दो महीने तक सख्त लॉकडाउन रहने के बाद भी देश में कोरोना संक्रमण के मामले नहीं थम रहे हैं। संक्रमण देश के उन क्षेत्रों में भी पहुंच रहा है, जहां पर पहले कोई मामले नहीं थे। ऐसे में अब सरकार को क्या करना चाहिए, इस पर आउटलुक के प्रशांत श्रीवास्तव ने दुनिया के प्रमुख वॉयरोलॉजिस्ट और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च में सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च इन वायरोलॉजी के पूर्व प्रमुख डॉ. टी. जैकब जॉन से बातचीत की। प्रमुख अंश:
भारत में संक्रमण का स्तर 1.25 लाख पार कर चुका है, मौजूदा स्थिति को आप कैसे देखते हैं?
भारत में अभी तक संक्रमण की दर जैसी संभावना थी, उसी तरह बढ़ी है। उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। वायरस के व्यवहार में अभी तक कोई बदलाव नहीं आया है। उसके विपरीत, वायरस से लड़ने के लिए मानव ने उम्मीदों के अनुसार व्यवहार नहीं किया है। हमें यह समझने की जरूरत है कि कोविड-19 महामारी, दूसरी महामारी की तरह नहीं है, जिनसे निपटने का हमारे पास अनुभव है। जैसा कि मैंने पहले भी कहा था कि लोगों में इसकी गंभीरता को समझने की भावना पैदा करना बेहद जरूरी है। कोविड-19 का विस्फोट मुझे दिखाई दे रहा है। जल्द ही यह अपने प्रचंड रूप में होगा।
सरकार का दावा है कि लॉकडाउन से कोरोना के संक्रमण को रोकने में सफलता मिली है?
जहां तक लॉकडाउन का सवाल है तो आंकड़ों से साफ दिखता है कि हम कोरोना संक्रमण की दर को रोकने में सफल नहीं रहे हैं। उलटे इसकी वजह से हमें भारी क्षति उठानी पड़ी है। लॉकडाउन लागू होने से एक दिन पहले संक्रमित मरीजों की संख्या 536 थी। वहीं, लॉकडाउन लागू होने के 20 दिनों में संक्रमितों की संख्या 20 गुना बढ़कर 11,487 पर पहुंच गई। जबकि 14 अप्रैल को लॉकडाउन हटाने का वादा किया गया था। उसी वक्त यह साफ हो गया था कि लॉकडाउन की रणनीति कोरोना संक्रमण को रोकने में सफल नहीं रही है। इसी वजह से 14 अप्रैल को लॉकडाउन हटाने का न केवल वादा तोड़ा गया बल्कि उसे 3 मई तक बढ़ा दिया गया। तीन मई को संक्रमितों की संख्या 42,505 पहुंच गई। इस वक्त भी वायरस का व्यवहार उम्मीदों के अनुसार था। इस दौरान यह भी साबित हुआ कि पहले चरण के लॉकडाउन में कई खामियां रहीं, इस कारण भी संक्रमण फैलता रहा। अब संक्रमितों की संख्या एक लाख तक पहुंच गई है। इसके बाद सरकार लॉकडाउन में ढील दे रही है। सरकार के इस कदम से यह भी साबित होता है कि वह आखिरकार जमीनी हकीकत को समझ गई है।
कई विशेषज्ञ दावा कर रहे हैं कि जून-जुलाई के महीने में संक्रमण अपने उच्चतम स्तर पर होगा?
हमें मौजूदा आंकड़ों का बहुत सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना चाहिए। ये आंकड़े महामारी की स्थिति को समझने के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसे में यह कहना कि जुलाई या अगस्त के दूसरे सप्ताह में कोरोना का संक्रमण अपने उच्चतम स्तर पर होगा, बहुत मुश्किल है।
लॉकडाउन के चौथे चरण में केंद्र सरकार ने बड़े पैमाने पर ढील देने की शुरुआत कर दी है, क्या इससे संक्रमण फैलने का डर है?
लॉकडाउन की वजह से उम्मीद से कहीं ज्यादा नुकसान हुआ है। ऐसे में सरकार के पास लॉकडाउन में ढील देने के अलावा कोई चारा नहीं था। ऐसा करके ही अर्थव्यवस्था को दोबारा खड़ा किया जा सकता है। लोकतंत्र का मतलब “लोगों का, लोगों के लिए, लोगों द्वारा” होता है। अगर आप लोगों से त्याग की उम्मीद करते हैं, तो उसका इनाम भी उन्हें मिलना चाहिए। अगर ऐसी गारंटी नहीं मिलती है तो सरकार को लोगों पर दांव नहीं खेलना चाहिए। हमें अपनी रणनीति बदलनी चाहिए। मेरी साफ तौर पर सलाह है कि सभी पुरुष, महिलाएं और बच्चे जब भी घर से बाहर निकले तो उन्हें हर हाल में मास्क पहनना चाहिए। अगर लोगों में संक्रमण से लड़ने के लिए जागरूकता फैलाई जाए तो न केवल लोग अपने परिवार की रक्षा करेंगे, बल्कि प्रशासन भी लोगों से नियमों का 100 फीसदी पालन करा सकेगा। जब नेतृत्व भ्रमित रहता है तो उसका असर भी नकारात्मक होता है।
हम केरल और भीलवाड़ा मॉडल से क्या सीख ले सकते हैं?
केरल और भीलवाड़ा के परिणाम से यह साफ है कि महामारी, बाढ़, आग जैसी आपदा को बेहतर रणनीति और स्थानीय स्तर पर अच्छे प्रबंधन से नियंत्रण किया जा सकता है। लेकिन इनको लेकर एक सवाल यह भी है कि क्या इन मॉडल्स को पूरे देश में या किसी एक राज्य में लागू करना चाहिए? साथ ही, यह भी सवाल उठता है कि क्या यह मॉडल लंबी अवधि के लिए सफल होगा? वायरस के व्यवहार को देखते हुए इस तरह के भगीरथ प्रयास कुछ समय के लिए तो प्रभावकारी हो सकते हैं लेकिन लंबी अवधि में यह रणनीति कितनी कारगर होगी, इस पर भविष्यवाणी करना मुश्किल है। इसीलिए मैंने केरल में दूसरी बार बड़े पैमाने पर संक्रमण फैलने की बात कही है। अगर कुछ महीने में टीका मिल जाता है तो यह मॉडल काफी बेहतरीन है। हमें यह भी समझना होगा कि केरल या भीलवाड़ा कोई न्यूजीलैंड या श्रीलंका की तरह अलग-थलग द्वीप नहीं है। ऐसे में वायरस को हमेशा के लिए रोकना संभव नहीं है।
अभी तक टीका विकसित नहीं हो पाया है, ऐसे में हर्ड कम्युनिटी कितनी कारगर हो सकती है?
ऐसे बहुत से लोगों का मानना है कि हर्ड कम्युनिटी के जरिए महामारी को नियंत्रित किया जा सकता है। करीब 20 साल पहले यूरोप के जर्नल में मैंने हर्ड कम्युनिटी को परिभाषित किया था। एक निश्चित जनसंख्या में कितने लोगों में बीमारी से लड़ने की प्रतिरोधी क्षमता विकसित हो पाई है, वही हर्ड कम्युनिटी कहलाती है। हर रोज बड़ी तेजी से हर्ड कम्युनिटी फैलती है। लेकिन जैसे-जैसे महामारी नियंत्रित होती जाती है, हर्ड कम्युनिटी की दर भी कम होती जाती है। लेकिन हर्ड कम्युनिटी तभी काम करती है जब वह 30 फीसदी के स्तर पर पहुंच जाती है। उसके बाद ही महामारी के संक्रमण दर को कम किया जा सकता है।
संक्रमण अब छोटे शहरों में फैल रहा है, इसे कैसे रोका जा सकता है?
आप ऐसा कैसे सोचते हैं कि इसे रोका जा सकता है। संक्रमण को फैलने से केवल कुछ समय के लिए टाला जा सकता है। हमें संक्रमण को रोकने के लिए, उसकी विस्तार की दर और उससे होने वाली मृत्यु पर नियंत्रण करना होगा। इसके लिए हमें विज्ञान और बुद्धि को साथ लेकर चलना होगा। हमें राष्ट्रीय रणनीति के तहत मृत्यु दर को करने पर जोर देना चाहिए। लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए लॉकडाउन की जगह दूसरी रणनीति पर काम करना होगा। यह रणनीति “कोकोनिंग” है। ऐसे में जिन लोगों में संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा है, उन्हें कोकोनिंग यानी रिवर्स क्वारंटीन करना होगा। इसके लिए 100 फीसदी मॉस्क पहनना अनिवार्य करना होगा।
सरकार का दावा है कि कोरोना से लड़ने के लिए उसने जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार कर लिया है, आप का क्या कहना है?
मुझे नहीं पता है कि सरकार ने जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार कर लिया है। मैं सामान्य तौर पर लोग जो बयान देते हैं, उस पर यकीन करता हूं लेकिन कई बार यह भरोसा टूट जाता है। उसके बावजूद मैं भरोसा करना चाहता है। मैं यह तो कह सकता हूं कि रणनीति बनाने में वैज्ञानिकता की कमी है, योजना और बुद्धिमता की कमी है लेकिन बेईमानी की उम्मीद मैं नहीं करता हूं।
मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए सरकार को क्या करना चाहिए?
व्यक्तिगत स्तर पर इस सवाल का जवाब देना मेरे लिए उचित नहीं है। मेरा मानना है कि सरकार को मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए आगे की रणनीति तैयार करनी चाहिए। उसे पुरानी गलतियों को भूल कर, आगे बढ़ना चाहिए। साथ ही, उसे दोषारोपण से भी बचना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि सरकार ने इसके लिए एक वॉर रूम बनाया होगा। हालांकि, इसके मुझे कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं लेकिन फिर भी मेरा भरोसा है कि वॉर रूम जरूर बनाया गया होगा क्योंकि सरकार को उसी के जरिए काम करना होगा।