लॉकडाउन लागू होने के बाद से देश में आर्थिक गतिविधियां ठप सी हो गई हैं। ऐसे में, बड़ी संख्या में बेरोजगारी बढ़ने की आशंका है। इसी के मद्देनजर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइई) ने लॉकडाउन की अवधि में एक सर्वे किया है। पांच अप्रैल तक किए गए सर्वे में कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं। जो गंभीर होती स्थिति को बताते हैं। सर्वे के क्या मायने हैं, इस पर आउटलुक के प्रशांत श्रीवास्तव ने सीएमआइई के सीईओ महेश व्यास से विस्तार से बात की। पेश हैं प्रमुख अंश:
लॉकडाउन की वजह से जॉब मार्केट पर किस तरह का असर हुआ है?
हमने लॉकडाउन के पहले पंद्रह दिन के सर्वे के दौरान तीन चीजों पर असर देखा है। श्रमिक भागीदारी दर (लेबर पार्टिसिपेशन रेट) 42 फीसदी से भी नीचे आ गई है। वह गिरकर 36 फीसदी के स्तर पर आ गई है। वहीं, बेरोजगारी दर में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। वह 23 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई है और रोजगार के अवसर कम हो गए हैं।
यह आंकड़े किस ओर इशारा कर रहे हैं?
देखिए, श्रमिक भागीदारी दर जो 42-43 फीसदी के स्तर पर चल रही थी, वह मार्च के आखिरी हफ्ते में गिरकर 39.2 फीसदी और अप्रैल के पहले हफ्ते में 36 फीसदी पर आ गई है। इसका मतलब है कि नौकरी की मांग करने वालों की संख्या में 6-7 फीसदी की गिरावट है। यह बहुत चिंता की बात है। क्योंकि श्रमिक भागीदारी दर में गिरावट का मतलब है कि लोगों में नौकरी मिलने की उम्मीद कम होती जा रही है।
बेरोजगारी दर 23 फीसदी पर पहुंचना कितनी चिंताजनक बात है?
नौकरी की मांग करने वालों में जिन लोगों को रोजगार नहीं मिलता है, वह बेरोजगारी दर कहलाती है। लॉकडाउन के पहले 43 फीसदी श्रमिक भागीदारी रेट में 6-7 फीसदी को रोजगार नहीं मिलता था। अब लॉकडाउन के दौरान गिर कर 36 फीसदी पर आ चुकी श्रमिक भागीदारी रेट में 23 फीसदी को रोजगार नहीं मिल रहा है। साफ है कि बड़े पैमाने पर लोगों के पास नौकरियां नहीं हैं।
श्रमिक भागीदारी रेट और बेरोजगारी दर शहरी और ग्रामीण इलाकों में क्या अलग-अलग है?
सामान्य तौर पर शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर ज्यादा होती है, वह हमारे सर्वे में भी दिखता है। लेकिन जिस तरह से शहरी और ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर बढ़ी है, वह बुरी स्थिति को बताती है। शहरी इलाकों में श्रमिक भागीदारी दर 40-41 फीसदी से गिरकर 32 फीसदी पर आ गई है। जबकि बेरोजगारी दर 31 फीसदी पर पहुंच गई है। इसी तरह ग्रामीण इलाकों में श्रमिक भागीदारी में भारी गिरावट है और बेरोजगारी दर 6 फीसदी से बढ़कर 20 फीसदी पर पहुंच गई है।
लॉकडाउन को 3 मई तक के लिए बढ़ाया गया है, इससे संकट कैसे बढ़ सकता है?
लॉकडाउन का ऐलान अचानक किया गया। इसकी वजह से बड़ी संख्या में श्रमिक पिछले तीन हफ्ते से फंस गए हैं। देश में एक बड़ी आबादी है, तो मेट्रो शहरों में 150-200 किलोमीटर से आकर नौकरी करती है। ऐसे लोग हर हफ्ते घर चले जाते हैं। लेकिन लॉकडाउन की वजह से नहीं जा पा रहे हैं। अब लॉकडाउन 3 मई तक बढ़ गया है। इसकी वजह से वह कम से कम पांच हफ्ते तक अपने घर नहीं पहुंच पाएंगे। यह उनके लिए बड़ा ट्रॉमा है। साथ ही, कम वेतन पाने वाले श्रमिकों को पैसों की भी दिक्कत बढ़ रही है। क्योंकि उनकी बचत खत्म हो रही है। ऐसे में स्थिति और खराब होगी।
लॉकडाउन के बाद इंडस्ट्री को श्रमिकों की उपलब्धता का डर सता रहा है?
जैसा कि मैंने पहले कहा कि अचानक हुआ लॉकडाउन, श्रमिकों के लिए बड़े आघात से कम नहीं है। सर्वे के दौरान हमने जिन लोगों से बात की है, उनकी पहली इच्छा यही है कि जैसे ही उन्हें मौका मिलेगा, वह अपने घर जाएंगे। वह अभी नौकरी के बारे में नहीं सोच रहे हैं। इस माहौल में आने वाली स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण रहने वाली है। इंडस्ट्री के लिए श्रमिकों को वापस लाना आसान नहीं होगा। खास तौर से शार्ट टर्म काफी दिक्कतें आएंगी।