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सख्त लॉकडाउन से रुकेगा संक्रमण

संक्रमण के मामले लगातार बढ़ना गंभीर खतरा
रणदीप गुलेरिया

भारत में कोविड-19 से 339 लोगों (14अप्रैल तक) की मौत हो चुकी है। संक्रमण के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे में इस बात का खतरा है कि कहीं हमारी इटली-अमेरिका जैसी स्थिति न हो जाए। मौजूदा तैयारियां किस स्तर पर हैं, संक्रमण की क्या स्थिति है, इस पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया से आउटलुक के नीरज झा ने बातचीत की है। प्रमुख अंशः

लॉकडाउन के बावजूद संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, यह कितनी चिंता की बात है?

टेस्ट की संख्या में इजाफा हुआ है, कई हॉटस्पॉट इलाकों की पहचान करके वहां बड़े पैमाने पर टेस्ट किए जा रहे हैं। इस वजह से संक्रमित लोगों की संख्या में इजाफा दिख रहा है। अभी पूरे देश में वायरस का संक्रमण नहीं फैला है। जहां भी मामले आ रहे हैं, उन इलाकों को सील करके तुरंत टेस्ट, होम क्वारंटाइन और आइसोलेट करने की क्षमता बढ़ाकर वायरस को फैलने से रोका जा रहा है।

नेशनल टास्क फोर्स की तरफ से सरकार को क्या सुझाव दिए गए हैं? क्या लॉकडाउन ही एकमात्र विकल्प है?

कोविड-19 को रोकने में अस्पताल से ज्यादा सामुदायिक भागीदारी की अहम भूमिका है। इसलिए लोगों को लॉकडाउन का पालन करना चाहिए। यह वायरस एक से दूसरे में फैलता है। इसलिए हमें कम्युनिटी ट्रांसमिशन की चेन तोड़ना होगा, ताकि हम इस जंग को जीत सकें। लगातार टॉस्क फोर्स की तरफ से सरकार को सुझाव दिए जा रहे हैं। सरकार उन सुझावों पर अमल भी कर रही है।

क्या आपको ऐसा लगता है कि देश में कम्युनिटी ट्रांसमिशन की शुरुआत हो चुकी है?

देखिए मेरा मानना है, देश में जो हॉटस्पॉट इलाके हैं, अगर वहां क्लोज मॉनिटरिंग नहीं की जाती है, होम क्वारंटाइन की व्यवस्था सुदृढ़ नहीं की जाती है तो कम्युनिटी ट्रांसमिशन की शुरुआत हो सकती है। देश के बड़े हिस्से में अभी उतने मामले नहीं पाए गए हैं। इसलिए, हमें हॉटस्पॉट वाले इलाके में फैले वायरस को सख्ती से रोकने की जरूरत है। अगर वायरस दूसरे इलाकों में फैलता है तो फिर हमारे लिए उसके प्रसार को रोकना मुश्किल हो जाएगा। जो बहुत बड़ी चुनौती बन जाएगी।

क्या हम स्टेज-3 में पहुंच चुके हैं?

अभी ऐसी स्थिति नहीं आई है। हम ग्रे जोन में हैं। इसलिए हर नागरिक लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग और होम क्वारंटाइन का ईमानदारी से पालन करता है तब हम इस चेन को तोड़ पाएंगे। इसमें कहीं से भी कोताही होती है तो फिर हम स्टेज-3 और कम्युनिटी ट्रांसमिशन की स्थिति में पहुंच जाएंगे।

सोरोलॉजिकल टेस्ट को लेकर हमारी क्या स्थिति है?

एंटीबॉडी किट, टेस्ट का दूसरा माध्यम है। उससे यह पता चलता है कि वायरस कितना फैला है। इस किट को खास तौर से चीन, जापान और कोरिया की कुछ कंपनियां ही बना रही हैं। हर देश इस प्रयास में है कि सबसे ज्यादा किट उसे मिले। इसको लेकर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) और केंद्र सरकार दोनों प्रमुखता से काम कर रही हैं। हमारे पास कुछ किट आज की तारीख में आ चुके हैं, पर यह अभी एक चुनौती है।

पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (पीपीई) की भी किल्लत है, कई जगहों पर डॉक्टरों ने इस्तीफे भी दिए हैं?

इलाज के दौरान जितनी भी चीजें होनी चाहिए, वो सारी पीपीई के तहत आती हैं। कोविड-19 के इलाज में जितने भी स्वास्थ्यकर्मी हैं, उन्हें पीपीई की आवश्यकता है और यह अनिवार्य है। जो डॉक्टर किसी और इलाज में भी पीपीई की मांग करते हैं, वह उपयुक्त नहीं है। डिमांड न होने की वजह से पहले पीपीई विदेशों से मंगाए जाते थे। लेकिन अब देश में भी निजी और सरकारी कंपनियां बना रही हैं। हमारे पास अब पीपीई की कोई कमी नहीं है। हमलोगों ने रिसर्च कर ऐसी प्रणाली तैयार की है जिससे पीपीई का दोबारा इस्तेमाल हो सके।

क्या कोविड-19 के उपचार के लिए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन उपयुक्त है?

अभी ऐसा नहीं कह सकते हैं। इस पर स्टडी सीमित दायरे में चीन और फ्रांस में हुई है। अभी और शोध की जरूरत है। हमें यह समझना होगा कि अभी कोई भी पूर्ण इलाज इस वायरस को लेकर विकसित नहीं हुआ है। इस दवा से थोड़ी राहत मिली है जिसके बाद माना गया कि इसे इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन, डॉक्टरों की सलाह से ही लेना चाहिए।

क्या हम अमेरिका और इटली जैसे देशों की स्थिति में पहुंच गए हैं

नहीं, इटली, स्पेन और अमेरिका जैसी स्थिति हमारे यहां नहीं है। मैं समझता हूं कि मामले तो बढ़ेंगे, लेकिन जो बढ़ने की रफ्तार है, उसे रोके रखना है। जितने मामले आते हैं, उन्हें हम उपयुक्त इलाज दे पाते हैं तब कोई ज्यादा मुश्किल नहीं है। ऐसा नहीं हो सकता कि कोरोना के मामले बिलकुल शून्य हो जाएं। अगर इटली और अमेरिका जैसे देशों की तरह मामलों में एकाएक इजाफा होता है, तो मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर को देखते हुए चुनौती खड़ी होगी।

क्या भीलवाड़ा मॉडल को देश के सभी हॉटस्पॉट इलाकों पर लागू किया जाना चाहिए?

बिलकुल, भीलवाड़ा मॉडल काफी उपयुक्त है। जिस तरह से वहां बिना देरी किए फौरन लॉकडाउन किए जाने के बाद बड़े पैमाने पर टेस्ट किए गए, उससे मामला पूरी तरह से नियंत्रण में आ गया है। मेरा मानना है कि इस मॉडल को अच्छे से समझ कर लागू किया जाए।

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