
मूवी ट्रेड जर्नल कंप्लीट सिनेमा के संपादक अतुल मोहन कहते हैं कि इस साल अगस्त-सितंबर से पहले हालात सुधरने की कोई उम्मीद नहीं है। उनका कहना है, "इस समय भय का माहौल है। लॉकडाउन खत्म होने के बाद शुरुआती हफ्तों में अधिकांश दर्शक थिएटरों से दूर ही रहेंगे। थिएटर खुलने के बाद जनता का मूड समझने के लिए पहले से ही रिलीज फिल्में प्रदर्शित की जाएंगी। बड़ी फिल्में निश्चित ही कुछ और महीने रोकी जाएंगी।"
मोहन ने बताया, "इससे फिल्म निर्माताओं को, खासकर बॉलीवुड को हर तरफ भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। बॉलीवुड की फिल्में विदेशों में अपनी लोकप्रियता के चलते अपने कुल कारोबार का 30 से 50 फीसदी विदेशी बाजारों से पाने की उम्मीद करती हैं। इस लोकप्रियता ने शाहरुख खान को बॉलीवुड का किंग बनाया और फिल्म निर्माताओं को उसकी वास्तविक संभावनाओं का एहसास कराया।"
ऐसा नहीं है कि बॉलीवुड ने अनायास नई सदी में विदेशी बाजार के गुप्त खजाने को खोजा है। 1949 में के.ए. अब्बास की धरती के लाल (1946) तत्कालीन सोविय संघ में रिलीज हुई थी। तीन साल बाद, मेहबूब खान की दिलीप कुमार अभिनीत आन (1952) को 28 देशों में रिलीज करने से पहले 17 भाषाओं में उसकी डबिंग की गई। राज कपूर की मशहूर फिल्म आवारा (1951) सोवियत संघ और चीन जैसे देशों में 1954 में रिलीज होने के बाद यादगार फिल्म बन गई और विदेश में 10 करोड़ से ज्यादा टिकट बिक्री वाली पहली भारतीय फिल्म बनी। कुछ दशकों तक कारवां (1971) या बॉबी (1973) को छोड़कर विदेश में रिलीज हुई फिल्में कम ही चल पाईं लेकिन मिथुन चक्रवर्ती की डिस्को डांसर (1982) सोवियत संघ और चीन में जबर्दस्त हिट हुई। 1991 में सोवियत संघ के विघटन से बॉलीवुड का तब का सबसे बड़ा विदेशी बाजार बिखर गया।
दिलचस्प तथ्य यह है कि सोवियत मार्केट के विघटन से ही उदारीकरण के दौर के बाद अमेरिका, ब्रिटेन, बाकी यूरोप और यहां तक कि मध्य-पूर्व में बॉलीवुड फिल्मों के विदेशी कलेक्शन में भारी बढ़ोतरी हुई। बड़ी संख्या में दक्षिण एशियाई कर्मचारियों, खासकर आइटी सेक्टर में भारतीयों के विदेशों में जाने के कारण ही न सिर्फ बॉलीवुड बल्कि तमिल, तेलुगु और पंजाबी जैसे क्षेत्रीय फिल्म उद्योगों के लिए नई सदी के ये अत्यंत आकर्षक बाजार बन गए। वास्तव में विदेशी बाजार इतने अच्छे बाजार बन गए कि अधिसंख्य फिल्में भारतीय समुदाय की रुचियों के अनुसार अप्रवासी भारतीयों के इर्द-गिर्द बनने लगीं। शाहरुख खान की दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1995) ने पश्चिमी देशों में बसे अप्रवासी भारतीय दर्शकों को ऐसे लुभाया जैसा पिछली किसी फिल्म ने नहीं किया था। जबकि उनकी दिल से (1998) ब्रिटेन के बॉक्स ऑफिस की शीर्ष दस फिल्मों में स्थान पाने वाली पहली फिल्म बन गई। इसके बाद शाहरुख खान की माय नेम इज खान (2010) ने विदेशी बाजार में 100 करोड़ रुपये जुटाने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी। कोई आश्चर्य नहीं कि वितरक आने वाले वर्षों में एसआरके को विदेशी बाजार के भगवान की तरह पूजने लगें।
शाहरुख खान की तरह दो अन्य खान सुपरस्टार आमिर और सलमान भी इस दौरान समूचे विदेशी बाजार में लोकप्रियता पाने लगे। दंगल और सीक्रेट सुपरस्टार ने आमिर को चीन के दर्शकों के बीच लोकप्रिय बना दिया जबकि सलमान को पश्चिम एशियाई देशों में भारी लोकप्रियता मिली। उनकी बजरंगी भाईजान (2015) को चीन के बाजार में भी अच्छी सफलता मिली। लेकिन इन कलाकरों को विदेशी बाजार में कभी एकाधिकार नहीं मिला। अगर कोई भले ही छोटी हो, लेकिन फिल्म अच्छी है तो कलाकार मायने नहीं रखता है। यह बात इरफान खान की फिल्म द लंचबॉक्स (2013) की असाधारण सफलता से साबित हो गई। दिलचस्प है कि जब बॉलीवुड अमेरिका और दूसरे बाजारों में कारोबारी सफलता हासिल कर रहा था, उस समय हिंदी फिल्म निर्माताओं को नई सहस्त्राब्दी में उभरते चायनीज बाजार के बारे में कोई एहसास नहीं था। चायनीज दर्शकों की बॉलीवुड फिल्मों में दिलचस्पी एक दशक पहले उस समय पैदा हुई जब 3 इडियट्स के पायरेटेड प्रिंट ने चीन के बाजार में प्रवेश किया, तब वहां के दर्शकों के बारे में एहसास हुआ। इसके बाद आमिर खान की यह फिल्म आधिकारिक तौर पर रिलीज हुई लेकिन सही मायने में भारतीय फिल्मों का प्रवेश आमिर की अगली फिल्म पीके (2014) से हुआ। इसने चीन के बाजार से 100 करोड़ रुपये से ज्यादा कमाई की। इसके साथ ही इस बाजार की व्यापक संभावनाओं का एहसास हुआ। तब तक दंगल और सीक्रेट सुपरस्टार भी रिलीज हुईं। उसने आमिर को इतना बड़ा स्टार बना दिया कि उनकी दोनों फिल्मों ने उसी समय रिलीज होकर हॉलीवुड की बड़े बजट की फिल्मों से भी ज्यादा कारोबार किया और कई रिकॉर्ड तोड़ दिए। हाल के वर्षों में छोटे बजट की फिल्में जैसे इरफान खान की हिंदी मीडियम (2017), रानी मुखर्जी की हिचकी (2018) और आयुष्मान खुराना की अंधाधुन (2018) ने अच्छा कारोबार किया। सभी की नजरें अब आने वाली बड़ी फिल्मों जैसे अक्षय कुमार की सूर्यवंशी और रणवीर सिंह की 83 पर टिकी थीं, जो रिलीज होने वाली थीं लेकिन लॉकडाउन के कारण रोक दी गईं। फिल्म आलोचक मुर्तजा अली खान कहते हैं कि दुनिया के मौजूदा दौर का सबसे बुरा प्रभाव फिल्म कारोबार पर पड़ा है। वह कहते हैं, "सोशल डिस्टेंसिंग गाइडलाइन ने सिनेमा हॉलों और मल्टीप्लेक्सों को बंद कर दिया है। शूटिंग अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई हैं। कई नई फिल्में महीनों के लिए टाल दी गई हैं। बॉलीवुड को अंतरराष्ट्रीय बाजार में ज्यादा नुकसान होने का अंदेशा है।"
खान कहते हैं कि यूरोप, चीन, अरब जगत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया पारंपरिक रूप से बॉलीवुड के लिए फायदेमंद बाजार हैं लेकिन कोविड-19 के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर लंबे अरसे तक व्यापक प्रभाव पड़ने की आशंका है। इस बात की क्षीण संभावना दिखती है कि जल्दी ही हालात सामान्य हो पाएंगे। उन्होंने कहा, "वैश्विक स्तर पर महामारी कितने समय में काबू हो पाती है, इसी से तय होगा कि बॉलीवुड अपना विदेशी बाजार छह महीने में दोबारा हासिल कर पाएगा या फिर कई साल लग जाएंगे।"
फिल्म कारोबार विश्लेषक गिरीश जोहर इससे सहमत हैं। उनका कहना है कि बॉलीवुड के लिए यह बहुत बड़ा झटका है। जोहर कहते हैं, "भय और मनोरंजन एक साथ नहीं चलते हैं। जब आम लोग कोरोना के खतरे से भयभीत हैं तो वे थिएटर जाने की कैसे सोच सकते हैं। फिल्में उनके दिमाग में आखिरी विचार के तौर पर होंगी।" जोहर के अनुसार, सिर्फ बॉलीवुड ही नहीं, बल्कि हॉलीवुड के बड़े स्टूडियो जैसे सोनी, पैरामाउंट और मार्वेल को भी अपनी आगामी बड़ी फिल्मों की रिलीज कुछ महीनों के लिए या फिर एक साल के लिए टालनी पड़ी है। जोहर ने कहा, "जैसे ही हालात सुधरेंगे, वे अपनी फिल्में रिलीज करने लगेंगे। लेकिन भारतीय फिल्म निर्माताओं के लिए ज्यादा समस्या होगी, क्योंकि उसी समय विदेशी बाजार में रिलीज होने पर हॉलीवुड के साथ सीधा टकराव होगा।"
वे कहते हैं कि बॉलीवुड में बड़ी फिल्मों के निर्माता, जो रिलीज के लिए तैयार हैं, उन्हें खासतौर पर सबसे ज्यादा नुकसान है। वह अगर लॉकडाउन खत्म होने के तुरंत बाद रिलीज करने का फैसला करते हैं तो उन्हें विदेशी बाजार का मोह छोड़ना होगा, क्योंकि वहां हालात जल्दी सामान्य होने वाले नहीं हैं। अगर वे परिस्थितियां सुधरने का इंतजार करते हैं तो उन्हें वित्तीय नुकसान उठाना होगा, क्योंकि फिल्म बनाने के लिए उधार लिए गए पैसे पर भारी ब्याज भरना होगा। उनके लिए यह दोधारी तलवार से कम नहीं है।
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विदेश में दस सबसे सफल भारतीय फिल्में*
दंगल 2016
$22.8 करोड़
सीक्रेट सुपरस्टार 2017
$14 करोड़
बजरंगी भाईजान 2015
$8.04 करोड़
डिस्को डांसर 1982
$7.58 करोड़
बाहुबली 2 2017
$5.85 करोड़
पीके 2014
$5.34 करोड़
अंधाधुन 2018
$4.88 करोड़
हिंदी मीडियम 2017
$3.65 करोड़
धूम 3 2013
$3.56 करोड़
3 इडियट 2009
$3.05 करोड़
*स्रोतः ट्रेड मैगजीन